इंद्रियां मन को बहकाती हैं, भटका रहता है मन
इच्छा निरोध रूपी डंडे से मन को मारने से मन को वश में किया जा सकता है। वीरवार को जैन स्थानक में जारी धर्मसभा को संबोधित करते महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि मनुष्य की इंद्रियां मन के पीछे लगकर कुछ न कुछ मांगती रहती हैं।
जागरण संवाददाता, संगरूर
इच्छा निरोध रूपी डंडे से मन को मारने से मन को वश में किया जा सकता है। वीरवार को जैन स्थानक में जारी धर्मसभा को संबोधित करते महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि मनुष्य की इंद्रियां मन के पीछे लगकर कुछ न कुछ मांगती रहती हैं। मन कभी नहीं भरता। केवल संतोष रखने वाला मनुष्य ही शांति प्राप्त करता है। इंद्रियां कमरे में लगे बिजली स्विच की तरह होती हैं। मन घर के बाहर लगे मेन स्विच की तरह होता है। जब तक मेन स्विच ऑन नहीं होता तब तक अंदर की लाइट नहीं जलेगी।
उदाहरण देते हुए बताया कि किसी समय राजा के राज में एक बकरा कभी तृप्त नहीं होता। राजा ने घोषणा करवा दी कि जो बकरे को तृप्त करेगा उसे आधा राज्य इनाम में दिया जाएगा। बहुत से लोग बकरे को घास खिलाने आने लगे। कई उसे ठंडा पानी पिलाते, लेकिन बकरे का पेट नहीं भरा। एक आदमी ने कहा कि बकरा तृप्त हो गया। राजा ने कहा कि मैं इसकी परीक्षा लूंगा। जब बकरे को घास दी तो उसने खा ली। दूसरा व्यक्ति उसे जंगल ले गया। उसे कुछ खाने को नहीं दिया। कुछ दिनों के बाद बकरे को दोबारा राजा के महल ले आया। व्यक्ति ने कहा कि राजा बकरा पूरी तरह से तृप्त है। यह कुछ भी नहीं खाएगा। राजा ने उसके आगे हरी घास रखीं लेकिन उसने नहीं खाई। राजा ने कहा कि तुमने बकरे को कैसे तृप्त किया। उसने बताया कि जब बकरे के आगे घास डालता था तो उसे डंडे मारता था। बकरे को घास खाने नहीं देता था। उसके मन में डर बैठ गया कि यदि घास खाई तो डंडे खाने पड़ेंगे।
साध्वी ने कहा कि मन बकरे की तरह हैं। डंडा परमात्मा की भांति है। जिससे बचने के लिए मन को काबू में रखना चाहिए। ऐसे में रोजाना दस मिनट सुख आसन में बैठकर दोनों आंखें नाक के अगले हिस्से पर टिका दें। धीर-धीरे स्वास को महसूस करें। इससे मन को शांति मिलेगी। सहमंत्री सतभूषण जैन ने बताया कि प्रधान विजय जैन व गायत्री मितल 63वें आयमल तपस्या में प्रवेश कर गए हैं। तुषार गोयल 20वें दिन में प्रवेश हो गए हैं। वह अपनी इंद्रियों पर कंट्रोल कर रहे हैं।