सच्चे सतगुरु की शरण में आकर ही भगवान मिलते हैं

स्थानीय जैन स्थानक में जारी धर्मसभा के पांचवें दिन महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि अच्छा-बुरा चरित्र बनाना खुद पर निर्भर होता है।

By JagranEdited By: Publish:Wed, 28 Jul 2021 04:56 PM (IST) Updated:Wed, 28 Jul 2021 04:56 PM (IST)
सच्चे सतगुरु की शरण में आकर ही भगवान मिलते हैं
सच्चे सतगुरु की शरण में आकर ही भगवान मिलते हैं

जागरण संवाददाता, संगरूर

स्थानीय जैन स्थानक में जारी धर्मसभा के पांचवें दिन महासाध्वी समर्थ श्री महाराज ने फरमाया कि अच्छा-बुरा चरित्र बनाना खुद पर निर्भर होता है। यदि स्वभाव में अच्छे गुण पैदा करेंगे, तो चरित्र पाक पवित्र बन जाता है और यदि बुरे गुण प्रवेश करेंगे को चरित्र बुरा बन जाएगा, परन्तु आज के भाग दौड़ भरे दौर में व्यक्ति खुद की बजाय दूसरों को बदलने की कोशिश में है, जो नामुमकिन है, क्योंकि दूसरा व्यक्ति ओर किसी तीसरे व्यक्ति को बदलने की फिराक में घूमता रहता है। इस प्रकार पूरी दुनिया एक दूसरे को अपने मुताबिक ढालने की कोशिश में लगी है, जिससे व्यक्ति को खुद मानसिक शांति प्राप्त नहीं हो सकती। जब तक हम अपने आप को नहीं बदलते, दुनिया नहीं बदलने वाली।

साध्वी ने कहा कि साधु बनना भेष का खेल नहीं है। इसके लिए मन बदलना पड़ता है। साधना से मन रूपी तख्त को पवित्र बनाना पड़ता है, जिस पर भगवान आकर विराजमान होते हैं। साधु का मतलब ही अपने आप को अच्छे गुण पैदा कर साधना है। इस संबंधी संत कबीर जी ने भी फरमाया है कि सच्चे सतगुरु के बगैर ज्ञान हासिल नहीं होता। यदि कोई अपने आप को गुरु के दिए उपदेश मुताबिक साधकर संवेदनशीलता व प्रेम पैदा कर लेता है, तो वह दुनिया की हर मुश्किल को पार कर लेता है। इस मौके पर तपस्या लड़ी में प्रधान वियज जैन, गायत्री जैन, शालू जैन, सुरभी जैन, रेखा जैन, प्रेमी बंधू आदि उपस्थित थे।

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