Rajasthan: अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत

Jayantilal Nanoma.अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत हो गई। पुलिस मामले की जांच कर रही है।

By Sachin Kumar MishraEdited By: Publish:Mon, 01 Jun 2020 06:09 PM (IST) Updated:Mon, 01 Jun 2020 09:09 PM (IST)
Rajasthan: अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत
Rajasthan: अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा की सड़क हादसे में मौत

उदयपुर, संवाद सूत्र। अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज और डूंगरपुर के जिला खेल अधिकारी जयंतीलाल ननोमा का रविवार देर रात सड़क हादसे में निधन हो गया। डूंगरपुर जिले के वरदा गांव के समीप उनकी कार अनियंत्रित होकर पलट गई थी। गंभीर घायल ननोमा रात साढ़े तीन बजे उदयपुर के एमबी अस्पताल लाया जा रहा था और बीच राह में उनकी मौत हो गई। ननोमा की मौत से खेल जगत में शोक की लहर छा गई है। ननोमा को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। ननोमा ने कई अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में भारत का प्रतिनिधित्व कर छह गोल्ड सहित कई पदक जीते थे।

ननोमा रविवार रात बांसवाड़ा जिले के बागीदौरा से अपने शारीरिक शिक्षक मित्र कांतिलाल रोत के साथ कार से डूंगरपुर लौट रहे थे। वरदा के समीप थाने से आगे बढ़ते ही उनकी स्कॉर्पिंयो कार अनियंत्रित होकर पलट गई। हादसे में ननोमा गंभीर रूप से घायल हो गए थे और उनके शिक्षक मित्र को भी चोटें आईं। हादसे के बाद वहां ग्रामीणों की भीड़ लग गई और सूचना मिलती ही पुलिस मौके पर पहुंच गई। पुलिस दोनों को तत्काल सागवाड़ा अस्पताल लेकर पहुंची। जहां प्राथमिक उपचार के बाद ननोमा को डूंगरपुर जिले के निजी अस्पताल ले जाया गया। सिर में लगी गंभीर चोट के चलते ननोमा की हालत में सुधार नहीं आने पर रात साढ़े तीन बजे उन्हें उदयपुर के एमबी अस्पताल के लिए रेफर कर दिया गया।

इसी दौरान बीच राह में उनकी मौत हो गई, जबकि उनके मित्र का उपचार निजी अस्पताल में जारी है। ननोमा की मौत के बाद उनका शव सागवाड़ा अस्पताल ले जाया गया, जहां बांसवाड़ा-डूंगरपुर सांसद कनकमल कटारा भी पहुंचे। उन्होंने ननोमा की मौत को खेल जगत की बड़ी हानि बताया। सागवाड़ा अस्पताल में पोस्टमार्टम के बाद सोमवार सुबह ननोमा का शव उनके पैतृक गांव बिलड़ी ले जाया गया। जहां बड़ी संख्या में लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए पहुंचे तथा सोमवार दोपहर बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया। ननोमा डूंगरपुर शहर से तीन किलोमीटर दूर बिलड़ी गांव के रहने वाले थे।

वर्ष 2009 में उन्होंने राष्ट्रीय स्पर्धाओं में छह गोल्ड, साल 2010 में अंतरराष्ट्रीय स्तर की स्पर्धा  में एक गोल्ड तथा दो सिल्वर मेडल जीते थे। इस दौरान वह राजस्थान स्पोर्ट्स काउंसिल सवाई मान सिंह स्टेडियम जयपुर में भी तीरंदाजी कर चुके हैं। उन्हें उनके विशिष्ट खेल के लिए प्रतिष्टित महाराणा प्रताप अवार्ड से नवाजा गया। साल 2017 में राज्य सरकार उन्हें गुरु वशिष्ठ अवार्ड से भी सम्मानित कर चुकी है।

