राजस्थान के शरद माथुर ने छह साल में लिखी रामचरितमानस, 150 किलो है वजन
Sharad Mathur. राजस्थान में जयपुर के सांगानेर में रहने वाले शरद माथुर ने छह साल में पूरी रामचरितमानस लिखी है।
मनीष गोधा, जयपुर। रामचरितमानस अब तक कई रूप में हमारे सामने आ चुकी है, लेकिन जयपुर के सांगानेर में रहने वाले शरद माथुर इसे बहुत वृहद स्वरूप में प्रस्तुत कर रहे है। उन्होंने ऑयल पेंट और ब्रश की सहायता से पूरी रामचरितमानस लिखी है। इसे लिखने में करीब साढ़े छह साल का समय लग गया। एथ्री आकार करीब तीन हजार पन्नों में लिखी इस रामचरितमानस का वजन 150 किलो है। एक से सवा इंच आकार के अक्षरों में इसे लिखा गया है। इसकी जिल्दसाजी मुबारक भाई नाम के एक मुसलमान ने की है। अब शरद इसे अयोध्या में रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर को भेंट करना चाहते हैं।
करीब 48 साल की उम्र के शरद माथुर आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। सुंदरकांड का पाठ करते है और बच्चों को संगीत सिखाते हैं। सुंदरकांड की आरती और बच्चों से मिलने वाली फीस से गुजारा होता है और कुछ मकान के किराए की आय होती है। रामचरितमानस तैयार करने में उन्होंने करीब पांच लाख रुपये खर्च कर दिए, लेकिन भगवान राम के इस काम को पूरा करने के लिए उन्होंने किसी से कोई आर्थिक सहयोग नहीं लिया। शरद बताते है कि दिक्कतें तो आईं, लेकिन भगवान की कृपा कुछ ऐसी रही कि काम कभी रुका नहीं। व्यवस्था बैठती रही और आखिर यह यज्ञ पूरा हो गया।
इस तरह लिखी रामचरितमानस
उन्होंने बताया कि सुंदरकांड का पाठ करते हुए ही कई बार यह लगता था कि अक्षर कुछ बड़े होने चाहिए, ताकि जिनकी नजर कमजोर है, वो भी इसे आसानी से पढ़ सकें। बस इतने से विचार के साथ सुंदरकांड लिखना शुरू किया। सुंदरकांड पूरा हो गया तो आत्मविश्वास बढ़ गया और फिर एक-एक कर रामचरितमानस के सभी कांड लिख डाले। लाल रंग के ऑयल पेंट और ब्रश की मदद से एक से सवा इंच आकार के अक्षरों में इसे लिखा है। वो बताते हैं कि एक पेज लिखने में करीब तीन से चार घंटे का समय लगता था। बाकी समय अपने काम को देता था। परिवार में मां, पत्नी पूनम और दो बच्चे शुभम व साहिल हैं। उनका भी पूरा सहयोग मिला। मैं लिखता था और पत्नी व बच्चे इसका बाॅर्डर बनाने और लैमिनेशन का काम करते थे। रामचरितमान के बाद अब उनका आत्मविश्वास इतना बढ़ गया है कि उन्होंने इसी तरह गीता का लेखन शुरू कर दिया है। इसके दो पेज लिख भी दिए हैं। वो गीता के सभी श्लोक और इनका हिंदी अर्थ लिख रहे हैं।
जिल्दसाजी कराना मुश्किल हो गया
शरद ने बताया कि चूंकि आकार बड़ा था, इसलिए इसकी जिल्दसाजी कराना मुश्किल हो गया। हर कांड की अलग जल्दसाजी होनी थी। जिल्दसाजी के लिए मैंने लकड़ी की पतली प्लाई तैयार कराई। करीब 170 मीटर कपड़ा तैयार कराया। इस पर भगवान राम का चित्र और पूरा डिजाइन छपवाया। लेकिन इसकी जिल्दसाजी करने के लिए कोई तैयार नहीं हुआ। मैंने जयपुर में छोटे-बडे सभी बाइंडरों से संपर्क किया, लेकिन मेहनत का काम था, इसलिए किसी ने हामी नहीं भरी, जबकि मैं इसके दोगुने पैसे देने को भी तैयार था। इसी बीच, किसी ने सांगानेर में ही रहने वाले मुबारकअली का नाम बताया। मैंने संपर्क किया, उन्हें काम बताया तो पहले तो उन्होंने मना कर दिया, बोले कि समय नहीं है। मैं वापस आ गया, करीब दो घंटे बाद उन्हीं का फोन आया और काम के लिए तैयार हो गए। जिस काम के लिए मैं हजार रुपये तक देने को तैयार था, उन्होंने और उनके साथी सुनील कुमावत ने सिर्फ साढ़े तीन सौ रुपये में कर दिया।
अयोध्या में बनने वाले राममंदिर में भेंट करना चाहते हैं रामचरितमानस
शरद बताते हैं कि जब मैंने इसे लिखने का विचार बनाया तो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की तैयारी पूरी हो गई थी। मुझे लगा कि अब राममंदिर बन ही जाएगा। अब मेरी इच्छा यही है कि यह रामचरितमानस मैं अयोध्या में रामजन्मभूमि पर बनने वाले मंदिर को भेंट करूं। इस रामचरितमानस को रखने के लिए शरद ने लकड़ी और कांच की अलमारी भी तैयार कराई है। इसके साथ ही वे इसकी फोटो काॅपी भी करा चुके हैं, ताकि यह छोटे स्वरूप में भी लोगों को उपलब्ध हो सके। वे यह प्रति प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी भेंट करना चाहते हैं।