राजस्थान में अपने लोगो के विरोध का सामना कर रहे केंद्रीय मंत्री शेखावत, पंचायत चुनावों के बहाने उठ रहे विरोध के स्वर

शेरगढ़ विधानसभा से तीन बार विधायक रहे बाबू सिंह राठौड़ भी उन्हीं की भांति छात्र राजनीति में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे और गजेंद्र सिंह शेखावत के अच्छे दोस्त भी पर गजेंद्र सिंह के पहलर सांसद व बाद में केंद्रीय मंत्री बनने के साथ ही उनकी शेखावत से दूरियां बढ़ गयी।

By Vijay KumarEdited By: Publish:Fri, 20 Aug 2021 09:06 PM (IST) Updated:Fri, 20 Aug 2021 09:06 PM (IST)
राजस्थान में अपने लोगो के विरोध का सामना कर रहे केंद्रीय मंत्री शेखावत, पंचायत चुनावों के बहाने उठ रहे विरोध के स्वर
बाबू सिंह राठौड़ और गजेंद्र सिंह शेखावत दोनों रह चुके है विश्वविद्यालय के अध्यक्ष

रंजन दवे, जोधपुर। राजस्थान में होने जा रहे पंचायत चुनाव में राजनीतिक चौसर के बीच दिग्गज राजनेताओं पर भी बन आई है। वे अपने ही क्षेत्र में अपने ही लोगों के बीच घिर गए हैं इसमें सबसे बड़ा नाम केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का है जोकि राजपूत भूल शेरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में अपने ही लोगों के विरोध का सामना कर रहे है। शेरगढ़ विधानसभा से तीन बार विधायक रहे बाबू सिंह राठौड़ भी उन्हीं की भांति छात्र राजनीति में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे और गजेंद्र सिंह शेखावत के अच्छे दोस्त भी ,पर गजेंद्र सिंह के पहलर सांसद व बाद में केंद्रीय मंत्री बनने के साथ ही उनकी शेखावत से दूरियां बढ़ गयी। बाबू सिंह की यह दूरियां ही किसी जमाने में वसुंधरा राजे से भी थी , तीन बार जितने का बाद भी भाजपा राज में मंत्री नही बने बाबू सिंह वसुधरा खेमे के माने जाते है।

भाजपा की तरफ से प्रदेश में मुख्यमंत्री पद के दावेदारों की रेस में तेजी से उभर रहे शेखावत को उम्मीद नहीं थी कि घर में ही इतना विरोध झेलना पड़ेगा । शुरू से ही शेखावत की रणनीति रही है कि वसुंधरा समर्थक नेताओं को दरकिनार कर खुद के लोगों को आगे बढ़ाया जाए। दूसरी तरफ बरसों से अपने-अपने क्षेत्र की राजनीतिक पकड़ रखने वाले नेताओं को यह बात रास नहीं आ रही है । शेखावत के खिलाफ सबसे अधिक विरोध के स्वर शेरगढ़ विधानसभा क्षेत्र में देखने को मिले ।राजपूत बहुल शेरगढ़ क्षेत्र में मजबूत पकड़ रखने वाले बाबूसिंह इस बार चुनाव हार गए थे। इसके बाद बिलकुल शांत होकर बैठ गए । सरपंचों के चुनाव में भी उनकी सक्रियता कम ही नजर आई लेकिन जिला परिषद और पंचायत समिति चुनाव में वे एक बार फिर से अपनी खोई हुई जमीन की तलाश में मैदान में आ डटे । इस अवधि में शेखावत ने क्षेत्र में अपने मोहरों को आगे बढ़ा दिया था। अब सब की नजर आगामी विधानसभा चुनावों पर है।

फिलहाल दांवपेच जारी है ।ऐसे में शेखावत ने प्रयास किया कि उनके समर्थकों को अधिक से अधिक संख्या टिकट मिले , ताकि भविष्य में किसी प्रकार की दिक्कत न हो ।वसुंधरा राजे और शेखावत के बीच 36 का आंकड़ा जगजाहिर है ।ऐसे में चुनावी चौसर में अपने मोहरों को अधिक से अधिक संख्या में बचा अपनी प्रतिष्ठा को बचा पाना भी केंद्रीय मंत्री के लिए बड़ी चुनोती है।

दोनों ही रह चुके है विश्वविद्यालय के अध्यक्ष

गजेंद्र सिंह शेखावत और बाबू सिंह राठौड़ दोनों की ही राजनीति की शुरुआत जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय से हुई । दोनों ही छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके है । बाबूसिंह शुरू से ही वसुंधरा राजे के विरोधी रहे । यहीं कारण रहा कि क्षेत्र में मजबूत जनाधार के बावजूद कभी भी उन्हें तव्वजों नहीं मिल पाई । आखिरकार माहौल को भांप उन्होंने वसुंधरा राजे से अपने राजनीतिक रिश्तों को सुधारना शुरू किया । वहीं शेखावत के उभार ने वसुंधरा राजे को भी मजबूर कर दिया कि किसी मजबूत जनाधार वाले राजपूत समाज से जुड़े नेता को साथ जोड़ा जाए । यह भूमिका बाबूसिंह बखूबी निभा सकते थे । ऐसे में दोनों का मजबूत गठजोड़ बन गया ।

शेखावत के प्रदेश की राजनीति में तेजी से उभार वसुंधरा राजे को कभी रास नहीं आया । वे नहीं चाहती थी कि मुख्यमंत्री पद के लिए पार्टी के भीतर कोई नया दावेदार उभर कर सामने आए । वसुंधरा राजे की यह टसक ही रही जिसके चलते गजेंद्र सिंह शेखावत राजस्थान भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष नहीं बन पाए जबकि जानकारों के अनुसार शेखावत के नाम की महज घोषणा की औपचारिकता मात्र रह गई थी। हालांकि इसके दूरगामी नतीजे भी देखने को मिले और वसुंधरा भी अपने सांसद पुत्र दुष्यंत को केन्द्र में मंत्री नहीं बनवा पाई ।

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