राइस मिलर्स पर फोर्टिफाइड चावल की तलवार लटकी, जाएंगे हाईकोर्ट

जगह की कमी फिर बारदाने का संकट और अब फोर्टिफाइड चावल ही एफसीआइ के गोदामों में लगाने का फरमान शैलर मालिकों के गले पर तलवार बनकर लटक रहा है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 04 Mar 2021 05:10 PM (IST) Updated:Thu, 04 Mar 2021 05:10 PM (IST)
राइस मिलर्स पर फोर्टिफाइड चावल की तलवार लटकी, जाएंगे हाईकोर्ट
राइस मिलर्स पर फोर्टिफाइड चावल की तलवार लटकी, जाएंगे हाईकोर्ट

जागरण संवाददाता, संगरूर

जगह की कमी, फिर बारदाने का संकट और अब फोर्टिफाइड चावल ही एफसीआइ के गोदामों में लगाने का फरमान शैलर मालिकों के गले पर तलवार बनकर लटक रहा है। करीब चार दिन से इलाके में शैलर मालिकों द्वारा गोदाम में चावल लगाने का काम ठप पड़ा है। 31 मार्च तक चावल लगा है, लेकिन फोर्टिफाइड चावल ही लगाने के फैसले ने शैलर मालिकों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। फोर्टिफाइड चावल लगाने में जिले भर के शैलर मालिक असमर्थ हैं।

एफसीआइ के जिला सर्कल की बात करें तो करीब छह लाख टन धान शैलरों में अटका है। एग्रीमेंट की शर्तों का उल्लंघन करके सरकार ने शैलर मालिकों पर यह फरमान थोपा है, जिसे पूरा करने में असमर्थ हुए शैलर मालिक अब हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाने का मन बना रहे हैं। साथ ही संगरूर राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रधान प्रमोद मोदी ने ऐलान किया है कि यदि यह तुगलकी फरमान वापस न लिया गया तो फोर्टिसाइड चावल देने से असमर्थ सभी शैलर मालिक धान वापस उठवाने का एलान करेंगे।

उल्लेखनीय है कि जिला संगरूर में 350 के करीब शैलर मालिक इस समय मायूसी के दौर से गुजर रहे हैं। पंजाब व केंद्र सरकार की उदासीनता का शिकार उन्हें होना पड़ रहा है।

संगरूर राइस मिलर्स एसोसिएशन के प्रधान प्रमोद मोदी, उपप्रधान दिनेश गोयल, सचिव कृष्ण बांसल व रविदर गोयल ने बताया कि जिले में शैलर मालिकों द्वरा गोदामों में चावल लगाने का काम करीब 64 फीसद तक निपटा दिया गया है, अब केवल 36 फीसद काम बाकी है। जनवरी के बाद से शैलर मालिकों को एजेंसियों ने पर्याप्त बारदाना नहीं दिया, जिस कारण काम की रफ्तार काफी धीमी हो गई है। अब अचानक ही शैलर मालिकों पर नया फरमान थोप दिया गया है कि राइस मिलर्स का फोर्टिफाइड चावल लगाया जाएगा। इस फरमान के साथ ही गोदामों में चावल लगाना बंद कर दिया गया, जिस कारण शैलरों में चावल अटक गया है। सरकार के साथ हुए एग्रीमेंट में एफएक्यू चावल लगाने का ही समझौता हुआ है, जिसके आधार पर शैलर मालिक चावल लगा रहे हैं।

जिले में शैलर मालिकों के पास उनके शैलरों में फोर्टिफाइड चावल तैयार करने के लिए पर्याप्त मशीनरी, स्टाफ नहीं है। अचानक ही शैलर मालिक इनका प्रबंध करने से भी असमर्थ हैं, क्योंकि फोर्टिफाइड चावल तैयार करने के लिए मशीनरी की कीमत ही करोड़ों में हैं। साथ ही इसे आपरेट करने के लिए माहिर भी उच्च वेतन पर बाहरी इलाकों से लाने पड़ेंगे, जिसका प्रबंध करने में शैलर मालिकों को वित्तीय बोझ उठाना पड़ेगा।

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बढ़ रहा लेबर का खर्च

उन्होंने कहा कि इस फरमान के कारण जहां उनका कामकाज ठप हो गया है, वहीं शैलरों में रखी लेबर का खर्च भी उन पर पड़ रहा हैं, क्योंकि अगर गोदामों में चावल नहीं लग पाएगा तो ऐसे हाल में लेबर की मजदूरी का बोझ शैलर मालिकों को उठाना पड़ेगा। न तो लेबर को वापस उनके गांव भेजा जा सकता है व न ही कोई काम बाकी बचा है। अब लेबर को शैलर में ही छोटे-छोटे काम देकर समय गुजर रहे हैं व उनकी मजदूरी का खर्च उठा रहे हैं।

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मौसम की पड़ेगी मार, लगेगा अतिरिक्त समय उन्होंने कहा कि पहले गोदामों में जगह की कमी का संताप झेला व फिर बारदाने की किल्लत ने शैलर मालिकों को खून के आंसू रोने पर मजबूर कर दिया और अब फोर्टिफाइड चावल लगाने के नए फैसले ने कमर तोड़ दी है। मौसम की मार से धान का वजन कम होगा, जिसकी मार भी शैलर मालिकों पर पड़ेगी। साथ ही मार्च अंत तक चावल लगाने का समय होता है, लेकिन अब चावल लगाने का काम रुकने से अगले माह के बाद ही सीजन संपन्न हो पाएगा। पीएफएमएस का बोझ भी शैलर मालिकों पर ही मढ़ा जा रहा है, जबकि इससे उनका कोई संबंध नही है।

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