BHU: डॉ. फिरोज खान बोले, मैंने संस्कृत को पूजा; हमसें अब तक नहीं हुआ धार्मिक भेदभाव
BHU muslim sanskrit assistant professor Dr Firoz Khan. मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद फिरोज खान ने संस्कृत की पढ़ाई की।
जयपुर, नरेन्द्र शर्मा। Feroze Khan. बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में संस्कृत के सहायक प्रोफेसर बने जयपुर के बगरू निवासी डॉ. फिरोज खान का मानना है कि सभी धर्म एकता और प्रेम का संदेश देते हैं। मुस्लिम समुदाय से होने के बावजूद पांचवीं से फिरोज खान ने संस्कृत की पढ़ाई प्रारंभ की और फिर जयपुर के राष्ट्रीय संस्कृत शिक्षा संस्थान से एमए और पीएचईडी की उपाधि हासिल की। दैनिक जागरण ने फिरोज खान से उनके पिता पिता रमजान खान के मोबाइल फोन के माध्यम से बात की। पहले तो उनके पिता बेटे से बात कराने को तैयार नहीं हुए, लेकिन फिर बड़ी मुश्किल से वे राजी हुए।
फिरोज खान का कहना है कि मेरे दादा संगीत विशारद गफूर खान सुबह और शाम गो ग्रास निकालने के बाद ही भोजन करते थे, पिता रमजान खान गो सेवा करने के साथ ही भजन गायक हैं। फिरोज खान का कहना है कि मैंने बचपन से ही घर में भगवान कृष्ण की फोटो देखी है। पूरा परिवार गोसेवा में व्यस्त रहता है। उन्होंने कहा कि बचपन से लेकर पीएचईडी तक की शिक्षा ग्रहण करने तक कभी धार्मिक भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा। सभी लोगों ने संस्कृत पढ़ने को लेकर प्रोत्साहन दिया। लेकिन अब बीएचयू में प्रोफेसर बनते ही धर्म के आधार पर देखा जाने लगा है।
उन्होंने बताया कि गांव और राष्ट्रीय संस्कृत शिक्षा संस्थान तक उन्हें कभी धर्म के आधार पर ना तो उपेक्षित किया गया और ना ही किसी ने गलत नजरों से देखा। मैंने हमेशा संस्कृत को पूजा है।
सीएम कर चुके सम्मानित
डॉ. फिरोज खान को बीएचयू में प्रोफेसर बनाए जाने के बाद से वहां के छात्र विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। लेकिन जयपुर स्थित राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्राचार्य प्रोफेसर अर्कनाथ चौधरी अपने स्टूडेंट के इस मुकाम तक पर पहुंचने पर बेहद खुश है। उन्होंने कहा कि फिरोज खान होनहार युवा है। फिरोज खान को 14 अगस्त को संस्कृत दिवस की पूर्व संध्या पर जयपुर में आयोजित राज्य स्तरीय समारोह में संस्कृत युवा प्रतिभा सम्मान समारोह में सम्मानति किया गया। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें सम्मानित किया। फिरोज खान के छोटे भाई शकील ने बताया कि हमें कभी भेदभाव का अहसास ही नहीं हुआ, लेकिन ना जाने क्यों अब इसे मुद्दा बनाया जा रहा है। बगरू कस्बे के लोग भी फिरोज खान के चयन को लेकर हो रहे विरोध से नाखुश हैं।
बीएचयू विवाद में फिरोज खान के पिता का छलका दर्द, कहा, अच्छा रहता संस्कृत की तालीम के बजाय बेटे को मुर्गे की दुकान खुला दी होती
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के धर्म-विज्ञान संकाय में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर जयपुर जिले के बगरू निवासी फिरोज खान का चयन विवाद का कारण बना हुआ है । बीएचयू के विद्यार्थी उनकी नियुक्ति को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। इस बीच, उनके परिजन इस बात को लेकर चिंतित हैं कि कहीं उन्हें किसी तरह का नुकसान नहीं हो जाए। विवाद को लेकर उनके पिता का दर्द छलका पड़ता है। वह कहते हैं कि हमने बड़े अरमान से फिरोज खान को संस्कृत की पढ़ाई कराई थी। भजन-कीर्तन करने वाले पिता कहते हैं कि अब लगता है कि मैंने बेटे को संस्कृति की तालीम दिलाने के बजाय मुर्गे की दुकान खुलवा दी होती तो अच्छा रहता है।
गौरतलब है कि उनका पूरा परिवार संस्कृत में दिलचस्पी रखता है। उनका आपने पड़ोस में रहने वाले हिंदू परिवारों के साथ भी अच्छा मेलजोल है । फिरोज की नियुक्ति को लेकर देशभर में बहस छिड़ी हुई है । अलबत्ता, बीएचयू प्रशासन का कहना है कि चयन समिति सभी को मौका देती है, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का हो । दूसरी तरफ फिरोज खान के पिता रमजान खान बड़े दुखी मन से कहते हैं कि मैंने बड़े अरमानों से बेटे को संस्कृत की तालीम दिलाई थी। एक बातचीत में उन्होंने कहा कि मैंने जिंदगीभर संस्कृत से मोहब्बत की। यही वजह है कि बेटे को भी दूसरी कक्षा से संस्कृत की तालीम दिलाई, लेकिन अब दिल कचोट रहा है। इस स्तर पर पहुंचकर भी कुछ लोगों के विरोध के चलते बेटे का भविष्य दांव पर लगा दिख रहा है। अब लगता है कि संस्कृत की शिक्षा दिलाने के बजाय बेटे को मुर्गे की दुकान खुलवा देता तो ज्यादा ठीक रहता। तब लोगों को आपत्ति नहीं होती । रमजान खान ने भी संस्कृत में शास्त्री की उपाधी ली । वे काफी बेहतर ढंग से संस्कृत के श्लोक बोलते हैं ।
बचपन से ही संस्कृत से लगाव के कारण उन्होंने भजन-कीर्तन गायन को अपना पेशा बनाया है । वे माह में आठ से दस दिन प्रदेश के विभिन्न शहरों में भजन गाने के लिए जाते हैं। उन्होंने बताया कि संस्कृत में उपाध्याय तक की पढ़ाई उन्होंने जयपुर जिले के महापुरा संस्कृत स्कूल से की। इतना ही नहीं बाद में उन्होंने शास्त्री तक की शिक्षा भी ग्रहण की। प्रशासन को धन्यवाद, विरोधियों को नसीहत फिरोज खान का परिवार अब भी तंगहाली में गुजारा कर रहा है। उसके पिता कहते हैं कि कभी मजहब के आधार पर बच्चों को भाषा में फर्क करना नहीं सिखाया। जैसी हमारे देश की संस्कृति रही है। कोई हिंदू-मुस्लिम में भेद नहीं करता, यही वजह रही कि संस्कृत में शिक्षा लेकर फिरोज अपनी योग्यता से बीएचयू तक पहुंचा। यह हमारे लिए फक्र की बात है कि बीएचयू में उसका चयन हो गया। लेकिन, मैं विरोध करने वालों से कहूंगा कि उन्हें एक बार मंथन करना चाहिए। बीएचयू प्रशासन को धन्यवाद देते हुए रमजान खान ने कहा कि प्रशासन ने मेरे बेटे की योग्यता को पहचाना।