ईश्वर का अवतार हैं भगवान श्री परशुराम

धर्म ग्रंथों के अनुसार जब धर्म की हानि होती है व अधर्म शिखर पर पहुंच जाता है तब ईश्वर का अवतार होता है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 13 May 2021 10:21 PM (IST) Updated:Thu, 13 May 2021 10:21 PM (IST)
ईश्वर का अवतार हैं भगवान श्री परशुराम
ईश्वर का अवतार हैं भगवान श्री परशुराम

जागरण संवाददाता, नंगल: धर्म ग्रंथों के अनुसार जब धर्म की हानि होती है व अधर्म शिखर पर पहुंच जाता है, तब ईश्वर का अवतार होता है। भगवान परशुराम को ईश्वर का अवतार माना गया है। अवतारों में यह छठे अवतार हैं। श्री सनातन धर्म हाई स्कूल नंगल के पूर्व अध्यक्ष पंडित अमर नाथ शर्मा ने कहा कि स्कंद पुराण में उल्लेख मिलता है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीय में राजा प्रसन्नजीत की पुत्री रेणुका और भृगु वंशीय मुनि जमदग्नि के घर हुआ। इनका नाम पहले राम था, शिव भक्त होने के कारण शिव ने उन्हें अमोघ परशु दिया। अत: यह परशुराम कहलाए। जिस समय इनका जन्म हुआ था, उस समय पृथ्वी पर अधर्मी दुष्ट क्षत्रिय राजाओं का बाहुल्य था। उन्हीं में से एक सहस्त्रार्जुन ने परशुराम के पिता जमदग्नि का वध कर दिया था, जिससे क्रोधित होकर उन्होंने राजा सहस्त्रार्जुन सहित क्षत्रिय राजाओं को 21 बार हराकर पृथ्वी को भार मुक्त किया। उन्होंने एक नए समाज एवं धर्म की स्थापना की, वे पितृ भक्त थे। मान्यता है कि एक बार जमदग्नि की पत्‍‌नी रेणुका पानी लाने तालाब पर गई, वहा पर चितरथ सखियों के साथ तालाब में बिहार करता तन्मयता से देख रही थी। विलंब होने पर जमदग्नि को दिव्य ज्ञान से ज्ञान हो गया। इस पर क्रोधित होकर अपने चार पुत्रों को माता रेणुका का सिर काटने को कहा, परंतु माता होने के कारण वे ऐसा नहीं कर पाए। इस कारण चारों पुत्रों को पत्थर बनने का श्राप दे दिया और वे चारों पत्थर हो गए। परशुराम के आने पर उन्हें भी सिर काटने को कहा। परम पितृ भक्त होने के कारण अपनी माता का सिर काट कर ला दिया। पिता ने खुश होकर बेटे परशुराम को वर मागने को कहा। उन्होंने यहीं मागा कि माता व चारों भाई जीवित हों। पिता जमदग्नि ने सभी को जीवित कर दिया।

उन्होंने कहा कि त्रेता युग में सीता राम का प्रसंग आता है। सीता के विवाह पर परशुराम ने राम से प्रत्यंचा धनुष पर चढ़ाने को कहा। प्रत्यंचा आसानी से चढ़ा दी। उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ, अत: दिव्य दृष्टि से पता चला कि राम तो अवतार हैं। विकसित संपदा तथा सब भू-भाग त्याग कर परशुराम ने कोंकण में बसे ब्राह्मणों को दान कर दी। ऐसा केरेलोत्पति नामक ग्रंथ में लेख मिलता है। अंत में उन्होंने तपस्या करने के लिए महेंद्र गिरी पर्वत पर प्रस्थान किया। वे अजर व अमर हैं।

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