फैक्टरिंग रेगुलेशन अमेंडमेंट बिल हुक्मरानों के मित्रों के हित साधने का साधन मात्र है: नीरज डांगी

Rajasthan सांसद नीरज डांगी ने संसद के मानसून सत्र में फैक्टरिंग रेगुलेशन अमेंडमेंट बिल पर राज्य सभा में कांग्रेस की ओर से फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट 2011 में संशोधन करने को कुटिल प्रयास व वर्तमान हुक्मरानों के अपने समर्थित व्यापारिक मित्रों के हितों को साधने का साधन मात्र बताया है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 06:56 PM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 06:56 PM (IST)
फैक्टरिंग रेगुलेशन अमेंडमेंट बिल हुक्मरानों के मित्रों के हित साधने का साधन मात्र है: नीरज डांगी
फैक्टरिंग रेगुलेशन अमेंडमेंट बिल हुक्मरानों के मित्रों के हित साधने का साधन मात्र है: नीरज डांगी। फाइल फोटो

नई दिल्ली। राजस्थान से राज्यसभा सांसद नीरज डांगी ने संसद के मानसून सत्र में फैक्टरिंग रेगुलेशन अमेंडमेंट बिल पर राज्य सभा में कांग्रेस की ओर से फैक्टरिंग रेगुलेशन एक्ट 2011 में संशोधन करने को कुटिल प्रयास व वर्तमान हुक्मरानों के अपने समर्थित व्यापारिक मित्रों के हितों को साधने का साधन मात्र बताया है। डांगी ने सदन में अमेंडमेंट बिल पर विस्तृत चर्चा करते हुए सदन को अवगत कराया है कि यह अमेंडमेंट बिल सदन में पेश करने से पूर्व सरकार ने बड़ी चतुराई से सूक्ष्म, लघु व मध्यम इंटरप्राइजेज की परिभाषा ही बदल दी है। एमएसएमइ की परिभाषा बदल जाने से यह अमेंडमेंट बिल एमएसएमइ को सहायता या उद्यमियों को आ रही समस्याओं के निराकरण के लिए नहीं अपितु वर्तमान हुक्मरानों के अपने समर्थित व्यापारिक मित्रों के हितों को साधने का साधन मात्र है।

डांगी ने तरनुम्म कानपुरी के एक मषहूर शेर का जिक्र किया कि -ऐ काफिले वालों, तुम इतना भी नही समझे, लूटा है तुम्हे रहजन ने, रहबर के इशारे पर। इस संशोधन को सरकार का एक कुटिल प्रयास बताया, ताकि उन संस्थाओं के दायरे को बढ़ाया जा सके जो फैक्टरिंग व्यवसाय में संलग्न हो सके। डांगी ने चर्चा में बताया कि एमएसएमइ की परिभाषा के विस्तार करने के सरकार के इस कुटिल कृत्य का एमएसएमइ संघटनों ने विरोध करते हुए चिंता व्यक्त की है और सरकार के इस निर्णय को ‘‘सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए विचलित करने वाला, विनाशकारी और अनुपयुक्त करार दिया हैं। विरोध करने वालों में भाजपा और आरएसएस से संबद्ध अनुसांगिक संघटन लघु उद्योग भारती भी शामिल है।

हम व्यापारियों या खुदरा विक्रेताओं के खिलाफ नहीं हैं। कोई भी निर्माता व्यापारिक समुदाय के खिलाफ नहीं हो सकता, क्योंकि वे वही हैं जो अंततः उपभोक्ताओं को उत्पाद पहुंचाने में मदद करते हैं। परन्तु व्यापारियों को निर्माताओं के साथ मिलाने के बजाय उनके क्षेत्र के लिए प्रासंगिक लाभ दिए जाने चाहिए। उनका कहना था कि खुदरा और थोक व्यापारियों को शामिल करने के नए प्रावधान के साथ, पीएसएल की उपलब्ध धनराशि विभाजित हो जाएगी और परिणामस्वरूप एम.एस.एम.ई की फंडिंग में कमी आएगी। यह एमएसएमआई को नकदी के गहरे संकट में डाल देगा। बैंकर आमतौर पर बड़ी मात्रा में उद्यमों को छोटे ऋण की पेशकश करने के बजाय उच्च-मूल्य वाले उधार देने का पक्ष लेते हैं। इसलिए, वे थोक व्यापारियों और खुदरा विक्रेताओं से प्राथमिकता वाले क्षेत्र के ऋण के तहत अपने लक्ष्यों को पूरा करना पसंद करेंगे, विशेष रूप से वे जो कार डीलरों और वितरकों आदि जैसे उच्च मूल्य की वस्तुओं से निपटते हैं।

