साक्षत्कार : 'जिम्मेदारी बढ़ गई है, परिवार से मिलने का भी समय नहीं'

डाक्टर पूरी तनदेही से कोरोना को खत्म करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। तीसरी लहर कभी भी आ सकती है जिससे निपटने के लिए जिले में भी विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। अस्पताल के स्टाफ को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। आइसोलेशन सेंटर बढ़ाए गए हैं। ये कहना जिले के सिविल सर्जन डा. हरविंदर सिंह का।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 29 Jul 2021 05:33 AM (IST) Updated:Thu, 29 Jul 2021 05:33 AM (IST)
साक्षत्कार : 'जिम्मेदारी बढ़ गई है, परिवार से मिलने का भी समय नहीं'
साक्षत्कार : 'जिम्मेदारी बढ़ गई है, परिवार से मिलने का भी समय नहीं'

सूरज प्रकश, पठानकोट: कोरोना के इस दौर में जहां एक ओर लोग अपने परिवार के साथ समय बिता रहे है। वहीं दिन-रात लोगों की सेवा में लगे कई डाक्टरों व अन्य हेल्थ वर्कर्स को कई दिनों तक अपने परिवार से बात करना भी नसीब नहीं हो रहा है। डाक्टर पूरी तनदेही से कोरोना को खत्म करने के लिए मेहनत कर रहे हैं। तीसरी लहर कभी भी आ सकती है, जिससे निपटने के लिए जिले में भी विशेष इंतजाम किए जा रहे हैं। अस्पताल के स्टाफ को विशेष ट्रेनिंग दी जा रही है। आइसोलेशन सेंटर बढ़ाए गए हैं। ये कहना जिले के सिविल सर्जन डा. हरविंदर सिंह का। दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि उन्हें कोरोना से उनकी जिंदगी में क्या बदलाव आए और कोरोना से निपटने के लिए क्या तैयारियां की हैं। प्रश्न: कोरोना तीसरी लहर से निपटने के लिए क्या प्रबंध किए गए हैं?

उत्तर: करोना से निपटने के लिए सिविल अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए बनाए गए स्थायी व अस्थायी आइसोलेशन सेंटर बनाए गए हैं। जहां मरीजों के लिए सभी प्रबंध मुकम्मल कर लिए हैं। सिविल के आइसोलेशन वार्ड में सभी बेड के साथ आक्सीजन सप्लाई वाली पाइप लाइनें बिछा दी गई हैं। आक्सीजन जेनरेशन प्लांट भी अगस्त के अंत तक तैयार हो जाएगा। स्टाफ व डाक्टरों को तीसरी लहर से निपटने के लिए ट्रेनिग भी दी जा रही है। आइसोलेशन वार्ड में बच्चों के लिए 30 बेड का वार्ड अलग से तैयार करवाया गया है और 70 बेड का आइसोलेशन वार्ड बड़ों के लिए बनाया गया है। प्रश्न: कोविड के चलते आपकी जिंदगी में क्या बदलाव आए?

उत्तर: कोविड से पहले अपने परिवार के साथ रहता था और परिवारिक सदस्यों के साथ सभी दुख-सुख की बातें भी कर लेते थे, लेकिन अब जिम्मेदारी बढ़ गई है। परिवार से दूर रहकर काम को पहल दे रहा हूं। पूरा दिन काम में निकल जाता है। रात को समय मिलता तो फोन पर परिवार से बात कर लेता हूं। कई बार तो फोन भी नहीं कर पाता। प्रश्न: परिवार के लिए कैसे निकालते हैं समय ?

उत्तर: मेरा परिवार नवांशहर में रहता है और मैं पठानकोट में किराये के घर में रह रहा हूं। ऐसे में कई बार परिवार से मिलना मुश्किल हो जाता है। कोविड के चलते वे महीने में एक-दो बार ही घर जा पाते हैं। प्रश्न: कोरोना के चलते आपकी जिम्मेदारी बढ़ी गई है। इस बारे में क्या कहेंगे?

उत्तर: जैसा कि आप जानते महामारी का दौर चल रहा है। इसलिए ड्यूटी की कोई समय सीमा नहीं है। कभी-कभी तो 10-12 घंटे कब बीत जाते हैं पता ही नहीं चलता। इमरजेंसी हो तो छुट्टी वाले दिन भी आफिस आना पड़ता है। इमरजेंसी के लिए मैं हमेशा तैयार रहता हूं चाहे दिन हो या रात हो। प्रश्न: डाक्टरों की तरफ से की जा रही हड़ताल के बारे मेंआपकी क्या राय है?

उत्तर: एनपीए को लेकर जो हड़ताल चल रही है वह मसला स्टेट लेवल का है। अपने हक के लिए हर किसी को लड़ने का अधिकार है और डाक्टर तो दिन-रात मरीजों की सेवा में रहते है और उन्हें उनके अधिकार मिलने ही चाहिए। जब भी डाक्टरों को उनकी जरूरत या समर्थन के लिए बोला है तो समर्थन के लिए वह तैयार रहते है। उनकी मांगे जायज है। प्रश्न: सरकारी ओपीडी बंद है और आमजन के भी कई कार्य नहीं हो रहे हैं। क्या कहेंगे?

उत्तर: डाक्टर हड़ताल पर हैं, इस कारण सरकारी ओपीडी बंद है, लेकिन उन्होंने फिर भी मरीजों को सुविधा देने के लिए खुद के खर्च पर पैरलल ओपीडी शुरू की है। बाकी इमरजेंसी सेवाएं तो डाक्टर निभा ही रहे हैं और इमरजेंसी सेवाएं 24 घंटे चालू है। सरकार को डाक्टरों की मांगों तरफ ध्यान देना चाहिए ताकि मरीज पहले जैसी सुविधा हासिल कर सके।

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