पुस्तक 'संगरूर देन एंड नाओ' का कैबिनेट मंत्री सिगला ने किया विमोचन

जागरण संवाददाता संगरूर जींद रियासत की राजधानी संगरूर की पुरातन विरासती निशानियों को जानकारी जी।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 26 Oct 2020 02:48 PM (IST) Updated:Tue, 27 Oct 2020 07:00 AM (IST)
पुस्तक 'संगरूर देन एंड नाओ' का कैबिनेट मंत्री सिगला ने किया विमोचन
पुस्तक 'संगरूर देन एंड नाओ' का कैबिनेट मंत्री सिगला ने किया विमोचन

जागरण संवाददाता, संगरूर :

जींद रियासत की राजधानी संगरूर की पुरातन विरासती निशानियों को संगरूर के वकील सुमीर फत्ता ने 'संगरूर देन एंड नाओ' शीर्षक पुस्तक में संजोने का प्रयास किया है। इस पुस्तक में संगरूर की सभी पुरातन इमारतों की करीब सौ वर्ष पहले व वर्ष 2020 के हालातों के अंतर को खूबसूरत ढंग से पेश किया है। संगरूर की खूबसूरती को इस पुस्तक के जरिये लोगों तक पहुंचाने का प्रयास करते हुए वकील सुमीर फत्ता ने कोरोना काल के समय का सदुपयोग करके इस पुस्तक पर कड़ी मेहनत कर इसे तैयार किया। उनकी इस नई पुस्तक रविवार शाम को कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिगला ने लोकार्पण की। कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिगला ने कहा कि संगरूर शहर रियासती निशनियों का खजाना है। स्थानीय बनासर बाग, सफेद संगमरमर की बनी बारादरी, दीवानखाना, अजायबघर, शाही समाधि, सरकारी रणबीर कालेज, सरकारी सीनियर सेकेंडरी स्कूल (लड़के) की इमारत, प्राचीन मंदिर ऐसे ही कुछ निशानियां है, जिनकी खूबसूरती हर किसी को आकर्षित कर रही है। पंजाब सरकार इन विरासती निशानियों की संभाल के लिए करोड़ों रुपये के प्रोजेक्ट लेकर आइ है, ताकि यह विरासती निशानियां आने वाले समय की पीढि़यों के लिए संभाली जा सकें।

पूर्व सहायक लोक संपर्क अफसर सतिदर फत्ता के पुत्र सुमीर फत्ता ने संगरूर शहर से जुड़ी हर पुरातन निशानी की पुरानी तस्वीर व आज के समय की तस्वीर को अपनी पुस्तक में उतारा है तथा साथ ही उनके इतिहास को भी संक्षिप्त तौर पर अपने शब्दों के रूप में लोगों के सामने रखने का प्रयास किया है। उनकी यह कोशिश बेहद प्रशंसनीय है, क्योंकि इस पुस्तक की मदद से आज की पीढ़ी पुरानी विरासत को करीब से जान सकती है। वकील सुमीर फत्ता ने कहा कि उनके पिता सतिदर फत्ता ने करीब 30-35 वर्ष पहले पुरातन इमारतों की अनेक तस्वीरें संजोकर रखी हुई थी, जिसे उन्होंने आगे बढ़ाते हुए कई तस्वीरें खुद जुटाई तथा संगरूर से जुड़ी कई पुस्तकों का अध्ययन किया। करीब तीन वर्ष की मेहनत के बाद कोरोना काल में इसे अंतिम रूप दिया गया। इन तस्वीरों को एक नए अंदाज में लोगों के सामने पेश करने का प्रयास किया। फिर उन्होंने मौजूदा समय में इन इमारतों की दशा की तस्वीरें जमा की। अब इसे इस पुस्तक में समेटा ताकि लोगों तक संगरूर की खूबसूरत निशानियों को पहुंचाया जा सके।

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