सीख लेनी हो तो काया के सरकारी स्कूल के शिक्षक और बच्चों से लें, पहाड़ी पर तैयार किए 'गुरुकुल'

कोरोना काल में उदयपुर जिले के आदिवासी बच्चों की पढ़ाई प्रभावित नहीं हो इसलिए पहाड़ी पर लगाए चार पाइंट जहां पढ़ रहे बच्चे एंड्रायड मोबाइल और इंटरनेट की अनुपलब्धता के बाद पहाड़ी पर तैयार किए गुरुकुल सीख लेनी हो तो काया के सरकारी स्कूल के शिक्षक और बच्चों से

By Priti JhaEdited By: Publish:Mon, 19 Jul 2021 01:05 PM (IST) Updated:Mon, 19 Jul 2021 01:05 PM (IST)
सीख लेनी हो तो काया के सरकारी स्कूल के शिक्षक और बच्चों से लें, पहाड़ी पर तैयार किए 'गुरुकुल'
उदयपुर काया क्षेत्र के जनजाति क्षेत्र में पहाड़ियों पर साफ-सफाई कर बच्चों को शिक्षा देते सरकारी स्कूल के शिक्षक।

उदयपुर, सुभाष शर्मा। कोरोना काल में शहरी क्षेत्र के निजी स्कूल के बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन जारी है लेकिन आदिवासी क्षेत्र के बच्चों के समक्ष बड़ी चुनौतियां हैं। ना तो उनके पास एंड्रायड मोबाइल फोन हैं और ना ही उनके क्षेत्र में इंटरनेट की उपलब्धता। ऐसे में उदयपुर जिले के काया स्थित राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल के शिक्षकों ने ऐसी पहल की है, जो देश भर के शिक्षकों और बच्चों के लिए सीख से कम नहीं।

उदयपुर जिले के आदिवासी क्षेत्र में पहाड़ियों पर लोग रहते हैं। जहां मोबाइल नेटवर्क उपलब्ध नहीं हैं। ऐसे में यहां के जनजाति क्षेत्र में स्कूली बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई संभव नहीं है। ऐसे में ज्यादातर बच्चों की पढ़ाई कोरोना काल में प्रभावित है। ऐसे में उदयपुर जिले के राजकीय उच्च माध्यमिक स्कूल काया के शिक्षकों ने इस समस्या का समाधान करने का प्रयास करते हुए 'एक पहल आओ घर से सीखें अभियान स्माइल-3' के तहत शिक्षा देने की योजना पर काम शुरू किया।

काया गाँव के विधार्थी दूरस्थ पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं। इस क्षेत्र के लोग अकसर बिजली गुल रहने तथा नेटवर्क की समस्या से जूझते रहते हैं। साथ ही अभिभावको की आर्थिक स्थिति ऐसी है कि वह अपने बच्चों को एंड्रायड मोबाइल फोन नहीं दिला सकते।

ताकि ग्रामीण और जनजाति बच्चे पिछड़ ना जाएं

विद्यालय के प्रधानाचार्य मोहनलाल मेघवाल और स्टाफ़ को यह चिंता सताने लगी कि शिक्षा के क्षेत्र में ग्रामीण विद्यार्थी, कहीं शहरी विधार्थी से पिछड़ न जाए। इस समस्या से अपने विद्यार्थियों को उभारने के लिए गाँव के जिन फलों (जहां कुछ परिवार रहते हैं) में विद्यार्थी निवास करते हैंं, वहां "चल गुरुकुल" संचालन करने का निर्णय बच्चों के हित मे लेते हुए काया गाँव के फला महेन्द्र बावड़ी और भोज्यातालाब की पहाड़ी पर एक वृक्ष के नीचे संचालित करने का निर्णय लिया।

श्रमदान से सीढ़ीनुमा 'गुरुकुल' तैयार किए

तय स्थानों पर विद्यालय के वरिष्ठ अध्यापक चन्द्रशेखर परमार, जयन्त चौबीसा, शारीरिक शिक्षक घनश्याम खटीक, भगवान लाल गुर्जर ने विद्यार्थियों के साथ मिलकर कई घंटे श्रमदान कर वहाँ पर सफाई की। सीढ़ीनुमा ऐसी जगह तैयार की, जहां सोशल डिस्टिेंडिंग के साथ बच्चों को पढ़ने के लिए बिठाया जा सके। इन गुरुकुलों पर कक्षा 9 से 12 तक विद्यार्थियों को बारी-बारी से प्रतिदिन लगभग 20 विद्यार्थियों को दैनिक रूप से पढ़ाया जाता है। साथ ही उनको गृहकार्य के साथ सभी विषयों में आ रही समस्याओं का समाधान कराते हुए पढ़ाया जा रहा हैं।

कोरोना गाइडलाइन की पालना करते हुए बच्चों का टेम्प्रेचर, आॅक्सीजन लेवल, साबुन से हाथ धोकर व हाथों को सेनेटाइज करने के बाद पढने के लिए बिठाया जाता है। गायत्री मंत्र के जाप के साथ योग और आसन करवाए जाते हैं। स्कूल के शिक्षकों ने ऐसे गुरुकुलों की संख्या बढ़ा दी है और इन दिनों आमदरी, चणबोरा, सेवा मन्दिर वाले हनुमानजी, उप स्वास्थ केंद्र परिसर, पीपली वाले महादेव चौक पर बच्चों को पढ़ा रहे हैं। 

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