Kartik Purnima 2020: जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती

Kartik Purnima 2020 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Sun, 29 Nov 2020 08:57 AM (IST) Updated:Mon, 30 Nov 2020 10:59 AM (IST)
Kartik Purnima 2020: जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती
Kartik Purnima 2020: जानें कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि, व्रत कथा और आरती

Kartik Purnima 2020: कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को कार्तिक पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान शिव ने त्रिपुरा नाम के राक्षस का वध किया था। इसलिए इस पूर्णिमा को त्रिपुरा पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। इसके अलावा कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और महाकार्तिकी भी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह पूर्णिमा बहुत ही फलदायी मानी जाती है।

कार्तिक पूर्णिमा 2020 शुभ मुहूर्त:

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- रात 12 बजकर 47 मिनट से (29 नवम्बर 2020)

पूर्णिमा तिथि समाप्त- अगले दिन रात 02 बजकर 59 मिनट तक (30 नवम्बर 2020)

कार्तिक पूर्णिमा की पूजा विधि:

कार्तिक पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठ जाएं। फिर किसी पवित्र नदी पर जाकर स्नान करें। अगर ऐसा संभव न हो तो घर के पानी में ही गंगाजल मिला लें। इससे ही स्नान कर लें। इसके बाद शिव जी और लक्ष्मी नारायण की पूजा करें। इस दिन कार्तिकेय जी की पूजा करने का भी विधान है। भगनाव के सामने देसी घी का दीपक जलाएं। पूरे विधि-विधान से पूजा करें। इस दिन आप अपने घर पर हवन भी कर सकते हैं। मान्यता है कि इस दिन आप सत्यनारायण की कथा भी सुन सकते हैं। खीर का भोग लगाएं। इस प्रसाद को सभी में वितरित करें। शाम के समयलक्ष्मी नरायण की आरती करें। तुलसी जी की भी आरती उतारें। फिर दीपदान करें। घर में हर जगह दीपक लगाएं। अपनी सार्म्थयनुसार किसी जरूरतमंद को भोजन भी करा सकते हैं।

कार्तिक पूर्णिमा की कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार एक राक्षस जिसका नाम त्रिपुर था। उसने ब्रह्मा जी की कठोर तपस्या की। त्रिपुर की तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। सभी देवताओं ने त्रिपुर के इस कठोर तप को तोड़ने का निर्णय लिया। जिसके लिए उन्होंने बहुत ही सुंदर अप्सराएं त्रिपुर के पास भेजीं। लेकिन फिर भी त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई। जब त्रिपुर की तपस्या भंग नही हुई तो अंत में ब्रह्मा जी को विवश होकर त्रिपुर के सामने प्रकट होना ही पड़ा।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को वरदान मांगने के लिए कहा। त्रिपुर ने ब्रह्मा जी से वर में मांगा कि उसे न तो कोई देवता मार पाए और न हीं कोई मनुष्य। ब्रह्मा जी ने त्रिपुर को यह वरदान दे दिया। जिसके बाद त्रिपुर ने लोगों पर अत्याचार करना शुरु कर दिया। त्रिपुर के अंदर अहंकार इतना बढ़ गया कि उसने कैलाश पर्वत पर ही आक्रमण कर दिया। जिसके बाद भगवान शिव और त्रिपुर के बीच में बहुत ही भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध काफी लंबे समय तक चला। जिसके बाद भगवान शिव ने ब्रह्मा जी और श्री हरि नारायण विष्णु की मदद से त्रिपुर का अंत कर दिया।

इसके साथ ही शास्त्रों के अनुसार, भगवान विष्णु ने अपना पहला अवतार मत्स्य रूप कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही धारण किया था और प्रलय काल के दौरान वेदों की रक्षा की थी।

शिव जी की आरती:

जय शिव ओंकारा ॐ जय शिव ओंकारा ।

ब्रह्मा विष्णु सदा शिव अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव...॥

एकानन चतुरानन पंचानन राजे ।

हंसानन गरुड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव...॥

दो भुज चार चतुर्भुज दस भुज अति सोहे।

त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव...॥

अक्षमाला बनमाला रुण्डमाला धारी ।

चंदन मृगमद सोहै भाले शशिधारी ॥ ॐ जय शिव...॥

श्वेताम्बर पीताम्बर बाघम्बर अंगे ।

सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव...॥

कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।

जगकर्ता जगभर्ता जगसंहारकर्ता ॥ ॐ जय शिव...॥

ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका ।

प्रणवाक्षर मध्ये ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव...॥

काशी में विश्वनाथ विराजत नन्दी ब्रह्मचारी ।

नित उठि भोग लगावत महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव...॥

त्रिगुण शिवजीकी आरती जो कोई नर गावे ।

कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव...॥

भगवान जगदीश्वर की आरती:

ॐ जय जगदीश हरे, स्वामी! जय जगदीश हरे।

भक्तजनों के संकट क्षण में दूर करे॥

जो ध्यावै फल पावै, दुख बिनसे मन का।

सुख-संपत्ति घर आवै, कष्ट मिटे तन का॥ ॐ जय...॥

मात-पिता तुम मेरे, शरण गहूं किसकी।

तुम बिनु और न दूजा, आस करूं जिसकी॥ ॐ जय...॥

तुम पूरन परमात्मा, तुम अंतरयामी॥

पारब्रह्म परेमश्वर, तुम सबके स्वामी॥ ॐ जय...॥

तुम करुणा के सागर तुम पालनकर्ता।

मैं मूरख खल कामी, कृपा करो भर्ता॥ ॐ जय...॥

तुम हो एक अगोचर, सबके प्राणपति।

किस विधि मिलूं दयामय! तुमको मैं कुमति॥ ॐ जय...॥

दीनबंधु दुखहर्ता, तुम ठाकुर मेरे।

अपने हाथ उठाओ, द्वार पड़ा तेरे॥ ॐ जय...॥

विषय विकार मिटाओ, पाप हरो देवा।

श्रद्धा-भक्ति बढ़ाओ, संतन की सेवा॥ ॐ जय...॥

तन-मन-धन और संपत्ति, सब कुछ है तेरा।

तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा॥ ॐ जय...॥

जगदीश्वरजी की आरती जो कोई नर गावे।

कहत शिवानंद स्वामी, मनवांछित फल पावे॥ ॐ जय...॥  

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