साढ़े 21 वर्ष बाद कारगिल शहीद के नाम पर रखा गया गांव राणीवलाह के सरकारी स्कूल का नाम

6 जुलाई 1999 को आठ सिख रेंजिमेंट के नायब सूबेदार करनैल सिंह ने कारगिल की चोटियों पर दुश्मन मुल्क से लड़ते हुए शहादत का जाम पिया था।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Jul 2021 06:00 AM (IST) Updated:Mon, 26 Jul 2021 06:00 AM (IST)
साढ़े 21 वर्ष बाद कारगिल शहीद के नाम पर रखा गया गांव राणीवलाह के सरकारी स्कूल का नाम
साढ़े 21 वर्ष बाद कारगिल शहीद के नाम पर रखा गया गांव राणीवलाह के सरकारी स्कूल का नाम

धर्मबीर सिंह मल्हार, तरनतारन: कारगिल की चोटियों पर 6 जुलाई 1999 को आठ सिख रेंजिमेंट के नायब सूबेदार करनैल सिंह ने दुश्मन मुल्क से लड़ते हुए जब शहादत का जाम पिया था तो उनके बड़े बेटे गुरप्रीत सिंह की आयु पांच वर्ष थी। छोटा बेटा यादविदर सिंह दो वर्ष का था। इन दो मासूम बच्चों की परवरिश करने वाली रणजीत कौर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था।

कारगिल शहीद नायब सूबेदार करनैल सिंह की पत्नी रणजीत कौर चोहला साहिब में गैस एजेंसी चलाती है। विधान सभा हलका खडूर साहिब के गांव राणीवलाह के सरकारी स्कूल को शहीद के नाम से जाना जाए। इसके लिए रणजीत कौर वर्षो से समय की सरकारों को पत्र विहार कर रही थी। हर पांच वर्ष बाद गांव की पंचायत से मता पारित करवाकर रणजीत कौर अपने शहीद पति की शौर्य गाथा सुनाते हुए सरकारी नूमाइंदों तक पहुंच करती रही। खडूर साहिब के विधायक रमनजीत सिंह सिक्की द्वारा विस चुनाव दौरान गांव में संबोधन करते जो आश्वासन दिया गया था। वह चार माह पहले पूरा हुआ है। शिक्षा मंत्री विजय इंद्र सिगला द्वारा नोटिफिकेशन जारी करवाकर गांव के सरकारी स्कूल का नाम कारगिल शहीद करनैल सिंह के नाम पर करवाया गया। रणजीत कौर ने दैनिक जागरण को बताया कि उसका बड़ा बेटा गुरप्रीत सिंह गैस एजेंसी में मदद करवाता है। जबकि छोटा बेटा यादविदर सिंह कानून की पढ़ाई कर रहा है। वीर चक्र से नवाजा गया था नायब सूबेदार को

गुरप्रीत सिंह व यादविदर सिंह ने दैनिक जागरण को बताया कि अपनी मां की जुबान से अपने शहीद पिता की शौर्य गाथा सुनकर गर्व होता है। भले ही बचपन में पिता का साया सिर से उठ गया। परंतु अब लोग कारगिल शहीद के पुत्र होने पर जो प्यार देते है, वह प्यार हमें देश भक्ति की भावना से जोड़ता है। गौर हो कि नायब सूबेदार करनैल सिंह को मरणोप्रांत वीर चक्र से नवाजा गया था। यादविदर सिंह का कहना है कि कारगिल में पिता की शहादत को 21 वर्ष गुजर चुके है। जब भी दिल करता है मां को लेकर पिता की यादगार पर चले जाता हूं। गांव में कारगिल शहीद करनैल सिंह का यहां अंतिम संस्कार किया गया। वह यादगार हमारे लिए बहुत मायने रखती है।

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