श्रीकृष्ण का कर्म व ज्ञानयोग अनुकरणीय
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी का इसलिए महत्व है कि इस दिन श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी का इसलिए महत्व है कि इस दिन श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। धरती पर महापुरुष का जन्म दुनिया को प्रकाश देने के लिए होता है। जब जब धरती पर पाप बढ़ता है तब तब किसी न किसी महापुरुष का जन्म उस पाप को मिटाने के लिए, न्याय और धर्म की स्थापना करने के लिए होता है। यह विचार पंजाब सिंहनी प्रदीप रश्मि जी महाराज ने एसएस जैन सभा के प्रांगण में श्रद्धालुओं से कहें।
उन्होंने कहा की उस समय की प्रजा जरासंध व कंस जैसे राजाओं के अत्याचारों से दुखी होकर कराहती रहती थी। ऐसे समय में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। जिसका जन्म दुनिया को त्राण देने के लिए होता है उसे कोई नहीं मार सकता। कंस भी श्री कृष्ण को नहीं मार सका।
कई लोग कहते हैं कि हम भी बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन क्या करें हमें परिस्थितियां ही अनुकूल नहीं मिली है। लेकिन उनको देखना चाहिए कि श्रीकृष्ण को कौन सी परिस्थिति अनुकूल मिली थी। जन्म जेल में हुआ और जन्म के बाद भी मौत सिर के ऊपर मंडराती रही। उनके जीवन में हर पल मुसीबतों की बिजलियां कड़कड़ाती रही लेकिन फिर भी वह हर परिस्थिति में हंसते मुस्कुराते हुए नजर आते हैं। जब उन पर फूलों की वर्षा हुई वह तब भी मुस्कुराते हैं और जब उन पर मौत मंडराई वह तब भी मुस्कुराते हैं। श्री कृष्ण ने पूतना कालिया नाग, जरासंध, शिशुपाल व कंस जैसे अत्याचारियों के अत्याचारों से जनता को मुक्ति दिलाई और गणतंत्र की स्थापना की। जिसमें सब लोग सुख से जीने लगे। तब सारी जनता ने उस साम्राज्य के झंडे के नीचे आकर श्रीकृष्ण की स्तुति करने लगी कि हे कृष्ण तुम ही हमारे बंधु हो सखा हो तुम ही हमारे देव हो। श्री कृष्ण ने अपने गरीब मित्र सुदामा को अपने सामान वैभव प्रदान कर उसका उत्थान किया। हमें भी चाहिए कि अगर कोई हमारा भाई बंधु दोस्त मित्र गरीब हो गया है तो हमें उसका सहयोग कर उसका उत्थान करना चाहिए। श्रीकृष्ण के कर्मयोग ज्ञानयोग व भक्तियोग को हम अपने जीवन में ग्रहण करें तभी उनकी कृष्ण जन्माष्टमी मनाना सार्थक होगा।
इस अवसर पर एसएस जैन सभा के प्रधान प्रवीण कुमार जैन, कोषाध्यक्ष रमेश कुमार जैन, धर्मवीर जैन,सिद्धार्थ जैन, बिहारी लाल जैन, विजय कुमार जैन, लाली गगनेजा, जगीर सिंह व हरमेश कुमार सहित अनेक लोग उपस्थित थे।