Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत में करते हैं जीमूतवाहन की पूजा, व्रती जरूर पढ़ें यह कथा

Jivitputrika Vrat 2019 Katha Jimutavahana Vrat Katha Jitiya Vrat Katha व्रत वाले दिन जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनना आवश्यक माना गया है। इससे व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है।

By kartikey.tiwariEdited By: Publish:Thu, 19 Sep 2019 12:32 PM (IST) Updated:Sun, 22 Sep 2019 03:00 AM (IST)
Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत में करते हैं जीमूतवाहन की पूजा, व्रती जरूर पढ़ें यह कथा
Jivitputrika Or Jitiya Vrat 2019 Katha: जीवित्पुत्रिका व्रत में करते हैं जीमूतवाहन की पूजा, व्रती जरूर पढ़ें यह कथा

Jivitputrika Vrat 2019 Katha Or Jitiya Vrat Katha: जीवित्पुत्रिका या जितिया या जीमूतवाहन का व्रत 22 सितंबर दिन रविवार को है। यह व्रत प्रत्येक वर्ष आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रखा जाता है। इस दिन सौभाग्यवती महिलाएं अपने पुत्र के दीर्घ, आरोग्य और सुखमय जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। इस दिन गन्धर्वों के राजकुमार जीमूतवाहन की विशेष पूजा की जाती है। व्रत वाले दिन जीवित्पुत्रिका व्रत कथा सुनना आवश्यक माना गया है। इससे व्रत का विशेष फल प्राप्त होता है।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा/Jivitputrika Or Jitiya Vrat Katha

गंधर्व राजकुमार जीमूतवाहन उदार और परोपकारी व्यक्ति थे। पिता के वन प्रस्थान के बाद उनको ही राजा बनाया गया, लेकिन उनका मन उसमें नहीं रमा। वे राज-पाट भाइयों को देकर अपने पिता के पास चले गए। वन में ही उनका विवाह मलयवती नाम कन्या से हुई।

एक दिन वन में उनकी मुलाकात एक वृद्धा से हुई, जो नागवंश से थी। वृद्धा रो रही थी, वह काफी डरी हुई थी। जीमूतवाहन ने उससे उसकी ऐसी स्थिति के बारे में पूछा। इस पर उसने बताया कि नागों ने पक्षीराज गरुड़ को वचन दिया है कि प्रत्येक दिन वे एक नाग को उनके आहार के रूप में देंगे।

वृद्धा ने बताया कि उसका एक बेटा है, जिसका नाम शंखचूड़ है। आज उसे पक्षीराज गरुड़ के पास जाना है। इस पर जीमूतवाहन ने कहा कि तुम्हारे बेटे को कुछ नहीं होगा। वह स्वयं पक्षीराज गरुड़ का आहार बनेंगे। नियत समय पर जीमूतवाहन स्वयं पक्षीराज गरुड़ के समक्ष प्रस्तुत हो गए।

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लाल कपड़े में लिपटे जीमूतवाहन को गरुड़ अपने पंजों में दबोच कर साथ लेकर चल दिए। उस दौरान उन्होंने जीमूतवाहन की आंखों में आंसू निकलते देखा और कराहते हुए सुना। वे एक पहाड़ पर रुके, तो जीमूतवाहन ने सारी घटना बताई।

पक्षीराज गरुड़ जीमूतवाहन के साहस, परोपकार और मदद करने की भावना से काफी प्रभावित हुए। उन्होंने जीमूतवाहन को प्राणदान दे दिया और कहा कि वे अब किसी नाग को अपना आहार नहीं बनाएंगे। इस तरह से जीमूतवाहन ने नागों की रक्षा की। इस घटना के बाद से ही पुत्रों के दीर्घ और आरोग्य जीवन के लिए जीमूतवाहन की पूजा होने लगी।

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