Rajasthan: नौ माह के बच्चे के इलाज को 16 करोड़ के इंजेक्शन की जरूरत

Rajasthan नागौर जिले के नड़वा गांव निवासी नौ माह का बच्चा तनिष्क सिंह जेनेटिक नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है। तनिष्क के इलाज के लिए एक इंजेक्शन की जरूरत है जिसकी कीमत 16 करोड़ है। यह इंजेक्शन विदेश से मंगवाना पड़ता है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Thu, 22 Jul 2021 06:30 PM (IST) Updated:Thu, 22 Jul 2021 06:30 PM (IST)
Rajasthan: नौ माह के बच्चे के इलाज को 16 करोड़ के इंजेक्शन की जरूरत
नौ माह के बच्चे के इलाज को 16 करोड़ के इंजेक्शन की जरूरत। फाइल फोटो

जागरण संवाददाता, जयपुर। राजस्थान में नागौर जिले के नड़वा गांव निवासी नौ माह का बच्चा तनिष्क सिंह जेनेटिक (स्पाइनल मस्कुलर अट्रोफी टाइप-1) नामक दुर्लभ बीमारी से पीड़ित है। तनिष्क के इलाज के लिए एक इंजेक्शन की जरूरत है, जिसकी कीमत 16 करोड़ है। बीमारी की गंभीरता के कारण तनिष्क न तो अपने बल पर बैठ सकता है और न ही खाना चबाया जा सकता है। खुद खड़ा भी नहीं हो सकता है। उसकी छाती की मांसपेशियों में इतनी ताकत भी नहीं है कि वह अच्छे से पूरी सांस ले सके। तनिष्क को पिछले दिनों जयपुर स्थित राज्य के सबसे बड़े जेके लोन अस्पताल में भर्ती करवाया गया तो वहां जांच के बाद चिकित्सकों ने बताया कि उसके इलाज के लिए एक इंजेक्शन जोलगेन्स्मा मंगवाना पड़ेगा, जिसकी कीमत 16 करोड़ है। यह इंजेक्शन विदेश से मंगवाना पड़ता है।

तनिष्क के पिता शैतान सिंह ने बताया कि उसकी मांसपेशियां काम नहीं करती है। अब तक फिजियोथैरेपी और व्यायाम से काम चला रहे थे, जिससे शरीर की मांसपेशियां सक्रिय रहे, लेकिन अब इंजेक्शन की जरूरत महसूस होने लगती है। उन्होंने बताया कि तनिष्क जब पांच माह का था, तब ही परेशानी शुरू हो गई थी। उस समय चिकित्सकों ने कहा था कि तनिष्क जेनेटिक नामक बीमारी से पीड़ित है। गौरतलब है कि मुंबई की एक बच्ची भी इस बीमारी से पीड़ित है, उसके लिए क्राउड फंडिंग से पैसा जुटाया गया था। इसी तरह हैदराबाद के एक बच्चे को भी यही बीमारी थी। उसके लिए भी क्राउड फंडिंग से इंजेक्शन के लिए पैसा जुटाया गया था। 

गौरतलब है कि कोरोना से होने वाली मौतों में सबसे अधिक वैसे मरीज शामिल हैं जो पूर्व से मधुमेह, मोटापा, हार्ट, ब्लड प्रेशर, थैलेसीमिया सहित अन्य बीमारी से ग्रस्त थे। लगभग 80 प्रतिशत को-मार्बिड के मरीज शामिल हैं। लेकिन, बच्चों के साथ ऐसा नहीं है। बच्चों में होने वाली मधुमेह टाइप-वन, थैलेसीमिया, मोटापा, सफेद रोग सहित अन्य जेनेटिक (आनुवांशिक) बीमारी के बावजूद उन्हें कोरोना से कोई खतरा नहीं है। उन्हें यह भी पता नहीं चला कि वे कब संक्रमित हुए और कब ठीक हो गए। खेलते-कूदते पूरी तरह से स्वस्थ हो गए। अब जब एंटीबॉडी जांच हो रही है पता चल रहा है कि उनके शरीर में एंटीबॉडी विकसित कर गया है। यानी वे पूर्व में संक्रमित हो चुके हैं। इसके बाद अब इन बच्चों को एमआइएससी (मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी) हो रही, जिसे पोस्ट कोविड भी कहा जाता है। इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं, लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है।

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