संगरूर की सियासत तय करेगी पंजाब का समीकरण
जागरण संवाददाता संगरूर शिरोमणि अकाली दल (ब) द्वारा भारतीय जनता पार्टी से 23 वर्ष पुराना है।
जागरण संवाददाता, संगरूर :
शिरोमणि अकाली दल (ब) द्वारा भारतीय जनता पार्टी से 23 वर्ष पुराना गठबंधन तोड़ने से पंजाब ही नहीं, बल्कि हर हल्के की सियासत पर भारी उथलपुथल होने के समीकरण बन गए हैं। अब तक अकाली दल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने वाली भारतीय जनता पार्टी को गांवों में अकाली दल मजबूती प्रदान कर रहा था, लेकिन अब भाजपा को गांव स्तर पर खुद ही कदम जमाने होंगे। वही अकाली दल व भाजपा के अलग-अलग हो जाने उपरांत जिला संगरूर की सियासत पंजाब भर में असर दिखाएगी, क्योंकि आम आदमी पार्टी का अस्तित्व जिला संगरूर से ही जुड़ा है। लोकसभा की इकलौती सीट संगरूर ही नहीं, बल्कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी पार्टी प्रदेश प्रधान भगवंत मान के हाथ में है। उधर, दूसरी तरफ अकाली दल (ब) से अलग होकर अस्तित्व में आया अकाली दल (डी) का झंडा उठाकर प्रधान सुखदेव सिंह ढींडसा अलग तौर पर सियासत में अपनी ताल ठोक चुके हैं। संगरूर जिले में कांग्रेस के दो कैबिनेट मंत्री मौजूद हैं, वहीं पिछले लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शऩ काफी निराशाजनक भी रहा है। ऐसे में जिले संगरूर पांच मुखी सियासत की कगार पर पहुंच चुका है। हमेशा से अकाली दल का गढ़ माना जाने वाला संगरूर जिला में लंबे समय से ढींडसा परिवार की मजबूत पकड़ किसी से छुपी नहीं है, ऐसे में अकाली दल (ब) के कई चेहरे जिले में मौजूद हैं, लेकिन एक अकाली दल का बड़ा खेमा ढींडसा के पाले में जा पहुंचा है। इलाके में अकाली दल (ब) दोबारा पैरों पर खड़ा हो रहा है और संगरूर-सुनाम व लहरागागा के इलाके में खास मशक्कत करने में जुटा है। भाजपा के लिए जिले में अधिक मात्थापच्ची करने की स्थिति बन गई है और भाजपाइयों के कंधे पर अब गांवों व शहरों तक अपनी पकड़ बनाने की बड़ी जिम्मेदारी आ टिकी है, क्योंकि भाजपा को जिले भर से कोई विधानसभा सीट आज तक अकाली दल ने नहीं दी है। बेशक संगरूर सीट के लिए भाजपा ने जद्दोजहद शुरू की थी, लेकिन अकाली दल ने ढींडसा परिवार को निराश न करने की खातिर भाजपा को निराश करना बेहतर समझा। नगर कौंसिलों में अकाली दल ने भाजपा को बेशक हमेशा बराबर का सम्मान दिया देते हुए प्रधान व सीनियर उप प्रधान के पद पर जगह दी है, लेकिन भाजपा हमेशा से असंतुष्टि जाहिर करती रही है। जिला संगरूर में कांग्रेस के दो कैबिनेट मंत्री मौजूद हैं, जिसके चलते जिले की बड़ी जिम्मेदारी इनके कंधों पर हैं, लेकिन पिछले लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस के धुरंधर अपनी जिम्मेदारी का सबूत बखूबी पेश कर चुके हैं। वर्ष 2009 के बाद लोकसभा में जहां कांग्रेस के हाथ 2019 तक खाली रहे हैं, वहीं विधानसभा चुनाव दौरान जिले से चार ही सीट मिल पाई। मौजूदा समय में आम आदमी पार्टी का गढ़ माने वाले संगरूर में आम आदमी पार्टी को भी कड़ी जद्दोजहद करने की जरूरत है, क्योंकि बेशक लोकसभा का मैदान आप ने संगरूर हलके से कल लिया, लेकिन विधानसभा में आप को कुछ खास कामयाबी संगरूर जिले से नहीं मिल पाई। अकाली दल व भाजपा के अलग होने के बाद मुकाबला और बढ़ गया है।