लंबा जीना है तो रात्रि भोजन त्याग दें : प्रदीप रश्मि
सभी धर्मों में उपचार पद्धतियों में वैज्ञानिक शोधों में रात्रि भोजन को वर्जित माना गया है।
संवाद सूत्र, मलोट (श्री मुक्तसर साहिब)
सभी धर्मों में उपचार पद्धतियों में वैज्ञानिक शोधों में रात्रि भोजन का निषेध किया गया है। जैन धर्म में रात्रि भोजन को पाप कहा गया है। सूर्य प्रकाश में सूक्ष्म जीव छिपे रहते हैं। रात्रि के अंधकार में सूक्ष्म कीटाणु बाहर आ जाते हैं जब भोजन लेकर बैठते हैं तो भोजन की सुगंध से आकर्षित हो उसमें गिरते हैं और अपने प्राण गंवा देते हैं। इन जीवों की रक्षा के लिए ही रात्रि भोजन का निषेध किया गया है। वैदिक धर्म में भी नरक के चार द्वार बताए गए हैं। इसमें पहला द्वार रात्रि भोजन को कहा गया। बौद्ध धर्म में भी रात्रि भोजन को पाप माना है। यह विचार पंजाब प्रदीप रश्मि जी ने श्रद्धालुओं से धर्म चर्चा के दौरान कहे।
उन्होंने बताया कि रात का समय तमस का समय होता है इसलिए चोरी अपराध भूत प्रेम जैसी नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव रात्रि को ही अधिक होता है। रात्रि के समय किया जाने वाला आहार कितना ही सात्विक क्यों न हो वह तामसिक बन जाता है। उसमें हमारे भीतर क्रोध, वैर, हिसा के तामसिक भाव उठते हैं। आयुर्वेद कहता है कि हमारी पेट का जठर अग्रि प्रदीप्त होती है और सूर्यास्त के समय मंद पड़ जाती है। रात को बिल्कुल ठंडी हो जाती है। इसलिए रात को खाने से पेट पचा नहीं सकता उससे अपने विकार पैदा होते हैं जो ह्दय रोग, शुगर, कैंसर जैसी बीमारियों का कारण बनते हैं। आयुर्वेद कहता है कि जो लोग पेट को नरम रखते हैं दिमाग को ठंडा रखते हैं, पैर को गर्म रखते हैं उनको कभी डॉक्टर के पास नहीं जाना पड़ता वह हमेशा स्वस्थ रहते हैं। जिनको स्वस्थ जीना है लंबा जीना है उन्हें रात्रि भोजन त्याग देना चाहिए। इस अवसर पर एसएस जैन सभा के अध्यक्ष प्रवीण जैन, सुभाष जैन, धर्मवीर जैन, टेक चन्द जैन, सुरेश जैन, राजू जैन, सिद्धार्थ जैन व सुरेश जैन भी उपस्थित थे।