किरपाल ने डिसकस थ्रो में गोल्ड और दविदर ने शाटपुट में जीता सिल्वर मेडल

आल ओपन नेशनल चैंपियनशिप में किरपाल ने गोल्ड और दविदर ने सिल्वर मेडल जीतकर पटियाला का नाम रोशन किया है।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 20 Sep 2021 10:50 AM (IST) Updated:Mon, 20 Sep 2021 10:50 AM (IST)
किरपाल ने डिसकस थ्रो में गोल्ड और दविदर ने शाटपुट में जीता सिल्वर मेडल
किरपाल ने डिसकस थ्रो में गोल्ड और दविदर ने शाटपुट में जीता सिल्वर मेडल

जागरण संवाददाता, पटियाला : आल ओपन नेशनल चैंपियनशिप में किरपाल ने गोल्ड और दविदर ने सिल्वर मेडल जीतकर पटियाला का नाम रोशन किया है। ओपन नेशनल में किरपाल ने 59.58 मीटर थ्रो के साथ एशियन गेम्स के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है। अब किरपाल का अगला टारगेट कामनवेल्थ गेम्स के लिए क्वालीफाई करना है। वहीं दविदर ने भी एशियन गेम्स में क्वालीफाई करने की तैयारी शुरू कर दी है। हालांकि सरकार की तरफ से सहायता ना मिलने के कारण खिलाड़ी काफी निराश हैं और भविष्य में बेहतर प्रदर्शन के लिए पंजाब सरकार से सहयोग की मांग की है। किरपाल और दविदर का कहना है कि उन्होंने खुद फंड्स की व्यवस्था करके यह मुकाम हासिल किया है।

दविदर ने बताया कि वह फेडरेशन कप में कांस्य और ओपन नेशनल चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल अपने पिता किरपाल की गाइडेंस से जीता है। इंजरी के बावजूद लगातार तीन गोल्ड जीते

किरपाल ने बताया कि डिस्कस थ्रो की प्रैक्टिस के दौरान साल 2012 में इंजर्ड हो गया था, जिसके चलते वह चार साल तक प्रैक्टिस नहीं कर सका। इस उपरांत साल 2015 में पिता की मौत हो गई, जिसके चलते कुछ समय फिर वह काफी समय फोकस नहीं कर सका। इसके उपरांत साल 2017 में दोबारा चोटिल होने के कारण दो साल खेल से दूर रहा। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और साल 2019 में दोबारा प्रैक्टिस शुरू की और फेडरेशन, इंटर स्टेट और ओपन नेशनल चैंपियनशिप में लगातार तीन गोल्ड मेडल जीतने के साथ-साथ एशियन गेम्स के लिए भी क्वालीफाई कर लिया है। कोविड के दौरान कई ग्राउंड्स में जाकर की प्रैक्टिस

किरपाल और दविदर सिंह ने बताया कि कोविड के दौरान एनआइएस बंद होने के कारण प्रैक्टिस करने में काफी परेशानी झेलनी पड़ी। इसके चलते स्टेट कालेज, डीएमडब्ल्यू और यूनिवर्सिटी के ग्राउंड्स में जाकर प्रैक्टिस जारी रखी। इस दौरान काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। इतनी परेशानियों के बावजूद मेडल जीतने के बाद भी खिलाड़ियों को ना तो कोई सरकारी सहायता मिली और ना ही दविदर को कोई नौकरी आफर की गई।

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