Hartalika Teej 2021 Katha: तप की महत्ता का पर्व है हरितालिका तीज, जब माता पार्वती बनीं शिव अर्धांगिनी

Hartalika Teej 2021 महिलाओं के कठोर व्रत-उपवास का पर्व भाद्रपद शुक्ल तृतीया को होता है जिसे हरितालिका तीज कहते हैं। इस पर्व की कथा है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती शिव की अर्धांगिनी थीं लेकिन दक्ष द्वारा शिव की उपेक्षा से क्षुब्ध हो उन्होंने प्राणों की आहुति दे दी।

By Kartikey TiwariEdited By: Publish:Tue, 07 Sep 2021 12:02 PM (IST) Updated:Thu, 09 Sep 2021 07:48 AM (IST)
Hartalika Teej 2021 Katha: तप की महत्ता का पर्व है हरितालिका तीज, जब माता पार्वती बनीं शिव अर्धांगिनी
Hartalika Teej 2021 Katha: तप की महत्ता का पर्व है हरितालिका तीज, जब माता पार्वती बनीं भगवान शिव की अर्धांगिनी

Hartalika Teej 2021 Katha: महिलाओं के कठोर व्रत-उपवास का पर्व भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को होता है, जिसे हरितालिका तीज कहते हैं। पौराणिक ग्रंथों में इस पर्व की कथा है कि दक्ष प्रजापति की पुत्री सती भगवान शिव की अर्धांगिनी थीं, लेकिन पिता दक्ष द्वारा शिव की उपेक्षा से क्षुब्ध होकर उन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे दी। वह पुन: पर्वतराज हिमालय के घर जन्म लेकर पार्वती बनीं। ऋषि नारद के कहने पर हिमालय पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाह रहे थे, किंतु पार्वती की इच्छा को देखते हुए उनकी सखियां उनका हरण कर घने जंगल की एक गुफा में ले गईं, जहां पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना भाद्रपद शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को करके कठोर साधना शुरू की।

पुन: विवाह न करने के प्रण के उपरांत भी शिव जी को पार्वती की कठोर तपस्या के कारण उन्हें अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार करना पड़ा। यही कारण है कि हरितालिका तीज को महिलाएं कठोर व्रत रखती हैं, ताकि वे उत्तम पति प्राप्त कर सकें और विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु व अच्छे स्वास्थ्य की कामना करती हैं।

इस कथा के पीछे ऋषियों का नारी सशक्तीकरण का भाव भी परिलक्षित होता है। इस भाव की प्राप्ति के लिए जीवन में कठोर साधना का भी संदेश निहित है, विष्णु जी के बारे में यह मान्यता भी है कि उन्हें नैवेद्य, आभूषण, चढ़ावा आदि पसंद है और लक्ष्मी पति होने के नाते विष्णु जी को भौतिक वस्तुएं अर्पित की जाती हैं, जबकि भगवान शंकर प्रकृतिप्रेमी और सब कुछ त्याग कर पवित्र नदी का थोड़ा-सा जल चढ़ाने से प्रसन्न होने वाले देवता हैं।

पिता के घर कुंआरी रहकर जब महिलाएं जीवन जीती हैं तो शारीरिक रूप-सौंदर्य की प्रधानता होती है। वह उनका सती का रूप होता है, लेकिन विवाहोपरांत पति के घर पहुंचने पर उनकी प्राथमिकताएं बदलती हैं। अपने शारीरिक सौंदर्य आदि को भूलकर उनमें संतान व पति के प्रति कर्तव्यबोध जाग्रत हो जाता है। इस स्थिति में वे पार्वती हो जाती हैं।

सलिल पांडेय, सांस्कृतिक विषयों के अध्येता

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