आतंकवादियों पर मौत बनकर टूटे पड़े थे शहीद अरुण जसरोटिया, श्रद्धांजलि समारोह आज
15 सितंबर 995 को उनकी सेना टुकड़ी को लोलाव घाटी में स्थित एक गुफा में आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली कैप्टन जसरोटिया ने अपने साहस शूरवीरता का परिचय देते हुए 300 मीटर की कठिन चढ़ाई चढ़ कर आतंकवादियों पर मौत बनकर टूट पड़े कई आतंकवादियों को मार गिराया जिसमें कैप्टन जसरोटिया बुरी तरह से घायल हो गए।
संवाद सहयोगी, सुजानपुर: शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया ने 27 वर्ष की आयु में ही अदम्य साहस का परिचय देते हुए आतंकवादियों से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त कर अपना नाम शहीदों की श्रृंखला में स्वर्ण अक्षरों से लिखवाया।
कुंवर रविदर विक्की ने बताया कि कैप्टन अरुण जसरोटिया का जन्म सुजानपुर में 16 अगस्त 1968 को पिता कर्नल प्रभात सिंह जसरोटिया माता सत्या देवी के घर में हुआ। 12वीं तक की शिक्षा उन्होंने केन्द्रीय विद्यालय पठानकोट से पूरी की। 1987 में भारतीय सेना की आठ विहार रेजिमेंट में भर्ती होकर देश की सेवा में जुट गए। 1992 में जसरोटिया ने नौ पैरा कमांडो में शामिल होकर जम्मू कश्मीर के आतंकवाद प्रभावित क्षेत्र कुपवाडा में तैनात हो गए।
15 सितंबर 995 को उनकी सेना टुकड़ी को लोलाव घाटी में स्थित एक गुफा में आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना मिली कैप्टन जसरोटिया ने अपने साहस शूरवीरता का परिचय देते हुए 300 मीटर की कठिन चढ़ाई चढ़ कर आतंकवादियों पर मौत बनकर टूट पड़े कई आतंकवादियों को मार गिराया, जिसमें कैप्टन जसरोटिया बुरी तरह से घायल हो गए। उन्हें उपचार हेतु पहले श्रीनगर उसके बाद दिल्ली में सेना के अस्पताल में ले जाया गया यहा पर दस दिनों मौत से जूझने के बाद इस वीर सपूत ने 26 सितंबर, 1995 को वीरगति प्राप्त कर ली। उनकी इस बहादुरी के लिए देश के राष्ट्रपति ने मरणो उपरांत अशोक चक्र से नवाजा। शहीद कैप्टन अरुण जसरोटिया का 26वां शहीदी दिवस पर उनके निवास स्थान अरुण नगर सुजानपुर में श्रद्धांजलि समारोह आयोजन होगा।