गरीबी खत्म करने को बनाई गई योजनाओं के परिणाम की लगातार की जाए समीक्षा
नंगल गरीबी उन्मूलन के मकसद से आज 17 अक्टूबर का दिन विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
सुभाष शर्मा, नंगल: गरीबी उन्मूलन के मकसद से आज 17 अक्टूबर का दिन विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस के रूप में मनाया जाता है। पहली बार यह दिवस वर्ष 1987 में मनाया गया था। दिवस मनाने का मकसद विश्व में अत्याधिक गरीबी को दूर करना है। इस बारे में समाज के विभिन्न वर्ग के लोगों की राय है कि गरीबी खत्म करने के लिए न्यूनतम वेतन में इजाफा करना, मनरेगा जैसी योजनाओं में जरूरी परिवर्तन लाना तथा विभिन्न संस्थानों में विस्तार की संभावनाओं का दोहन करके रोजगार के अवसर पैदा करके ही गरीबी को खत्म किया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2006 से 2016 तक के सर्वे में भारत के अंदर 27.10 लोग गरीबी से बाहर निकले हैं, फिर भी इस समय करीब 37 करोड़ लोग गरीब हैं। योजनाओं में किया जाए बदलाव
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बाबू जगजीवन राम संस्थान के मैनेजिंग डायरेक्टर डा. केआर आर्य कहते हैं कि भारत में गरीबी को खत्म करने के लिए ग्रामीण श्रम रोजगार गारंटी कार्यक्रम, प्रधानमंत्री जन धन योजना तथा न्यूनतम मजदूरी के लिए बने नियमों में जरूरी बदलाव लाकर लोगों को राहत दिलाई जानी चाहिए, तभी गरीबी को खत्म किया जा सकता है। सरकारी संस्थानों के आधारभूत ढाचे का दोहन कर रोजगार के साधन पैदा किए जाने चाहिए। गरीबों के लिए बनी योजनाओं के हो रहे असर की हर साल सही समीक्षा करने के लिए देश भर में बुद्धिजीवी लोगों की समितियां गठित की जानी चाहिए। 20 हजार मिले न्यूनतम मजदूरी
फोटो 16 एनजीएल 11 में है। नंगल भाखड़ा मजदूर संघ इंटक के प्रधान सतनाम सिंह लादी का कहना है कि न्यूनतम मजदूरी कम से कम 20 हजार रूपये होनी चाहिए। इसके लिए सरकार गारंटी ले। परिवारों में समृद्धि तभी लाई जा सकती है, यदि सभी की आय संतोषजनक हो। श्रम कानूनों में बदलाव ठीक नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्रों को ही बढ़ावा मिलना चाहिए। सरकारी संस्थानों में रोजगार की संभावनाओं का दोहन कर रोजगार के साधन पैदा किए जाने चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। गरीबों को घर बनाने के लिए बिना ब्याज के ऋण उपलब्ध करवाने की दिशा में प्रभावी कार्य होना चाहिए। गरीबी उन्मूलन के प्रयास नाकाफी
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इंटक के वरिष्ठ नेता गोपाल कृष्ण शर्मा ने कहा कि गरीबी उन्मूलन के लिए हो रहे प्रयास नाकाफी हैं। गरीबी खत्म करने के लिए बनाई गई योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू कर इसे प्रभावी बनाने के लिए विशेष मानीटरिंग सेल गठित होना चाहिए। इसमें ऐसे अनुभवी व समर्पित लोगों को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए, जो सही मायने में गरीबी खत्म करने का जज्बा मन में रखने वाले हों। देश की सामाजिक व्यवस्था को बदलना जरूरी है। समृद्धि लाकर ही गरीबी उन्मूलन संभव है। । अधिकारों का न हो हनन
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भारतीय मजदूर संघ से संबंधित जगमोहन सिंह कहते हैं कि श्रम कानूनों के सुधार के लिए काम होना तो जरूरी है, लेकिन केंद्र सरकार को देश में फैली गरीबी के मद्देनजर यह जरूर देखना चाहिए कि कहीं सभी अधिकार पूंजीपतियों के हाथों में ही न चले जाएं। मजदूरों के अधिकारों का यदि हनन होगा, तो निश्चित रूप से बेरोजगारी बढ़ जाने से गरीबी के ग्राफ में इजाफा होगा। ऐसे में देश के हालात सामान्य नहीं रह सकते। सरकारी संस्थानों का निजीकरण नहीं किया जाना चाहिए। आर्थिक वृद्धि दर बढ़ाकर ही गरीबी का स्तर नीचे लाया जा सकता है। समाज व सरकार गंभीरता से करे विचार
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विद्या भारती रूपनगर के जिला मंत्री डा. सत्यार्थी शर्मा ने कहा कि जीवन यापन की मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति में असमर्थता ही गरीबी का कारण है। गरीब की अभिव्यक्ति आजकल रोटी, कपड़ा व मकान के दायरे से बढ़कर शिक्षा, चिकित्सा के क्षेत्र में भी भिक्षा लेकर जीवन का बचाव करने में आ गई है। समाज व सरकार को इस विषय में गंभीरता से विचार करना होगा। गरीबी का बढ़ना किसी भी देश के लिए चिंता का गंभीर विषय है। इसी मकसद से विश्व स्तर पर गरीबी उन्मूलन दिवस मनाने की शुरूआत की गई है। सामाजिक सुरक्षा की पूरी गारंटी लें सरकारें
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आदि धर्म समाज पंजाब के उपप्रधान तुलसी राम मट्टू के अनुसार रोटी, कपड़ा, मकान व शिक्षा तथा रोजगार की जिम्मेदारी सरकारों को निभानी चाहिए। हर किसी को रोजगार तथा सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी यदि सरकारें सही से निभाती हैं, तो निश्चित रूप से गरीबी खत्म हो सकती है। निजीकरण को नहीं, बल्कि पब्लिक सेक्टर को बढ़ावा देना चाहिए। ऐसी विचारधारा अपनाने के लिए गंभीरता बेहद जरूरी है। हर नागरिक के सुखी व समृद्ध होने से ही देश की बेहतरी के लिए बनने वाले कार्यक्रमों को सफल बनाया जा सकता है।