असफलता से नहीं मानी हार, फिर किया प्रयास तो पीसीएस में पाया सातवां रैंक
हार को जीत में बदलने के लिए बार-बार कोशिश करना व अपनी कमियों की पहचान करके उसे दूर करना ही एकमात्र साधन है।
मनदीप कुमार, संगरूर
हार को जीत में बदलने के लिए, बार-बार कोशिश करना व अपनी कमियों की पहचान करके उसे दूर करना ही एकमात्र साधन है। अगर हम हार से निराश होकर बैठ जाएंगे तो जिदगी में सफलता मिलना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन है। यह बात संगरूर के रिश्व बांसल ने पीसीएस की परीक्षा में सातवां रैंक हासिल करके साबित कर दिखाई है।
रिश्व बांसल ने यह कामयाबी दूसरी बार दी गई पीसीएस परीक्षा में हासिल की है, जबकि पहली बार दी गई परीक्षा के दौरान वह मात्र दो अंकों के अंतर से पिछड़ गए थे, जिसके बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी, बल्कि फिर से परीक्षा की तैयारी में जुट गए और सातवें रैंक पर पहुंचे। इंटरव्यू के दौरान भी उन्होंने पूरी एकाग्रता से सवालों के जवाब दिए, जिसकी बदौलत उन्होंने परीक्षा में सफलता हासिल की। रिश्व को बधाई देने के लिए घर पर तांता लगा हुआ है। खास बात यह भी है कि साधारण परिवार से संबंध रखने वाले रिश्व के परिवार में पहले किसी ने ऐसी परीक्षा में हिस्सा नहीं लिया है।
27 वर्षीय रिश्व बांसल संगरूर के थलेस बाग कालोनी के रहने वाले हैं। पंजाब पब्लिक सर्विसिस कमीशन द्वारा ली गई पीसीएस की परीक्षा में हजारों उम्मीदवारों ने हिस्सा लिया था। इनमें से 960 उम्मीदवार पीसीएस की मेन परीक्षा में योग्य पाए गए। इनमें से 180 उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया। पंजाब पब्लिक सर्विसिस कमीशन द्वारा जारी की गई 174 उम्मीदवारों की सूची में रिश्व बांसल ने सातवां स्थान हासिल किया। पंजाब यूनिवर्सिटी चंडीगढ़ से एमएससी (फिजिक्स) की विद्या हासिल की तथा संगरूर शहर के ही एसपीएस स्कूल में रिश्व ने अपनी शुरुआती पढ़ाई की। पिता गुरदास बांसल लोक निर्माण विभाग (बीएंडआर) से सेवानिवृत्त हुए हैं। माता सविता बांसल अध्यापिका के तौर पर सेवा निभा रही हैं। --------------------- कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाने की जरूरत
रिश्व ने कहा कि पंजाब कृषि प्रधान राज्य है। कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाने की जरूरत है। कृषि को तीन पहलुओं से बेहतर बनाने की जरूरत है। पहला कृषि इस तरीके से की जानी चाहिए कि पंजाब में गिरते जलस्तर को बचाया जा सके। अधिकतर जिले डार्क जोन में हैं, अगर कृषि का तरीका न बदला गया तो इसके परिणाम गंभीर होंगे। दूसरा कृषि को फायेदमंद धंधा बनाया जाए। कृषि कर रहे किसान आत्महत्या की राह पर न चलें, इसलिए फसलों की लागत कम की जाए व फसलों से आमदन अधिक हो, ताकि किसानों के लिए कृषि आमदन का स्त्रोत बन सके। तीसरा कृषि को इको फ्रेंडली बनाया जाना चाहिए। चाहे पराली को जलाने का मुद्दा हो या रसायन के प्रयोग को कम करना। इससे बदलना बेहद जरूरी है, तभी कृषि क्षेत्र को बेहतर बनाया जाए सकेगा।