इस कदम से विनिर्माण क्षेत्र में संकुचन होगा, जिसके परिणामस्वरूप कई सूक्ष्म और छोटी इकाइयां बंद हो जाएंगी, जिससे रोजगार सृजन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। इससे आयात, रीपैकेजिंग और असेंबलिंग सेक्टर जैसे क्षेत्रों में वृद्धि होगी, जो मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल, आत्मानिर्भर भारत अभियान जैसे सरकार के कार्यक्रमों के विपरीत होगा। इस मामले में सरकार की रणनीति अपनी नीतियों का का ही खंडन कर रही है। उन्होनें सदन में सरकार की इस निति पद सागर खय्यामी का एक शेर पढा-कितने चेहरे लगे हैं चेहरों पर, क्या हकीकत है और सियासत क्या।

सांसद डागी ने इस बिल की न केवल बिल की कुछ कमियां उजागर की अपितु सरकार को कुछ महत्वपूर्ण  सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा कि घरेलू फैक्टरिंग कंपनियों को अपने वैश्विक साथियों के बराबर लाने और क्रेडिट फाइनेंस को एमएसएमइ के लिए अधिक सुलभ बनाने के लिए बेस्ट ग्लोबल प्रेक्टिसेज को अपनाने की आवश्यकता है। इसी प्रकार एमएसएमइ सेक्टर जो कोविड 19 महामारी के पहले से ही लिक्विडिटी क्रिसिस से जूझ रहा था, आज महामारी के पश्चात उसकी हालत बहुत खराब हो चुकी है। सरकार ने इस सेक्टर के लिए जो राहत पैकेज घोषित किया था, आत्मनिर्भर भारत पैकेज के तहत, उसमें मुख्यतया क्रेडिट फेसिलिटी को बढ़ाया है। आज की अवस्था में, जहां डिमांड में बहुत बड़ी कमी आ चुकी है, एमएसएमइ को इसकी आवश्यकता नहीं है अपितु उन्हें आवश्यकता है ऐसे समाधान की जो उन्हें सीधा लाभ पहुंचा सके। उनके जो फिक्सड पेमेंट एंड चार्जेज हैं, जैसे कि बिजली के बिलों में छूट प्रदान करना, इस दिशा में एक कदम हो सकता है।

कोविड-19, महामारी के बाद जहां चीन से व्यवसाय करने में वैश्विक असंतोष बढ़ा है, वहीं गुड्स एंड सर्विस में प्रमुख निर्यातक बनने, का भारत के लिए यह एक अच्छा अवसर साबित हो सकता है। ऐसे में सरकार को एक्सपोर्ट फैक्टरिंग की बढ़ती हुई आवश्यकता पर भी ध्यान देना चाहिए। वर्ष 2018 में, उस समय के वित्त मंत्री स्व. अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में वादा किया था कि वो टीआरइडीएस को जीएसटी डेटाबेस से लिंक करवाएंगें। ऐसा करने से एमएसएमइ में विष्वसनीय जानकारी का आदान-प्रदान होता, जिससे कि निष्चित रूप से फैक्टरिंग व्यवसाय को बढ़ावा मिलता। परन्तु दुर्भाग्य से अब तक इस दिषा में कोई भी ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

बिल में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिससे कि फैक्टरिंग व्यवसाय में उचित छूट दर का निर्धारण हो सके। बाजार में लिक्विडिटि प्रदान करने के लिए फाईनेंसर्स जो छूट दर फीस के रूप में चार्ज करते है उसका नियमन होना अत्यन्त आवष्यक है। ऐसा करने से छूट दर बाजार भाव से निर्धारित नहीं होगी व एमएसएमइ को लाभ पहुंचाएगी।संशोधन बिल भागीदारी के लिए सीमा को हटाकर फैक्टरिंग में भाग ले सकने के लिए एनबीएफसी के दायरे को बढ़ाता है। परन्तु एमएसएमइ की परिभाषा बदल जाने से मौजूदा सात एनबीएफसी-फैक्टर्स की संख्या में विस्तार के साथ अचानक हजारों संभावित फक्टोरिंग व्यवसाय के लिए रजिर्स्टड होंगे। इससे आरबीआइ को एक विशाल नियामक जिम्मेदारी निभानी होगी। इससे आरबीआइ पर अनावष्यक वित्त व प्रषासनिक भार बढ़ेगा। यदि ‘फैक्टर‘ शब्द को ‘कंपनी‘ शब्द से बदल दिया जाए तो यह सभी एनबीएफसी को पंजीकरण की आवश्यकता नहीं होगी व यह उन्हें फैक्टरिंग करने में सक्षम बनाएगा।

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