नहीं थमा समाज को शिक्षित करने का कारवां
साल 1992 में यतिदर कौर माहल ने अपने गांव रैलमाजरा व आसपास के गांवों के बच्चों के लिए शिक्षा संस्थान शुरू किया।
अजय अग्निहोत्री, रूपनगर : साल 1992 में यतिदर कौर माहल ने अपने गांव रैलमाजरा व आसपास के गांवों के बच्चों के लिए शिक्षा संस्थान शुरू किया। इस शुरुआत के बाद समाज को शिक्षित करने का कारवां हमेशा बढ़ता गया। यतिदर कौर माहल जिला लिखारी सभा रूपनगर के साथ साहित्य के क्षेत्र में उभरीं। 12 साल तक इस संस्था की महासचिव रहीं। वर्तमान में 2014 से अपनी माता किरपाल कौर के नाम से बीबी किरपाल कौर यादगारी साहित्यक ट्रस्ट चला रही हैं। शब्द संचार साहित्यक संस्था पंजाब मोरिडा और प्रगतिशील लेखक संघ जिला रूपनगर इकाइ की महासचिव हैं। उन्होंने हाल ही में पंजाबी सभ्याचार पर केंद्रित लोक धारां दियां पैड़ां किताब लिखी है। यतिंदर ने गांव रैलमाजरा के शिक्षण संस्थान के बाद करीब 20 साल इलाके के गांवों के जरूरतमंद परिवारों के बच्चों को शिक्षा मुहैया करवाई। 1992 में श्री दशमेश पब्लिक स्कूल शुरू किया। 12वीं तक वो लड़कियों को भी शिक्षा देती रही और नाममात्र फीस लेती थीं। जिन बच्चों के परिवार फीस नहीं दे पाते थे उनको फीस व किताबें तक निशुल्क मुहैया करवाई। बच्चों को साहित्य के साथ जोड़ने और उनके अंदर छुपी कला को उभारने के लिए समय-समय पर भाषण, कविता और लेख मुकाबले करवाती हैं। पिता की देखभाल व समाजसेवा में पूरा जीवन किया समर्पित
यतिदर का कहना है कि बचपन में उनके भाई पलविदर सिंह का कैंसर की बीमारी से देहांत हो गया था। तब भाई की उम्र 11 साल और उनकी खुद की उम्र पांच साल थी। वो घटना दिल और दिमाग पर असर कर गई। जब होश संभाली तो समाज के लिए काम करना आरंभ कर दिया ताकि किसी भी चेहरे पर मायूसी न हो। खुशियां बांटने के सबसे बेहतर जरिया शिक्षा है। समाज शिक्षित होगा तो परिवार और देश को खुशहाल बना पाएगा। यतिंदर ने 45 की आयु में भी शादी नहीं की और बीमार पिता गुरपूर्ण सिंह की देखभाल व समाजसेवा में अपना पूरा जीवन समर्पित कर रही हैं।