Rajasthan Politics News: मौजूदा हालात में गहलोत और पायलट दोनों को नुकसान, पुराने कांग्रेसियों में पीड़ा
Rajasthan Politics News पायलट को दूर करने के बाद कांग्रेस के पास कोई ऐसा युवा चेहरा नहीं बचेगा जिसकी पूरे प्रदेश में पकड़ हो। ऐसे में गहलोत और पायलट का अलग होना दोनों के लिए नुकसान
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। Rajasthan Politics News कांग्रेस का एक वर्ग इस प्रयास में जुटा है कि सचिन पायलट को पार्टी से बाहर होने से रोका जाय। वहीं राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की पूरी कोशिश है कि पायलट को जल्द से जल्द पार्टी से बाहर किया जाय, जिससे वे अपनी मनमर्जी के फैसले कर सकें।
उप मुख्यमंत्री और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से पायलट को बर्खास्त कराने के बाद गहलोत ने अपने विश्वस्त राज्य के शिक्षामंत्री गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनवा लिया। वहीं युवक कांग्रेस और सेवादल की कमान भी अपने विश्वस्तों के हाथ में दिलवा दी।
पायलट के प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए गहलोत संगठन में अपनी मर्जी के फैसले नहीं करा पा रहे थे। सत्ता में आने के पौने दो साल बाद भी राजनीतिक नियुक्तियों की प्रक्रिया भी इसलिए शुरू नहीं हुई, क्योंकि पायलट बराबर का हिस्सा मांग रहे थे। अब डोटासरा के अध्यक्ष बनने से संगठन की कमान अप्रत्यक्ष रूप से गहलोत के हाथ में आ गई। प्रदेश की राजनीति में पायलट हमेशा से ही गहलोत की राह में बड़ा कांटा रहे हैं।
पायलट की संगठन में पकड़ के कारण गहलोत अपनी मन-मर्जी नहीं चला पा रहे थे। पिछले पौने दो साल के शासन में ऐसे कई मौके आए जब गहलोत व पायलट के बीच टकराव हुआ ।प्रदेश के पुराने कांग्रेसियों का मानना है कि पायलट को बर्खास्त तो किया गया, लेकिन उनके जाने से गहलोत व पार्टी को भी कम नुकसान नहीं है। गुर्जर बहुल करीब 10 जिलों में पायलट की पकड़ का नुकसान गहलोत की अगुवाई में कांग्रेस को हो सकता है।
पायलट को यह नुकसान
पायलट की छवि संघर्षशील युवा नेता की रही है। हिंदी भाषी राज्यों में कांग्रेस के बड़े नेता के रूप में उनकी पहचान रही है। विभिन्न राज्यों के चुनाव में वे स्टार प्रचारको की सूची में शामिल होते रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष व डिप्टी सीएम दोनों पदों पर एक साथ रहने से उनका कद बढ़ा था, लेकिन ताजा घटनाक्रम में उनका नुकसान ज्यादा होता दिखाई दे रहा है। गहलोत लगातार उन्हे घेरते गए और वे बोल्ड निर्णय नहीं ले सके। वे अपने भविष्य की राजनीति को लेकर निर्णय नहीं कर सके। इससे उनके समर्थको में थोड़ी निराशा नजर आई है।
प्रदेश में क्षेत्रीय दलों को वहां कोई खास तवज्जो नहीं मिली है, ऐसे में अगर सचिन पायलट कोई क्षेत्रीय दल बनाने की कोशिश करते हैं तो वह भी उनके लिए कोई खास फायदे का सौदा नहीं होगा। भाजपा में जाने का विचार करते हैं तो वसुंधरा राजे जैसे दिग्गज उनका समर्थन नहीं करेंगे। हां यह बात जरूर है कि यदि वे कांग्रेस से अलग होते हैं तो गुर्जर वोट बैंक पार्टी से अलग हो जाएगा।
गहलोत भी होगा नुकसान
ऐसा लग रहा है कि गहलोत ने अपनी राह का कांटा साफ कर दिया। लेकिन पायलट के जाने से उन्हें भी कम नुकसान नहीं है। पार्टी सत्ता में आई थी तो उसमें पायलट का योगदान काफी था। अगर पायलट कुछ समर्थक विधायकों के साथ पार्टी छोड़ जाते हैं तो गहलोत सरकार पर हमेशा तलवार लटकती रहेगी। भाजपा उन्हे कभी भी परेशानी में ला सकती है ।
कर्नाटक व मध्यप्रदेश का घटनाक्रम आगे जाकर राजस्थान में भी दोहराया जा सकेगा। पायलट की नाराजगी का पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में गहलोत को नुकसान होगा। पायलट को दूर करने के बाद कांग्रेस के पास कोई ऐसा युवा चेहरा नहीं बचेगा जिसकी पूरे प्रदेश में पकड़ हो। ऐसे में गहलोत और पायलट का अलग होना दोनों के लिए नुकसान का सौदा है।