कोरोना ने जीवनशैली में बदलाव लाया, स्वयं व परिवार को भी बचाया
कोरोना की दूसरी लहर चल रही है । इस चेन को तोड़ने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग से जुड़े डाक्टर तथा एएनएम व नर्सें दिन- रात एक किए हुए हैें।
अरुण पुरी, रूपनगर: कोरोना की दूसरी लहर चल रही है । इस चेन को तोड़ने के लिए जिला स्वास्थ्य विभाग से जुड़े डाक्टर तथा एएनएम व नर्सें दिन- रात एक किए हुए हैें। हर दिन कई घंटे कोविड वार्ड में रहने वाली एएनएम व नर्सें अपनी जान की परवाह किए बगैर जहां मरीजों की सेवा में जुटी हैं, वहीं अपने परिवारिक दायित्वों की पूर्ति भी कर रही हैं। ऐसी ही कुछ एएनएम व नर्सों के साथ दैनिक जागरण ने उनकी प्रतिक्रिया जानने के लिए बात की। कोरोना के बाद बदली दिनचर्या कोरोना महामारी के इस दौर ने अनेकों ऐसे अनुभव करवा दिए हैं जिनका पढ़ाई के दौरान या अस्पताल के विभिन्न वार्ड सहित आपरेशन थियेटर में काम करते वक्त कभी आभास तक नहीं था। कोरोना से पहले अस्पताल में बिना किसी भय ड्यूटी, जिसके बाद बिना किसी डर घर में लौट परिवारिक दायित्वों की पूर्ति करने का काम था। कोरोना के आने के बाद सारी दिनचर्या बदल गई है। एक तरफ कोविड वार्ड में मरीजों को बचाने का दायित्व है, तो दूसरी तरफ परिवारिक दायित्वों की पूर्ति जबकि खुद को संक्रमित होने से बचाना भी साथ जुड़ चुका है। पहले बहुत परेशानी होती थी, लेकिन अब खुद को जरूरत के अनुसार ढाल लिया है। अस्पताल हो या घर वापसी, हर जगह कोविड नियमों को अपनाना जीवन का हिस्सा बन गया है।
भुपिदर कौर, एएनएम। कोर्स से ज्यादा सीख लिया एएनएम की नौकरी के दौरान ओपीडी से लेकर इमरजेंसी, आपरेशन थियेटर तथा विभिन्न वार्ड में काम किया है, लेकिन जो तजुर्बा व दायित्वों का एहसास कोरोना महामारी के दौरान हुआ है, उसने जीवन की सोच को ही बदल कर रख दिया है। एएनएम का कोर्स करते वक्त जो कुछ पढ़ा था, उससे ज्यादा कोरोना संकट ने पढ़ा दिया है। कोविड वार्ड में पहले ड्यूटी करना काफी कठिन था, क्योंकि जो भी मरीज दाखिल होते थे, हर कोई तल्खी भरा व्यवहार करता था। डाक्टर आकर चले जाते हैं, लेकिन बाद में मरीज को संभालना हमारा दायित्व है। यह हमें कोविड वार्ड ने सिखा दिया है। आज कोविड वार्ड हो या घर की चहारदीवारी, हमनें खुद को कोविड नियमों के दायरे में ढाल लिया है।
जीवन ज्योति, एएनएम स्वभाव व जीवनशैली बदल गई हमने देखा है कि कोरोना की चपेट में आने वाले मरीजों का व्यवहार गुसैला हो जाता है, जिन्हें संभालने के लिए पहले तो काफी परेशानी होती रही है, लेकिन बाद में समझ आ गया कि कोरोना के मरीजों को अगर परिवारिक वातावरण दिया जाए, तो उनका व्यवहार जहां सरल हो जाता है, वहीं उनकी शारीरिक परेशानियों में भी कमी आ जाती है। कोविड वार्ड में कोरोना पाजिटिव मरीजों के साथ रहते हमारे अपने स्वभाव व जीवनशैली में भी बदलाव आ गया है। अस्पताल हो या घर , कोरोना ने हमें कैसे खुद को संक्रिमत होने से बचाना है यह सिखा दिया है, जिसके चलते हम कोरोना मरीजों का सही ढंग से उपचार कर पा रहे हैं।
बलजीत कौर, एएनएम। सहनशीलता सीखने को मिली बतौर स्टाफ नर्स अस्पताल के विभिन्न वार्डों में ड्यूटी तो बहुत की , लेकिन सही मायने में स्टाफ नर्स का दायित्व क्या होता है, यह कोरोना काल के दौरान कोविड वार्ड ने सिखा दिया है। कोविड वार्ड में रहते सबसे ज्यादा उन मरीजों से सीखने को मिला है, जो कोरोना पाजिटिव तो हैं, लेकिन उनमें लक्षण नहीं हैं। ऐसे मरीजों ने हमें सहनशीलता सिखाई। इसके अलावा कोविड वार्ड ने हमें खुद को संक्रिमत होने से बचाना व ऐसे हालातों में परिवार को कैसे संभालना है, यह भी सिखाया है। वीरपाल कौर, स्टाफ नर्स कोरोना ने सिखाए कई तजुर्बे स्कूल, कालेज व परिवारिक जीवन में हर दिन कुछ नया सीखने को मिलता रहा है, लेकिन कोरोना महामारी के इस वक्त ने जो तजुर्बे दिए या सिखाए, उन्हें शब्दों में कह पाना कठिन है। कोविड वार्ड ने हमें बदलते हालातों या किसी भी प्रकार के संकट के वक्त अपने व्यवहार को कैसा बनाना है, यह सिखा दिया है। मरीजों को होने वाली परेशानियों को काफी नजदीक से समझने का मौका मिला है, जबकि परिवार व समाज को कोरोना से कैसे बचाना है, यह भी समझ में आ चुका है।
गुरमिदर कौर, स्टाफ नर्स स्वयं सहित परिवार को रखा सुरक्षित आम दिनों में किसी भी वार्ड सहित इमरजेंसी या आपरेशन थियेटर में काम करने वाली स्टाफ नर्स की तुलना में कोविड वार्ड में काम करने वाली स्टाफ नर्स के दायित्वों में काफी अंतर है । यह भी कहा जा सकता है कि कोविड वार्ड में काम करना, उसके बाद संक्रिमत रहित अपने परिवार में लौटना तथा परिवार को भी सुरक्षित रखना सबसे कठिन कार्य है। कोविड वार्ड में ड्यूटी करते जहां सब सरल हो गया है, वहीं यह भी समझ में आ गया है कि कोरोना कितना घातक है और इससे स्वयं और मरीजों को कैसे बचाना है।
रवनीत चट्ठा, स्टाफ नर्स।