अंतिम चरण में भाखड़ा बांध के एतिहासिक विश्राम गृह सतलुज सदन का सुंदरीकरण

भाखड़ा बाध के निर्माण काल समय करीब छह दशक पहले बने एतिहासिक विश्रामगृह साथ सतलुज सदन को आकर्षक व सुविधाजनक बनाने के जारी प्रयासों के अंतर्गत एक बार फिर सुंदरीकरण का काम शुरू हो गया है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 01 Dec 2020 05:15 PM (IST) Updated:Tue, 01 Dec 2020 11:18 PM (IST)
अंतिम चरण में भाखड़ा बांध के एतिहासिक विश्राम गृह सतलुज सदन का सुंदरीकरण
अंतिम चरण में भाखड़ा बांध के एतिहासिक विश्राम गृह सतलुज सदन का सुंदरीकरण

जासं, नंगल: भाखड़ा बाध के निर्माण काल समय करीब छह दशक पहले बने एतिहासिक विश्रामगृह साथ सतलुज सदन को आकर्षक व सुविधाजनक बनाने के जारी प्रयासों के अंतर्गत एक बार फिर सुंदरीकरण का काम शुरू हो गया है। झील की मनोहारी वादियों के साथ बने विश्रामगृह के नीचे दरिया के पास से अब यहा आने वाले पर्यटक व लोग मनोहरी वादियों का आनंद ले सकेंगे। दरिया किनारे डंगों को मजबूत व सुंदर बनाने का कार्य अंतिम चरण पर पहुंच चुका है। भाखड़ा बाध के डिप्टी चीफ इंजीनियर एचएल कंबोज ने बताया कि यहा आठ लाख की लागत से ग्लास हाउस के आसपास पत्थरों से बनाए जाने वाले सुंदर डंगे इस इमारत को और ज्यादा आकर्षक बनाएंगे। यहा खड़े होकर झील की सुंदर वादियों की फोटोग्राफी की जाए, इस मकसद को भी मद्देनजर रखते हुए प्लान तैयार किया गया है।

1970 के दशक में सतलुज सदन रहा था बालीवुड का मुख्य केंद्र उल्लेखनीय है कि मनोहारी वादियों के कुदरती आकर्षण की वजह से ही 1970 दशक के दौरान सतलुज सदन बालीवुड का मुख्य केंद्र रहा था। करीब दो दशकों तक चली फिल्मों की शूटिंग के लिए बालीवुड के सुपर स्टार हीरो धर्मेद्र, राजेश खन्ना, विनोद खन्ना, मुमताज व रीना राय आदि कई सितारे शूटिंग के दौरान कई दिनों तक नंगल में रहा करते थे। पंजाब में आतंकवाद शुरू होते ही यहां पूरा इलाका सुरक्षा के घेरे में आ गया। उसके बाद से यहां पर्यटन व फिल्मों की शूटिंग ठप पड़ गई। 13 बार इसी विश्राम गृह में रुके थे पंडित नेहरू गौर हो कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू भी अपने सपनों के प्रोजेक्ट भाखड़ा बांध के निर्माण काल के समय वर्ष 1954 से 1963 के दौरान 13 बार इसी विश्राम गृह में रुके थे। उनका कक्ष कमरा नंबर तीन से जाना जाता है। इस कक्ष में आज भी वह सारा सामान बतौर यादगार सुरक्षित है, जिसमें नेहरू जी द्वारा प्रयुक्त बिस्तर, क्राकरी तथा वह कुर्सी-टेबल भी शामिल है, जिस पर बैठकर वह भाखड़ा बांध के बारे में चिंतन किया करते थे। इसी विश्राम गृह में 28 अप्रैल 1954 को भारत व चीन के बीच पंचशील समझौता हुआ था। सतलुज सदन में आकर रुकने वाले हर वीवीआइपी इस कक्ष को देखना नहीं भूलता। पंडित नेहरू ही नहीं भाखड़ा-नंगल पहुंचने वाले अधिकांश वीवीआइपी का ठिकाना आज भी सतलुज सदन बना हुआ है। झील किनारे स्थित होने के कारण सतलुज सदन आने वाले लोग वादियों के मुरीद बनकर लौटते हैं।

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