Somnath Mandir: कैसे हुआ था सोमनाथ मंदिर का निर्माण, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

Somnath Mandir हिंदू धर्म में सोमनाथ मंदिर का महत्व अत्याधिक है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने किया था। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है। इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है...

By Shilpa SrivastavaEdited By: Publish:Wed, 17 Mar 2021 11:16 AM (IST) Updated:Wed, 17 Mar 2021 11:16 AM (IST)
Somnath Mandir: कैसे हुआ था सोमनाथ मंदिर का निर्माण, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा
Somnath Mandir: कैसे हुआ था सोमनाथ मंदिर का निर्माण, जानें इसके पीछे की पौराणिक कथा

Somnath Mandir: हिंदू धर्म में सोमनाथ मंदिर का महत्व अत्याधिक है। कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण चंद्रदेव ने किया था। यह भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में सर्वप्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है। यह गुजरात प्रांत के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र के किनारे स्थित है। इस मंदिर को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है जिसकी जानकारी हम आपको यहां दे रहे हैं।

पुराणों के अनुसार, दक्ष प्रजापति की सत्ताइस कन्याएं थीं। इन सभी का विवाह चंद्रदेव के साथ हुआ था। लेकिन चंद्रमा का प्रेम रोहिणी के लिए रहता था। यह देख दक्ष प्रजापति की अन्य कन्याएं बेहद अप्रसन्न रहती थीं। उन्होंने अपनी व्यथा अपने पिता से कही। दक्ष ने चंद्रमा को हर तरह से समझाने की कोशिश की। लेकिन चंद्रमा रोहिणी से बेहद प्रेम करते थे ऐसे में उनपर किसी के समझाने का कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

यह देख दक्ष को बेहद क्रोध आया और उन्होंने चंद्रमा को क्षयग्रस्त हो जाने का शाप दे दिया। इस शाप के चलते चंद्रदेव क्षयग्रस्त हो गए। ऐसा होने से पृथ्वी पर सारा कार्य रुक गया। हर जगह त्राहि-त्राहि का माहौल था। चंद्रमा बेहद दुखी रहने लगे थे। उनकी प्रार्थना सुन सभी देव और ऋषिगण उनके पिता ब्रह्माजी के पास गए। पूरी बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा कि चंद्रमा मृत्युंजय भगवान भोलेशंकर का जाप करना होगा। इसके लिए उन्हें अन्य देवों के साथ पवित्र प्रभासक्षेत्र में जाना होगा।

जैसा उन्होंने कहा था चंद्रदेव ने वैसा ही किया। उन्होंने आराधना का सारा कार्य पूरा किया। घोर तपस्या की और 10 करोड़ बार मृत्युंजय मंत्र का जाप किया। इससे मृत्युंजय-भगवान शिव बेहद प्रसन्न हो गए। शिवजी ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया। साथ ही कहा कि चंद्रदेव! तुम शोक न करो। मेरे वर से तुम्हारा शाप-मोचन तो होगा ही और दक्ष के वचनों की रक्षा भी होगी।

कृष्णपक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी एक-एक कला क्षीण होगी। लेकिन फिर शुक्ल पक्ष में एक-एक कला बढ़ जाएगी। इस तरह हर पूर्णिमा को तुम्हें पूर्ण चंद्रत्व प्राप्त होगा। इससे सारे लोकों के प्राणी प्रसन्न हो उठे। सुधाकर चन्द्रदेव फिर से 10 दिशाओं में सुधा-वर्षण का कार्य करने लगे। जब वो शाप मुक्त हो गए तो चंद्रदेव ने सभी देवताओं के साथ मिलकर मृत्युंजय भगवान्‌ से प्रार्थना की। उन्होंने कहा कि वो और माता पार्वती सदा के लिए प्राणों के उद्धारार्थ यहां निवास करें। शिवजी ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और ज्योतर्लिंग के रूप में माता पार्वतीजी के साथ तभी से यहां निवास करने लगे।

पावन प्रभासक्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा विस्तार से महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कन्दपुराणादि में वर्णित की गई है। चंद्रमा को सोम भी कहा जाता है। उन्होंने यहां पर शिवशंकर को अपना नाथ-स्वामी मानकर तपस्या की थी। इसलिए इस ज्योतिर्लिंग को सोमनाथ कहा जाता है। मान्यता है कि इस मंदिर के दर्शन, पूजन, आराधना से भक्तों के जन्म-जन्मांतर के सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।  

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