Udaipur: 468 साल का हुआ उदयपुर, अक्षय तृतीया पर रखी गई थी इस शहर की नींव

Udaipur मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में आखातीज के दिन महाराणा उदय सिंह ने की थी जिसके प्रमाण यहां फतहसागर किनारे मोती मगरी स्थित खंडहर मोती महल में मिलते हैं। अपनी स्थापना से लेकर आज तक उदयपुर ने चार बार महामारी का सामना किया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Fri, 14 May 2021 04:18 PM (IST) Updated:Fri, 14 May 2021 04:18 PM (IST)
Udaipur: 468 साल का हुआ उदयपुर, अक्षय तृतीया पर रखी गई थी इस शहर की नींव
468 साल का हुआ उदयपुर, अक्षय तृतीया पर रखी गई थी इस शहर की नींव। फाइल फोटो

उदयपुर, सुभाष शर्मा। Udaipur: अक्षय तृतीया को तत्कालीन मेवाड़ प्रांत की राजधानी उदयपुर की नींव रखी गई थी। आज उदयपुर चार सौ अड़सठ साल का हो गया और कोरोना महामारी की वजह से पिछले साल की तरह इस बार भी स्थापना दिवस समारोह नहीं मनाया जा रहा। ऐसा पहली बार नहीं बल्कि हर सौ साल में आने वाली महामारी के चलते होता आया है। इन चार सौ सालों में उदयपुर ने चार महामारियों का सामना किया है। कोरोना महामारी का प्रकोप इन दिनों जारी है और जांच कराने वालों में तीस फीसद लोग संक्रमित मिल रहे हैं। मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में आखातीज के दिन महाराणा उदय सिंह ने की थी, जिसके प्रमाण यहां फतहसागर किनारे मोती मगरी स्थित खंडहर मोती महल में मिलते हैं। अपनी स्थापना से लेकर आज तक उदयपुर ने चार बार महामारी का सामना किया।

अठारहवीं सदी को छोड़ दिया जाए तो हर सदी के दूसरे दशक में उदयपुर ने भी महामारी का दंश झेला है। पुरातत्व व इतिहास में शोध छात्रा जया शर्मा बताती है कि उदयपुर की स्थापना के बाद पहली महामारी का सामना महाराणा कर्ण सिंह (1620-28) के शासनकाल के समय किया। तब उदयपुर ही नहीं, बल्कि आगरा बनारस तक की जनता इससे प्रभावित रही। हजारों लोगों की जानें गई थी। महाराणा कर्णसिंह ने एक तरह से सीमाएं इस तरह सील करा दी थी कि मेवाड़ के लोग बाहर नहीं जा पाएं और बाहरी लोग अंदर नहीं आ पाए। इसके बाद अठारवीं सदी में मेवाड़ महामारी से अछूता रहा। हालांकि इस दौरान मेवाड़ को अकाल का सामना करना पड़ा था। तब लोग अलग-अलग बाड़ियों में रहा करते थे। उन्नीसवीं सदी में 1821में दूसरी बार फिर महामारी का सामना उदयपुर को करना पड़ा। ब्रिट्रिश सैनिकों के जरिए हैजा की बीमारी उदयपुर में आई और इस महामारी में बहुत जनहानि झेलनी पड़ी।

तब मरीजों को बचाने के लिए तत्कालीन महाराणाओं ने आबादी से दूर टैंटों में रखने की व्यवस्था की थी। इसका जिक्र कर्नल टॉड ने अपनी पुस्तक में किया है। वीसवीं सदी में 1918 से 20 तक उदयपुर स्पेनिश प्लेग से प्रभावित रहा। महाराणा शंभूसिंह ने पहली बार विदेशी चिकित्सकों को उदयपुर बुलाया और लोगों का उपचार किया। इतिहास की पुस्तकों में जिक्र है कि प्लेग रोग की वजह से उदयपुर की एक तिहाई आबादी कम हो गई थी। तब उदयपुर की आबादी छह हजार हुअ करती थी। इस महामारी के एक दशक बाद उदयपुर में पहला राजकीय अस्पताल खोला गया जो पहले महज तीन कमरों में हुआ करता था और आज संभाग का सबसे बड़ा अस्पताल है।

21 वीं सदी में एक बार फिर उदयपुर महामारी का प्रकोप झेल रहा है। कोरोना महमारी के जितने केस मई माह में आ रहे हैं, उतने कभी नहीं आए। इस महीने हर दिन औसतन एक हजार कोरोना संक्रमित सामने आ रहे हैं।

इस तरह बसा उदयपुर

मेवाड़ की राजधानी उदयपुर की स्थापना 1559 में महाराणा उदयसिंह ने की। महाराणा उदय सिंह द्वितीय, जो महाराणा प्रताप के पिता थे, चित्तौड़गढ़ दुर्ग से मेवाड़ का संचालन करते थे। उस समय चित्तौड़गढ़ निरंतर मुगलों के आक्रमण से घिरा हुआ था। इसी दौरान महाराणा उदयसिंह अपने पौत्र अमरसिंह के जन्म के उपलक्ष्य में मेवाड़ के शासक भगवान एकलिंगजी के दर्शन करने कैलाशपुरी आए थे। उन्होंने यहां आयड़ नदी के किनारे शिकार के लिए डेरे डलवाए थे। तब उनके दिमाग में चित्तौड़गढ़ पर मुगल आतताइयों के आक्रमण को लेकर सुरक्षित जगह राजधानी बनाए जाने का मंथन चल रहा था। इसी दौरान उन्होंने एक शाम अपने सामंतों के समक्ष उदयपुर नगर बसाने का विचार रखा। जिसका सभी सामंत तथा मंत्रियों ने समर्थन किया। उदयपुर की स्थापना के लिए वह जगह तलाशने पहुंचे, तब उन्होंने यहां पहला महल बनवाया। जिसका नाम मोती महल दिया, जो वर्तमान मोती मगरी पर खंडहर के रूप में मौजूद है। जिसको लेकर कई इतिहासकारों का मानना है कि मोतीमहल उदयपुर का पहला महल है और एक तरह से इस के निर्माण के साथ ही उदयपुर नगर की स्थापना शुरू हुई। स्थापना का दिन पंद्रह अप्रैल 1553 था और उस दिन आखातीज थी।

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