बांसवाड़ा में दुष्कर्मी भाई को 20 साल की कड़ी कैद मूकबधिर बहन के पेट दर्द की जांच में उसके गर्भवती होने का पता चला
तत्कालीन पुलिस अधीक्षक तेजेश्वरी गौतम ने महज सात दिन में पीड़िता के गर्भ की डीएनए रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी थी। कोरोना महामारी के चलते डेढ़ साल तक बंद अदालत के बंद रहने से इस मामले का फैसला देरी से आया।
उदयपुर, संवाद सूत्र। मूकबधिर नाबालिग बहन के साथ दुष्कर्म के मामले में बांसवाड़ा की पॉक्सो मामलों की विशेष अदालत ने आरोपी चचेरे भाई को दोषी ठहराते हुए बीस साल की कड़ी कैद के साथ चालीस हजार रुपए के जुर्माने की सजा सुनाई है। डीएनए रिपोर्ट में पीड़िता का चचेरा भाई उसके गर्भ में पले बच्चे का बायोलॉजिकल पिता पाया गया।
पेट में दर्द होने पर जांच करवाई तो गर्भ में भ्रूण की मौत
अभियोजन सूत्रों के अनुसार 7 मई 2019 को पीड़िता की मां ने उसकी मूकबधिर बेटी से दुष्कर्म की रिपोर्ट पुलिस को दी थी। जिसमें बताया कि पति की मौत के बाद वह गुजरात मजदूरी करने गई थी, जहां उसके साथ उसकी मूकबधिर बटी और बेटे का पालन पोषण करती थी। गुजरात से लौटने के बाद देखा कि उसकी नाबालिग बेटी का पेट फूला हुआ है जिस पर उसने समझा कि उसके पेट गांठ पड़ गई है। उसके पेट में दर्द होने पर वह पांच मई को अस्पताल लेकर पहुंची जहां पता चला कि वह पांच माह की गर्भवती थी और उसके गर्भ में भ्रूण की मौत हो गई थी।
14 वर्ष कठोर एवं 10 हजार रुपए का जुर्माना भी सुनाया
पुलिस ने भ्रूण के डीएनए के आधार पर आरोपी का पता लगाया और उसे गिरफ्तार कर चालान पेश किया था।
इस मामले में अदालत ने आरोपी को भादसं की धारा 376(3), 5(जे)2/6 तथा 5(के)/6 के तहत दोषी माना। जिसमें धारा 376 (3) के तहत 20 साल कठोर कारावास और 20 हजार का जुर्माना, 5(जे)2/6 में 14 वर्ष कठोर एवं 10 हजार रुपए जुर्माना तथा के अलावा 5(के)/6 में 14 वर्ष कठोर एवं 10 हजार रुपए का जुर्माना सुनाया है।
डेढ़ साल तक अदालत के बंद रहने से फैसला देरी से आया
पीड़िता और उसकी मां पक्षद्रोही हुए, डीएनए रिपोर्ट से मिली सजा
इस मामले में खास बात यह रही कि पीड़िता और उसकी मां दोनों ही पक्षद्रोही हो गए थे। जबकि तत्कालीन पुलिस अधीक्षक तेजेश्वरी गौतम ने महज सात दिन में पीड़िता के गर्भ की डीएनए रिपोर्ट अदालत में पेश कर दी थी। कोरोना महामारी के चलते डेढ़ साल तक बंद अदालत के बंद रहने से इस मामले का फैसला देरी से आया।