नìसग स्टाफ ने बंधाई हिम्मत तो संयम से कोरोना पर पाई फतेह
किसी भी मरीज को तंदुरुस्त करने का मुख्य जिम्मा चाहे डाक्टर का होता है लेकिन सच्चाई ये है कि मरीज की देखभाल में ज्यादा समय नìसग स्टाफ का ही व्यतीत होता है।
यादविंदर गर्गस, नाभा (पटियाला)
किसी भी मरीज को तंदुरुस्त करने का मुख्य जिम्मा चाहे डाक्टर का होता है लेकिन सच्चाई ये है कि मरीज की देखभाल में ज्यादा समय नìसग स्टाफ का ही व्यतीत होता है। यही कारण है कि मरीज और नìसग स्टाफ के बीच एक दोस्ताना रिश्ता खुद ही बन जाता है। यह मैंने अनुभव किया जब मुझे कोरोना हुआ। इन दिनों कोरोना के नाम से ही मरीज घबरा जाता है। मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। जब कोरोना हुआ तो मेरे स्वजन मुझे मेरे गाव सहौली से नाभा के सिविल अस्पताल लाए। टेस्ट करवाया तो पाजिटिव निकला। तब मैंने प्रभु की मर्जी समझकर इस महामारी पर जीत हासिल करने की ठानी। सिविल अस्पताल में डा. अनुमेहा भल्ला व नìसग स्टाफ इलाज में जुटा। नìसग स्टाफ की सदस्य कुलजीत कौर और दलबीर के बारे में तो याद है कि उन्होंने कभी बीमार होने का अहसास ही नहीं होने दिया। दोनों यही कहती थी कि संयम रखो इस बीमारी से पार पा जाओगे। जहा वह समय समय पर दवा देतीं वहीं तंदुरुस्त होने के लिए हौसलाअफजाई भी करती थी। अस्पताल में नìसग स्टाफ मुझे आठ दिनों तक नियमित रूप से दवा देता रहा और धीरे-धीरे मेरी तबीयत सुधरनी शुरू हो गई। उसके बाद मुझे रिलीव किया गया तो नìसग स्टाफ ने आत्मीयता दिखाते हुए मुझे अपना ख्याल खुद ही बेहतर तरीके से रखने को प्रेरित किया। इस पर घर में क्वारंटाइन होकर हिम्मत व संयम से पालन करते हुए इस महामारी पर जीत हासिल की। अब पूरी तरह से ठीक हूं। मेरे इलाज में अहम भूमिका निभाने वाले नìसग स्टाफ की याद ताउम्र मन में रहेगी।
(जैसा नाभा के निकट गाव सहौली की हरमेश कौर ने दैनिक जागरण को बताया)