Gujjar Reservation Movement: जानें, किस बात पर अड़ें हैं गुर्जर; क्यों बार-बार करते हैं आंदोलन

Gujjar Reservation Movement राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की शुरुआत वर्ष 2006 से हुई। तब से लेकर अब तक कई बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं। इस दौरान भाजपा व कांग्रेस की सरकारें रहीं मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकला।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Sat, 31 Oct 2020 06:15 PM (IST) Updated:Sat, 31 Oct 2020 06:26 PM (IST)
Gujjar Reservation Movement: जानें, किस बात पर अड़ें हैं गुर्जर; क्यों बार-बार करते हैं आंदोलन
राजस्थान में गुर्जर आरक्षण को लेकर चक्का जाम करेंगे।

जयपुर, जेएनएन। राजस्थान में गुर्जर अपनी मांगों को लेकर एक नवंबर से फिर आंदोलन करने जा रहे हैं। इस बीच, गहलोत सरकार ने प्रदेश के आठ जिलों में रासुका लगाकर वार्ता में शामिल नहीं हो रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला गुट पर शिकंजा कस दिया है। इधर, गुर्जर आरक्षण संघर्ष समिति के संयोजक कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का कहना है कि रविवार को गुर्जर समाज भरतपुर जिले के पिलूकापुरा में महापंचायत करने के बाद चक्काजाम करेगा। वहीं, सरकार बैंसला गुट को वार्ता के लिए लगातार बुला रही है, लेकिन बैंसला गुट वार्ता नहीं कर रहा है। अब ऐसे में अगर रविवार से चक्काजाम किया जाता है तो बैंसला गुट के नेताओं की गिरफ्तारी भी हो सकती है।

ये हैं गुर्जरों की प्रमुख मांगे

समाज गुर्जरों सहित रैबारी, रायका, बंजारा व गाड़िया लुहार को अति पिछड़ा वर्ग में दिए गए पांच फीसद आरक्षण का मामला संविधान की नौवीं अनुसूची में शामिल कराने, अति पिछड़ा वर्ग का सरकारी भर्तियों में बैकलॉग पूरा करने व देवनारायण बोर्ड के गठन और पिछले आरक्षण आंदोलनों में जिन लोगों के खिलाफ मुकदमें दर्ज हुए हैं, उन्हें वापस लेने की मांग कर रहा है।

जानें, राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की कब हुई शुरुआत

राजस्थान में गुर्जर आंदोलन की शुरुआत वर्ष 2006 से हुई। तब से लेकर अब तक कई बार बड़े आंदोलन हो चुके हैं। इस दौरान भाजपा व कांग्रेस की सरकारें रहीं, मगर किसी सरकार से गुर्जर आरक्षण आंदोलन की समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकला। वर्ष 2006 में एसटी में शामिल करने की मांग को लेकर पहली बार गुर्जर राजस्थान के हिंडौन में सड़कों व रेल पटरियों पर उतरे थे। गुर्जर आंदोलन 2006 के बाद तत्कालीन भाजपा सरकार महज एक कमेटी बना सकी, जिसका भी कोई सकारात्मक नतीजा नहीं निकला।

2007 में 28 की गई जान

राजस्थान में गुर्जरों ने दूसरी बार 21 मई, 2007 को आंदोलन किया था। गुर्जर आंदोलन 2007 के लिए पीपलखेड़ा पाटोली को चुना गया था। यहां से होकर गुजरने वाले राजमार्ग को जाम कर दिया। इस आंदोलन के दौरान 28 लोगों की मौत हुई थी। 

2008 में 72 की घई जान

23 मार्च, 2008 को राजस्थान में भरतपुर के बयाना में पीलुकापुरा ट्रैक पर गुर्जरों ने ट्रेनें रोकीं थीं। इस दौरान सात आंदोलनकारियों को पुलिस फायरिंग में जान गंवानी पड़ी। इन मौतों के बाद गुर्जरों ने दौसा जिले के सिकंदरा चौराहे पर हाईवे को जाम कर दिया। इस दौरान यहां 23 की जान गई। गुर्जर आंदोलन में 2008 तक मौतों का आंकड़ा 28 से बढ़कर 58 हो गया, जो अब तक 72 तक पहुंच चुका है।

गुर्जरों का मकसूदनपुरा में पड़ाव

गुर्जरों का वर्ष 2008 के बाद दो बार  24 दिसंबर, 2010 व 21 मई, 2015 को आंदोलन हुआ। दोनों ही बार में मुख्य केंद्र राजस्थान के भरतपुर जिले की बयाना तहसील का गांव पीलुकापुरा रहा। यहां पर आरक्षण की मांग को लेकर गुर्जरों ने रेल रोकी और महापड़ाव डाला। इसके बाद पांच फीसदी आरक्षण का समझौता हुआ। इसके बाद वर्ष 2018 तक मसला नहीं सुलझा। 

जानें, कौन हैं कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला

कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ। कर्नल किरोड़ी जाति से बैंसला हैं यानी गुर्जर हैं। अपने कैरियर के शुरुआती दौर में बैंसला ने कुछ दिन शिक्षक के तौर पर भी काम किया। हालांकि पिता के फौज में होने के चलते उनका रुझान भी सेना में जाने का हुआ और आखिर वो भी सिपाही के रूप में सेना में भर्ती हो गए। बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे और सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से वतन के लिए जौहर दिखाया। सेना में अपनी जांबाजी के दम पर एक मामूली सिपाही से तरक्की पाते हुए कर्नल की रैंक तक पहुंचे। बैंसला के चार संतान हैं। एक बेटी रेवेन्यु सर्विस व दो बेटे सेना में हैं और एक बेटा निजी कंपनी में कार्यरत है। बैंसला की पत्नी का निधन हो चुका है और वे अपने बेटे के साथ हिंडौन में रहते हैं।

सेना में सेवाओं के बाद जब रिटायर हो कर कर्नल बैंसला राजस्थान लौटे तो उन्होंने गुर्जर समुदाय के लिए अपनी लड़ाई शुरू की। सार्वजनिक जीवन में आने के बाद उन्होंने गुर्जर आरक्षण समिति की अगुवाई करते हुए सरकारों से अपनी मांगें मनवाने में जुट गए। कई बार आंदोलनों के दौरान रेल रोकी, पटरियों पर धरने पर बैठे और सरकारों को आरक्षण पर फैसले के लिए मजबूर किया। हालांकि उनके इन आंदोलनों में 72 से अधिक लोगों की मौत भी हुईं।

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