पशुओं को मुंह व खुर की बीमारी बचाने के लिए टीकाकरण जरूरी

पशुओं को संक्रमण की बीमारियों से बचाने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पशुपालन विभाग की तरफ से कैंप लगाया गया

By JagranEdited By: Publish:Tue, 13 Apr 2021 04:36 PM (IST) Updated:Tue, 13 Apr 2021 04:36 PM (IST)
पशुओं को मुंह व खुर की बीमारी बचाने के लिए टीकाकरण जरूरी
पशुओं को मुंह व खुर की बीमारी बचाने के लिए टीकाकरण जरूरी

जागरण संवाददाता, नवांशहर :

पशुओं को संक्रमण की बीमारियों से बचाने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पशुपालन विभाग की तरफ से कैंप लगाया गया। कैंप में डिप्टी कमिश्नर डा. सेना अग्रवाल ने कहा कि पशु पालकों को पशु पालन विभाग की तरफ से चलाए जा रहे टीकाकरण और प्रशिक्षण कैंप में अधिक से अधिक संख्या में शामिल होना चाहिए।

इस दौरान उन्होंने पशु पालन विभाग की तरफ से राष्ट्रीय पशु बीमारी कंट्रोल प्रोग्राम का पोस्टर भी जारी किया। उन्होंने कहा कि इस प्रोगराम का मुख्य मकसद टीकाकरण के द्वारा पशुओं में मुंह-खुर और बरूसीलोसिस की बीमारी को जड़ से खत्म करना है। डीसी ने बताया कि विभाग की तरफ से पशुओं का टीकाकरण और टैगिग बिल्कुल फ्री की जा रही है। इसका अधिक से अधिक पशु पालकों को लाभ उठाना चाहिए।

इस मौके पर डिप्टी डायरेक्टर पशु पालन डा. रणजीत बाली ने बताया कि राष्ट्रीय पशु बीमारी कंट्रोल प्रोग्राम के अंतर्गत विभाग की टीमों से तरफ से घर -घर जा कर मुंह और खुर की बीमारी से बचाव के लिए मुफ्त टीकाकरण किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस के अंतर्गत भैंसों, गायों, भेड़-बकरियों और सूअरों आदि का टीकाकरण किया जा रहा है। इसी तरह बछड़ों को बरूसीलोसिस का टीकाकरण छह से 12 माह की उम्र तक किया जाता है, जिस के साथ पशुओं के साथ-साथ हम खुद भी इस बीमारी से बच सकते हैं।

डाक्टर बाली ने बताया कि बताया कि पशुओं के टीकाकरण से पहले कानों में टैग लगवा कर रजिस्ट्रेशन करवाना जरूरी है। उन्होंने बताया कि पशुओं के लिए यह एक तरह का आधार कार्ड है। उन्होंने बताया कि पशुओं की शिनाख्त के लिए पशु के कान में 12 डिजिट का टैग मुफ्त लगाया जाता है। उन्होंने कहा कि सरकारी स्कीमों का लाभ लेने और भविष्य में पशुओं से संबंधित किसी भी तरह की सुविधा प्राप्त करने के लिए पशु के कान में टैग होना •ारूरी होगा। इस मौके अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर (विकास) अमरदीप सिंह बैंस, सीनियर वेटनरी अधिकारी डा. हरमेश तलवाड़ आदि मौजूद रहे।

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