शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल वापस भेज रहे धरती में

भू-जल स्तर का दिन-ब-दिन गिर रहा स्तर इन दिनों गंभीर चिता का विषय है।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 22 Apr 2021 11:59 PM (IST) Updated:Thu, 22 Apr 2021 11:59 PM (IST)
शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल वापस भेज रहे धरती में
शिवलिंग पर चढ़ाया जाने वाला जल वापस भेज रहे धरती में

जागरण संवाददाता, पटियाला : भू-जल स्तर का दिन-ब-दिन गिर रहा स्तर इन दिनों गंभीर चिता का विषय है। ऐसे में इस समस्या को भांपते हुए पटियाला जिला के ब्लाक भादसों का श्री दुर्गा माता मंदिर हर साल जलाभिषेक का करीब एक लाख लीटर पानी बचा रहा है। मंदिर कमेटी द्वारा शिवलिग पर चढ़ रहे जल को वापस धरती में भेजने के लिए मंदिर में बोरवेल करवाया गया है। इससे शिवलिग पर चढ़ने वाला जल नालियों में बहने के बजाय वापस धरती में चला जाता है।

इसके तहत आस्था का भी अहम रोल है, शिवलिग की पूजा कर जहां जल नालियों में बहने से भक्तों की आस्था को ठेस पहुंचती है, वहीं बोरवेल के जरिए शिवलिग पर चढ़े जल का निरादर भी नहीं होता और जल की बर्बादी भी नहीं होती। इस प्रयास से हर साल करीब एक लाख लीटर से ज्यादा पानी बचाया जा रहा है। इसके साथ ही मंदिर के प्रबंधकों का मानना है कि शिवलिग पर चढ़ा पानी और भी शुद्ध हो जाता है जोकि भू-जल में मिलकर इसे भी शुद्ध करता है। मंदिर प्रबंधकों के अनुसार सभी मंदिरों को यह सिस्टम अपनाने की बात कही जा रही है, ताकि गिर रहे भू-जल स्तर को बचाया जा सके। श्री नैना देवी मंदिर से मिला था आइडिया

श्री दुर्गा मंदिर भादसों के प्रधान सूरजभान सिगला ने बताया कि उन्होंने यह प्रोजेक्ट हिमाचल स्थित श्री नैना देवी मंदिर में देखा था। जहां शिवलिग के पानी के लिए बोर करवाया हुआ था। जिसके बाद कमेटी ने फैसला किया वह भी इसी प्रोजेक्ट के तहत शिवलिग के पानी की व्यवस्था करेंगे। जिसके बाद भादसों में दुर्गा माता मंदिर ने यह व्यवस्था शुरू की। पहले पौधों में डाला जाता था शिवलिग पर चढ़ाया जल

सिगला ने बताया कि धार्मिक आस्था के मद्देनजर इससे पहले भी जल को नालियों में नहीं बहाया जाता था। इसके लिए मंदिर में पौधे लगाए गए थे। जिनमें शिवलिग पर चढ़ाया जल आ जाता था। इससे जहां पौधों की पानी की आपूर्ति पूरी हो जाती थी, वहीं शिवलिग पर चढ़ाए जल का निरादर भी नहीं होता था। लेकिन धीरे-धीरे मंदिरों में भक्तों की गिनती बढ़नी शुरू हो गई। ऐसे में जल ज्यादा होने के कारण बर्बाद होना शुरू हो गया। जिसके बाद मंदिर कमेटी ने बोर करवाने का फैसला किया और शिवलिग पर चढ़ाए जा रहे जल को सीधा बोरवेल में डालने की व्यवस्था करवाई।

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