वन्य क्षेत्र को बढ़ाने के लिए होगा प्रयास, तभी पर्यावरण को बचाने की बनेगी आस
पर्यावरण को बचाने की चारों ओर दुहाई तो दी जाती है परंतु जंगलों को काटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता। इसी का नतीजा है कि भूजल स्तर से प्रभावित जिला तरनतारन का वन्य क्षेत्र पिछले चार वर्ष से घना नहीं हो पाया।
जागरण संवाददाता, तरनतारन : पर्यावरण को बचाने की चारों ओर दुहाई तो दी जाती है, परंतु जंगलों को काटने का सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता। इसी का नतीजा है कि भूजल स्तर से प्रभावित जिला तरनतारन का वन्य क्षेत्र पिछले चार वर्ष से घना नहीं हो पाया। माहिरों की मानें तो वन्य का रकबा बढ़ाना इतना आसान नहीं होता। परंतु पर्यावरण को बचाने के लिए किए जा रहे प्रयासों के बावजूद नर्सरिया लगातार दम तोड़ रही है।
तरनतारन जिले की आबादी 11 लाख, 20 हजार, 70 है। इस जिले में चार विधान सभा क्षेत्र आते है, जबकि तहसीलों की संख्या चार (तरनतारन, पट्टी, खडूर साहिब, भिखीविंड) है। इस जिले के हिस्से में अंतरराष्ट्रीय प्रसिद्धि प्राप्त बर्ड सेंक्चुरी आती है। जो 86 वर्ग किलोमीटर में फैली है। जिले में कुल रकबा दो लाख, 38 हजार हेक्टेयर है। अब बात करें कृषियुक्त जमीन की तो दो लाख, 15 हजार हेक्टेयर रकबे में धान, गेहूं, पशुओं का चारा आदि की बिजाई होती है। 19.3 हेक्टेयर रकबे से आलू की फसल ली जाती है। अब बात करें ट्यूबवेलों की तो चार वर्ष पहले जिले में 320 ट्यूबवेल थे, जिनकी संख्या अब बढ़कर 462 तक पहुंच गई है। बागबानी में इस जिले के हिस्से 1578 हेक्टेयर रकबा आता है। जबकि 3751 हेक्टेयर रकबे में वन क्षेत्र है। चार वर्ष पहले इस जिले में वन क्षेत्र काफी घना था। झब्बाल ड्रेन, दोदा ड्रेन के अलावा पंजवड़, कैरों, मुरादपुरा, शाहबाजपुर, खडूर साहिब, सोहल व नारला लिंक ड्रेनों के किनारे घने पेड़, पौधे (जंगलनुमा) होते थे। जो पहले जैसे घने नहीं रहे। इसके अलावा अमृतसर, खेमकरण, रेल मार्ग के दोनों ओर पुराने पेड़ भी अब अपना वजूद गंवा चुके है। जिले में चार वर्ष पहले 13 नर्सरी होती थी। नेशनल हाईवे के निर्माण के अलावा सड़कों के जाल, होटलों, ईमारतों के निर्माण की भेंट पाच नर्सरिया चढ़ चुकी है। फिल्हाल सरकार के पास अभी ऐसी कोई व्यवस्था नहीं जिसके माध्यम से नई नर्सरिया लगाई जा सके।