Dussehra 2021: चित्तौड़गढ़ में रावण का अंतिम संस्कार, आकोला में निभाई गई रावण वध की परंपरा

Dussehra 2021 चित्तौड़गढ़ में इस बार रावण को पूरा सम्मान देते हुए उसके पुतले का अंतिम संस्कार किया गया। गोबर से बनाए आठ फीट के पुतले को बाकायदा शैया पर लिटाया गया और अर्थी की तरह कांधे पर ले जाने के बाद उसका विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Fri, 15 Oct 2021 09:30 PM (IST) Updated:Fri, 15 Oct 2021 09:30 PM (IST)
Dussehra 2021: चित्तौड़गढ़ में रावण का अंतिम संस्कार, आकोला में निभाई गई रावण वध की परंपरा
चित्तौड़गढ़ में रावण का अंतिम संस्कार। फोटो जागरण

उदयपुर, संवाद सूत्र। दहशरे पर जहां रावण के पुतले के दहन की परंपरा होती है, वहीं चित्तौड़गढ़ में इस बार रावण को पूरा सम्मान देते हुए उसके पुतले का अंतिम संस्कार किया गया। गोबर से बनाए आठ फीट के पुतले को बाकायदा शैया पर लिटाया गया और अर्थी की तरह कांधे पर ले जाने के बाद उसका विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया। वहीं, चित्तौड़गढ़ जिले के आकोला में रावण वध की परंपरा निभाई गई। चित्तौड़गढ़ की गौनंदी संरक्षण समिति, श्री नीलिमा महादेव गोशाला और कामधेनु दिवाली महोत्सव समिति के सदस्यों ने इस बार दशहरे से यह नई परंपरा की शुरुआत की। तीनों संगठनों के सदस्यों ने अब हर साल रावण की अंतिम विदाई पूरे सम्मान से किए जाने की घोषणा की है।

रावण के ईको फ्रेंडली पुतले को तैयार करने की जिम्मेदारी कामधेनु दीवाली महोत्सव समिति ने निभाई, जिन्होंने गाय के गोबर से रावण का आठ फीट का पुतला तैयार किया। इसके संयोजक कमलेश पुरोहित का कहना है कि यह पहला अवसर है, जब रावण के पुतले को खड़ा करके जलाने की बजाय उसका दहन लिटाकर किया गया। इससे पहले सनातन परंपरा के तहत रावण के पुतले की अर्थी निकाली गई तथा मंत्रोच्चारण के दौरान उसका विधि विधान से अंतिम संस्कार किया गया। आयोजकों का कहना था कि रावण एक वीर योद्धा और ब्राह्मण था। दुश्मन ही क्यों न हो अंतिम संस्कार हमेशा सम्मानपूर्वक होना चाहिए। इसीलिए हिंदू रीति-रिवाज के साथ अंतिम संस्कार की रस्म अदा की गई।

बदलनी चाहिए रावण दहन की परंपरा

पंडित विष्णु शर्मा का कहना था कि रावण दहन की परंपरा बदलने की जरूरत है। देश में लंबे समय से रावण दहन की गलत परंपरा चली आ रही है। रामायण, रामचरित मानस या किसी अन्य सनातन धर्म शास्त्रों में रावण के दहन पर उत्सव या आतिशबाजी का उल्लेख नहीं मिलता। रावण दहन को उन्होंने बाजारवाद के दौरान में एक तमाशा बताया।

बांटेंगे गोबर से बने दीपक

श्री नीलिया महादेव गोशाला समिति ने इस बार दीपावली से पहले चित्तौड़गढ़ जिले के एक हजार आठ गांवों में गाय के गोबर से बने ईको फ्रेंडली दीपक बांटने की जिम्मेदारी ली है। उन्होंने कहा कि अभी तक अस्सी हजार से अधिक दीपक तैयार कर लिए गए हैं। अगले कुछ दिनों में डेढ़ लाख दीपक बनकर तैयार हो जाएंगे। जिनकी बांटने की जिम्मेदारी अगले दो-तीन दिन में शुरू कर दी जाएगी।

आकोला में निभाई गई रावण वध की परंपरा, यहां छह सौ साल से खड़ा है रावण के पुतले का धड़

चित्तौड़गढ़ जिले में दशहरे पर रावण के वध की अनूठी परंपरा निभाई गई। यहां पिछले छह सौ साल से रावण के पुतले का धड़ खड़ा है, जो पहले मिट्टी का था किंतु बाद में ग्रामीणों ने इसे सीमेंट का बना दिया। शुक्रवार को आकोलावासियों ने रावण के वध से पहले चारभुजा भगवान का बेवाण निकाला तथा बाद में ग्रामीण राम, लक्ष्मण, सीता, हनुमान की शोभायात्रा के साथ बेढ़च नदी किनारे दशहरे मैदान पर पहुंची, जिसे ग्रामीण लंकापुरी कहते हैं। वहां ग्रामीण दो गुटों में बंट जाते हैं और उनके बीच युद्ध का अभिनय चलता है। इससे पहले रावण के धड़ पर मिट्टी की बड़ी मटकी से तैयार सिर रखा गया। जिसे ग्रामीणों ने तोड़कर रावण के वध की परंपरा निभाई। उस मटकी के टुकड़े ग्रामीण अपने साथ ले गए। ग्रामीणों के मुताबिक रावण के सिर के टुकड़े को रखने से घर में शांति बनी रहती है और खटमल नहीं पनपते। 

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