परविदर व हरमनदीप ने उठाया पर्यावरण प्रदूषण मुक्त करने का बीड़ा
जिले के गांव खेड़ी साहिब का प्रगतिशील किसान परविदर सिंह संधू गत पांच वर्षों से फसलों के अवशेष न जलाकर पर्यावरण की शुद्धता में अहम योगदान डाल रहा है।
जागरण संवाददाता, संगरूर/मालेरकोटला : जिले के गांव खेड़ी साहिब का प्रगतिशील किसान परविदर सिंह संधू गत पांच वर्षों से फसलों के अवशेष न जलाकर पर्यावरण की शुद्धता में अहम योगदान डाल रहा है। उसका काम देखकर आसपास के गांव के दूसरे किसान भी आकर्षित हो रहे हैं। उससे काम सीखकर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।
ग्रेजुएशन पास किसान परविदर सिंह ने बताया कि उसने पामेती द्वारा यूएनईपी की मदद से मार्च 2018 से बतौर डेमोस्ट्रेटर जिला संगरूर के तीन गांव कनोई, तुंगा व उपली के किसानों को पराली न जलाने हेतु प्रेरित करना शुरू किया। इस मकसद को पूरा करने के लिए वह किसानों को हैपीसीडर, रोटावेटर आदि मशीनरी उपलब्ध करवा रहा है। वर्ष 2016 में उसने फसल के अवशेषों को आग न लगाने का फैसला किया। ऐसे में उसने अपनी 22 एकड़ जमीन में पराली के खड़े अवशेषों में रोटावेटर से गेहूं की बुवाई की, जिससे उसे 20 क्विटल झाड़ प्राप्त हुआ। किसान ने बताया कि इस प्रकार से खेती करने में तेल, खाद, स्प्रे के खर्चों में भारी कमी आई। रोटावेटर से बुवाई करने से पहले खेत में कलर की मात्रा अधिक थी। अब प्रत्येक वर्ष जैविक मादे की मात्रा बढ़ती जा रही है जिससे फसल की अच्छी पैदावार मिल रही है। किसान के मुताबिक उसने 12 पशु गाय व भैंस पाले हुए हैं, जिनके गोबर से वह खेत के लिए रूड़ी तैयार करता है। दूध का स्वयं मंडीकरण कर अच्छा खासा मुनाफा ले रहा है। खेत में जैविक तरीके से सब्जी व फलों की पैदावार ली जा रही है।
मुख्य खेतीबाड़ी अफसर संगरूर मनदीप सिंह ने किसान की प्रशंसा करते हुए दूसरे किसानों को भी खेतीबाड़ी विभाग से मदद लेकर खेती लागत कम करने की सलाह दी।
इसी तरह मालेरकोटला के गांव रुस्तमगढ़ का पोस्ट ग्रेजुएट किसान हरमनदीप सिंह गत तीन वर्षों से अपनी 34 एकड़ भूमि में पराली को बगैर जलाए खाद के रूप में इस्तेमाल कर रहा है। किसान ने बताया कि उसकी खुद की जमीन 13 एकड़ है। बाकी 21 एकड़ ठेके पर ली है। उसकी तरफ से करीब तीस एकड़ में सब्सिडी पर लिए हैपीसीडर की मदद से गेहूं की बुवाई की जाती है। बाकी चार एकड़ में सब्जी व मक्के की पैदावार करता है। किसान ने बताया कि फसल के अवशेषों को जलाने से धरती की उपज शक्ति कम होती है। दूसरा पर्यावरण में प्रदूषण फैलता है। ऐसे में उसने रासायणिक खादों व कीटनाशक के नशे पर लगी धरती माता को जहर से मुक्त करने का लक्ष्य रखा जिसके लिए उसने खेतीबाड़ी विभाग से संपर्क साधा।
खेतीबाड़ी विकास अफसर मालेरकोटला नवदीप कुमार ने किसानों को अधिक उपज लेने व पर्यावरण की शुद्धता हेतु पराली न जलाने को प्रेरित किया है।