तीन बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच रहे

डूंगरपुर की धरा के लाल जयंतीलाल ननोमा तीन बार भारतीय तीरंदाजी टीम के कोच भी रहे। वर्ष 2013 में वह पहली बार भारतीय टीम के कोच बने। वर्ष 2015 में दूसरी बार टीम के कोच बने और उनके साथ 16 तीरंदाजों की टीम ने साउथ अमेरिका के कोलंबिया में आयोजित वल्र्ड कप तीरंदाजी स्पर्धा  में भाग लिया। वह वर्ष 2018 में तीसरी बार फिर भारतीय टीम के कोच बने। वर्ष 2019 में उन्हें तीरंदाजी टीम का कोच बनाया गया था। लेकिन प्रतियोगिता स्थगित हो जाने के कारण वह नहीं जा पाए थे। 

उधार के धनुष से दिलाया था भारत को गोल्ड

अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा सोमवार को पंचतत्व में विलीन हो गए। अब उनकी स्मृतियां ही शेष हैं। आदिवासी घर से निकले जयंतीलाल के किस्से लोग कहते नहीं थकते। वह अपने खेल के प्रति बेहद गंभीर थे और आधुनिक तीर-कमान के बगैर भी उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाई। अंतरराष्ट्रीय चैंपियनशिप में भाग लेने के दौरान उन्होंने कुछ समय के लिए अपने गुरु से उधार में मिले कमान से ही भारत की झोली में

गोल्ड डाल दिया। उसके गुरु रहे लिंबाराम भी अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज रह चुके हैं।

अंतरराष्ट्रीय पहचान बनाने वाले तीरंदाज जयंतीलाल ननोमा का जन्म पैंतीस साल पहले डूंगरपुर जिले के बिलड़ी गांव में हुआ था। उसके पिता जीवाजीराम किसान थे जबकि माता गृहिणी थी। बालपन से ही खेल के प्रति जयंती की रुचि थी और वह स्कूल में फुटबॉल खेला करते थे। छठवीं कक्षा में आने पर बालक जयंती की रुचि तीरंदाजी की ओर बढ़ी और बांस के बनाए धनुष से ही निशाना साधने में जुट गए। कुछ समय में वह बेहतर तीरंदाज बन गए तथा उसके अचूक निशाने देखकर सहपाठी ही नहीं, उसके गुरुजन भी अचंभे में रह जाते थे।

स्कूली शिक्षा के दौरान उसने जिला तथा प्रदेश स्तर पर कई मेडल अपने नाम किए। वर्ष 2006 में जयंतीलाल को पहली बार भारतीय तीरंदाजी टीम में अवसर मिला और राष्ट्र स्तरीय स्पर्द्धाओं के बाद वर्ल्ड चैंपियनशिप में भी

अचूक निशाने लगाकर गोल्ड मेडल जीता।

राज्य सरकार ने स्पोर्ट्स कोटे से जयंतीलाल को जिला खेल अधिकारी पद से सम्मानित किया। पिछले साल हुई मुलाकात में जयंतीलाल ने बताया था कि किस तरह उन्होंने अपने गुरु और अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज लिंबाराम से उधार में लिए धनुष से भारत की झोली में गोल्ड डाला। उन्होंने बताया कि उनके पास आधुनिक धनुष नहीं था और वल्र्ड चैंपियनशिप में भाग लेने के दौरान वह इसकी वजह से खासे डरे हुए थे। तभी गुरु लिंबाराम से मिले धनुष ने उसे हौंसला ही नहीं दिया, बल्कि देश को जीत दिलाने में मदद प्रदान कर दी।

मलेशिया में कोचिंग का ऑफर ठुकराया, जनजाति क्षेत्र में तैयार कर रहेे थे खिलाड़ी

तीरंदाज जयंतीलाल को मलेशिया में कोच का ऑफर मिला. लेकिन उन्होंने देश के बच्चों को तीरंदाजी सिखाने के लिए यह ऑफर ठुकरा दिया। उनका कहना था कि उनके लिए देश की मिट्टी पहले है। वह पिछले दो साल डूंगरपुर में देश भर के 44 बच्चों को तीरंदाजी का हुनर सिखाने में जुटे थे। जिनमें 22 लड़की और 22 लड़के शामिल थे।

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