Child Marriage In Rajasthan: रूढ़िवादिता और कानून के बीच फंसता पेंच
Child Marriage In Rajasthan. कानून बनने के बाद भी बाल विवाह हो जाते हैं लेकिन अब इन बाल विवाह को निरस्त करवाने को लेकर जनजागरूकता भी आई है।
जोधपुर, रंजन दवे। Child Marriage In Rajasthan. भारतीय समाज में विवाह को एक परंपरा और पवित्र रिश्ता माना गया है। समाज मे विवाह को अलग-अलग प्रकारों में विभाजित कर समझाया भी गया है। कानून बनने के बाद भी राजस्थान में भी विवाहों से इतर बाल विवाह हो जाते हैं, लेकिन अब इन बाल विवाह को निरस्त करवाने को लेकर जनजागरूकता भी आई है। बाल विवाह की उलझन में फंसे कानूनी दांवपेंचों से इसे निरस्त करवाने की राह चुनते हैं।
कानून के जानकारों के अनुसार, हिंदू विवाह अधिनियम सेक्शन 5 के अनुसार विवाह को लेकर युवक-युवतियों की आयु का निर्धारण किया गया है। महिला की आयु 18 और पुरुष की 21 वर्ष को बालिग मानने के साथ-साथ विवाह के अन्य नियम भी बनाए गए हैं, जिनमे तय उम्र के अलावा पागल व्यक्ति, विकृत मानसकिता, एक ही रक्त संबंध और सपिंड वाले जनों में विवाह कानूनन निषेध है।
बाल विवाह को निरस्तीकरण को लेकर चाइल्ड मैरिज एक्ट 2006 के सेक्शन 3 प्रावधान है। हालांकि इस क्षेत्र के जानकारों के रूप में राजस्थान हाईकोर्ट के अधिवक्ता प्रवीण दयाल दवे का तर्क ये भी रहा है कि यदि विवाह का कहीं पंजीयन नहीं हुआ हो तो भी वो शून्य नहीं माना जा सकता। लेकिन विवाह के अल्पायु में होने और बाद में मुकलावा होने ( विवाह के कई वर्ष बाद बालिग होने पर बधू के ससुराल जाने की प्रथा) से बीच के समय यदि कोई भी पक्ष यदि चाहे तो वह विवाह शून्य श्रेणी में ही माना जाएगा।
ऐसे विवाह प्रारंभ से कानूनी तौर पर शून्य ही माने जाते रहे हैं, लेकिन सामाजिक बंधनों, मान्यताओं और रूढ़ियों के दबाव के कारण कानूनी मदद से विवाह निरस्त करवाने की प्रकिया अपनाई जाती है, जिसके लिए 2006 पूर्व में शारदा एक्ट और हिंदू मैरिज एक्ट के तहत बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम के सेक्शन 3 में इसका वर्णन है।
इसके इतर राजस्थान में बाल विवाह निरस्त करवाने को लेकर काम कर रहे प्रदेश व्यापी संगठन सारथी ट्रस्ट और उसकी डारेक्टर कृति भारती का मत है कि वर वधू के बालिग होने के दो साल तक न्यायालय के द्वारा अल्पायु में हुए विवाह को निरस्त करवाया जा सकता है। इसके साथ ही नाबालिग वर-वधु अपने संरक्षक, अभिभावक और नेक्स्ट फ्रेंड के जरिये निरस्त की प्रकिया को अंजाम दे सकता है। हालांकि बाल विवाह एक, विवाह की श्रेणी के अंतर्गत ही है, लेकिन इसमें विवाह करने वाले नहीं अपितु करवाने वाले पर आपराधिक मामला दर्ज होने का प्रावधान है।
एक तर्क ये भी
कानून के जानकार शैलेंद्र चौहान, अधिवक्ता एसके बोहरा और राष्ट्रीय विधि विश्विद्यालय की छात्रा रही हिना कौशल के तर्क के आधार पर कम उम्र में हुई शादी और बालिका के गौना नहीं होने तक (अपने पिता के यहीं रहने) विवाह शून्य ही माना जाता है, ऐसे में जब बालिका अपने पिता के यहां ही है और परिवार की पूर्ण सहमति भी हो तो ऐसी स्थिति में कानूनन विवाह शून्य ही कहलाएगा, जिसे निरस्त करवाने का कोई औचित्य नहीं रह जाता।
जानें, क्या कारण है विवाह निरस्त करवाने का
बाल विवाहों को निरस्त करवाने को लेकर कृति भारती का तर्क है कि लड़कियां ऐसे विवाहों के दुष्परिणाम झेलती हैं। घरेलू हिंसा, बेमेल जोड़े के रूप में हमेशा ही दंश झेलती है। सामाजिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों और बंधनों के चलते प्रताड़ित भी होती हैं। इस डिसबैलेंस को रोकने के लिए समझाइश के साथ कानूनी पहलू मददगार साबित होते हैं, जिससे बाल विवाह निरस्त करवाकर सुलझाया जा सकता है।
इनका कहना है
लोक प्रचलित रूढ़ियों मान्यताओं और व्यवहारों में बंधी परंपरा ही प्रक्रिया के तहत बाल विवाह हो जाते हैं। गौना, मुकलावा जैसी प्रथाओं से पूर्व इसे शून्य ही माना जाएगा। बाल विवाह, विवाह के समय से ही शून्य विवाह है जिसका कोई विधिक अस्तित्व नहीं है फिर भी पक्षकार न्यायालय की शरण लेकर विवाह रद करवा सकता है।
-प्रवीण दयाल दवे, अधिवक्ता, राज उच्च न्यायालय, जोधपुर।
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कानूनी तौर पर विवाह को लेकर नियम कायदे भी बने हैं। कम उम्र में विवाह को लेकर सरकार ने नियम भी बनाए हैं , और बाल विवाह रोकथाम के लिए सरकार प्रयासरत भी है, लेकिन पूर्व में हुए ऐसे विवाहों में वधू की स्थिति और सामाजिक दबाव के कारण विवाह को कानूनी रूप से निरस्त करवाना ही वधू पक्ष के लिए हितकर है।
-कृति भारती, बाल विवाह को लेकर कार्य कर रही सामाजिक कार्यकर्ता।