निर्जला एकादशी : नहीं आयोजित हुए विशेष कार्यक्रम, भक्तों ने की मंदिरों में पूजा

निर्जला एकादशी पर सोमवार को जिले के विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना की गई।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 21 Jun 2021 04:15 PM (IST) Updated:Mon, 21 Jun 2021 04:15 PM (IST)
निर्जला एकादशी : नहीं आयोजित हुए विशेष कार्यक्रम, भक्तों ने की मंदिरों में पूजा
निर्जला एकादशी : नहीं आयोजित हुए विशेष कार्यक्रम, भक्तों ने की मंदिरों में पूजा

जागरण संवाददाता, पठानकोट : निर्जला एकादशी पर सोमवार को जिले के विभिन्न मंदिरों में पूजा अर्चना की गई। सुबह से ही मंदिरों ने श्रद्धालु जुटने लगे। महिलाओं ने निर्जला उपवास रखकर एकादशी का व्रत रखा। साथ ही दान भी किए। हालांकि कोरोना को देखते शहर भर में कोई विशेष कार्यक्रम आयोजित नहीं किए गए, लेकिन जगह जगह पर दुकानदारों व समाजसेवियों ने लंगर व जल सेवा की। इन स्थानों पर भीड़ अधिक एकत्रित न हो इसके लिए एहतियात बरती गई।

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन बिना जल के उपवास रखने की परंपरा है। बताया जाता है कि इससे साल की सारी एकादिशयों का पुण्य मिलता है। शहर के मंदिरों में विशेष आयोजन किए जाते हैं। मौसमी फलों, दूध, पंखी, पानी का मटका, दान राशि, चावल या गेहूं का दान किया जाता है।

शनिदेव मंदिर के पुजारी विजय का कहना है कि वर्षभर में 24 और पुरुषोत्तम मास वर्ष में 26 एकादशी होती हैं, जिसमें से निर्जला, जल झूलनी, देवउठनी, और निर्जला को बड़ी एकादशी माना गया है। निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं। इसकी कथा में बताया गया कि माता कुंती और चार पांडव निर्जला एकादशी का व्रत करते थे, लेकिन भीम नहीं करता था। सभी ने एकादशी के लिए भीम पर दबाव बनाया। सभी के दबाव और व्यासजी की समझाने पर भीम ने भी निर्जला एकादशी की तो इसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाने लगा।

शहर के काली माता मंदिर, शनिदेव मंदिर, श्री राम मंदिर में भक्तों ने पूजा की। वहीं शाहपुरमंडी मंदिर स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर, मुक्तेश्वर धाम मंदिर, काठगढ़ मंदिर, चटपट बनी मंदिर में काफी श्रद्धालु पहुंचे।

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