डीसी आफिस खुद पहुंचकर शिकायत करने वालों को देर से मिलता है इंसाफ, आनलाइन शिकायतों का 30 दिन में हो रहा निपटारा
लोगों द्वारा खुद पहुंचकर दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों में देर होने के संबंध में पूछने पर ग्रीविएंस सेल के एक स्टाफ सदस्य ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि शिकायतें विभिन्न विभागों से संबंधित होती हैं। कई बार मामला जमीन को लेकर लड़ाई-झगड़े का होता है तो कई बार अन्य पारीवारिक विवादों से जुड़े मामले होते हैं।
जागरण संवाददाता, पठानकोट: डीसी आफिस में खुद पहुंचकर अपनी शिकायतें दर्ज कराने वाले लोगों को इंसाफ मिलने में देर लगती है, जबकि आनलाइन शिकायतें दर्ज कराने वालों को अधिकतर मामलों में 30 दिन में इंसाफ मिल जाता है। डीसी आफिस के ग्रीविएंस सेल में आनलाइन शिकायतों के निपटारे को 30 दिन का समय निर्धारित किया गया है। सरकार की ओर से तय समय में अधिकतर आनलाइन शिकायतों का निपटारा कर भी दिया जाता है। हालांकि खुद डीसी आफिस पहुंचकर शिकायतें दर्ज कराने वाले लोगों को इंसाफ मिलने में काफी वक्त लग जाता है। ग्रीविएंस सेल के स्टाफ सदस्यों की मानें तो एक दिन में अमूमन चार से पांच आनलाइन शिकायतें आती हैं, जबकि अधिकतर शिकायतें लोगों द्वारा खुद पहुंचकर दर्ज कराई जाती हैं। करीब 30 से 40 शिकायतें लोगों द्वारा हर रोज खुद डीसी आफिस पहुंचकर दर्ज कराई जाती हैं।
लोगों द्वारा खुद पहुंचकर दर्ज कराई जाने वाली शिकायतों में देर होने के संबंध में पूछने पर ग्रीविएंस सेल के एक स्टाफ सदस्य ने नाम न लिखने की शर्त पर बताया कि शिकायतें विभिन्न विभागों से संबंधित होती हैं। कई बार मामला जमीन को लेकर लड़ाई-झगड़े का होता है तो कई बार अन्य पारीवारिक विवादों से जुड़े मामले होते हैं। ऐसे में संबंधित विभाग फिर चाहे राजस्व विभाग हो अथवा पुलिस विभाग हो को मामले जांच के लिए भेज दिए जाते हैं। इसमें फाइलें एक जगह से दूसरी जगह जाने अथवा इसकी जांच में समय लग जाता है। ग्रीविएंस सेल से मिली जानकारी में बताया गया कि इसके अलावा अन्य सरकारी विभागों से संबंधित भी कई शिकायतें होती हैं। ऐसे में उनके निपटारे में कई बार बहुत समय लग जाता है।
वहीं, स्टाफ के मुताबिक आनलाइन शिकायतों के निपटारे के लिए 30 दिन का समय निर्धारित होने के चलते इनकी लगातार मानिटरिग होती है और समय रहते ज्यादातर मामलों को निपटा लिया जाता है। ग्रीविएंस सेल के मुताबिक आनलाइन शिकायतों के केवल एक प्रतिश्त मामले लंबित हैं, जबकि अन्य शिकायतों के 35 स 40 फीसदी मामले विचाराधीन हैं।