अच्छे समाज के निर्माण में स्त्री का अमूल्य योगदान
जैन स्थानक मोहल्ला मैगजीन में जारी धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासाध्वी संबुद्ध श्री महाराज ने फरमाया कि जो लोग स्वै अभिमान के साथ दूसरों के गुणों को देखते हैं वह लोक और परलोक दोनों में सुख पाते हैं।
जागरण संवाददाता, संगरूर
जैन स्थानक मोहल्ला मैगजीन में जारी धर्मसभा को संबोधित करते हुए महासाध्वी संबुद्ध श्री महाराज ने फरमाया कि जो लोग स्वै अभिमान के साथ दूसरों के गुणों को देखते हैं, वह लोक और परलोक दोनों में सुख पाते हैं। 16 सतियों के जीवन पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्र निर्माण व परिवार के निर्माण में स्त्री की क्षमता और सहयोग का बहुत बड़ा योगदान होता है। देवी कौशल्या में क्षमता के कारण कोई दोष नहीं आया। उसकी शादी राजा दशरथ्ज्ञ से हुई थी। धीरे-धीरे राजा दशरथ की तीन और रानियों से शादी हो गई, लेकिन कौशल्या ने कभी ईर्षा नहीं की। अपना धर्म पूरी ईमानदारी से निभाया।
कुछ समय के बाद कौशल्या की कोख से श्रीराम, कैकई की कोख से भरत व लक्ष्मण और सुमित्रा रानी की कोख से शत्रुघ्न ने जन्म लिया। कौशल्या सभी को एक समान प्यार देती थी। एक दिन कौशल्या राजा दशरथ को नहला रही थी। उसने राजा के सिर पर सफेद बाल देखकर कहा कि राजा यमदूत आ रहे हैं। राजा ने कहा नहीं कुछ नहीं है, वहम मत करो। रानी ने समझाया कि अब राज पाठ बेटों को देकर स्वयं दीक्षा ग्रहण कर लेते हैं। इस बात का पता चलते ही मंथरा ने कैकई से कहा कि तुम राजभाग में भरत के लिए राजतिलक, श्री राम के लिए वनवास मांग लो। कैकई के दबाव पर वचन देकर उन्होंने भरत को राज दिया और राम को वनवास दे दिया। पश्चात पुत्र वियोग में प्राण त्याग दिए। चौदह वर्ष के बाद राम के आने पश्चात उनका राजतिलक हुआ। अब श्री राम से आज्ञा लेकर रानी कौशल्या साध्वी बनकर पांचवें देवलोक में विराजित हुई।