भूस्खलन जोखिम कम करने पर काम करेगी आइआइटी व एनएचएआइ, दो शोध परियोजनाओं पर एमओयू साइन किया
आइआइटी रोपड़ और नेशनल हाईवे अथारिटी आफ इंडिया (एनएचएआइ) ने दो शोध परियोजनाओं पर एक साथ काम करने के एमओयू पर साइन किया है। इस प्रोजेक्ट के लिए जांचकर्ता आइआइटी रोपड़ के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डा. नवीन जेम्स डा. रीत कमल तिवारी और डा. सीके नारायणन हैं।
रूपनगर, जेएनएन। आइआइटी रोपड़ और नेशनल हाईवे अथारिटी आफ इंडिया (एनएचएआइ) ने दो शोध परियोजनाओं पर एक साथ काम करने के एमओयू पर साइन किया है। इसमें पहाड़ी सड़कों के लिए ढलान निगरानी और भूस्खलन जोखिम कम करने पर पहली परियोजना और दूसरी राजमार्ग तटबंध के लिए भराई सामग्री के रूप में चावल भूसी राख, गन्ने के डंठल, राख और कोयला राख के उपयोग पर है। भूस्खलन को दुनिया भर के महत्वपूर्ण मामलों में प्रमुख प्राकृतिक खतरों में से एक के रूप में पहचाना जाता है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के अनुसार भारत के कुल भूमि क्षेत्र का लगभग 15 प्रतिशत भूस्खलन खतरे से प्रभावित है। ऐसा ही एक स्थान हिमालय का क्षेत्र है।
भूस्खलन से बुनियादी ढांचे खासकर पहाड़ी सड़कों के लिए गंभीर खतरा पैदा होता है। इस अध्ययन का उद्देश्य हिमालय के क्षेत्र में राजमार्ग खंड के लिए भूस्खलन के खतरे की मात्रा निर्धारित करना है। अध्ययन क्षेत्र एनएचएआइ के साथ परामर्श से तय किया जाएगा। रिमोट सें¨सग और भू-तकनीकी परीक्षण आंकड़ों के आधार पर व्यापक भूस्खलन जोखिम विश्लेषण किया जाएगा। विश्लेषण के आधार पर इस परियोजना के माध्यम से उचित भूस्खलन रोकने के उपायों की भी सिफारिश की जाएगी। इसके अलावा एक निगरानी प्रणाली स्थापित करने का भी योजना है।
इस प्रोजेक्ट के लिए जांचकर्ता आइआइटी रोपड़ के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डा. नवीन जेम्स, डा. रीत कमल तिवारी और आइआइटी रोपड़ के कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग के डा. सीके नारायणन हैं। प्रोजेक्ट के तहत यातायात भार और भूकंपीय भार के तहत तटबंध सामग्री के रूप में इन सामग्रियों की प्रतिक्रिया का भी विश्लेषण किया जाएगा। भूजल प्रदूषण में इन सामग्रियों के प्रभाव की जांच के लिए पर्यावरणीय प्रभाव अध्ययन भी किया जाएगा। यह परियोजना चार साल के लिए है और पिछले साल में प्रस्तावित मिक्सचर का इस्तेमाल हाईवे स्ट्रेच के निर्माण में किया जाएगा और सड़क के प्रदर्शन का आकलन एक साल के लिए किया जाएगा।