शरीर नश्वर, आत्मा अजर-अमर व अविनाशी : स्वामी दिव्यानंद जी
स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने माघ महात्म्य कथा के दौरान प्रवचन का कार्यक्रम करवाया गया।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने माघ महात्म्य कथा के दौरान प्रवचन की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि यह शरीर नाश्वर है। आत्मा अमर है। अजर है और अविनाशी है। हरएक व्यक्ति में परमात्मा निवास करता है। इसलिए सृष्टि में किसी से भी नफरत नहीं करनी चाहिए। दूसरे के साथ नफरत करने वाला व्यक्ति आत्मबोध से दूर होता जाता है।
अहिसा पर चर्चा करते हुए स्वामी जी ने बताया कि यदि धीरज शांति भले-बुरे का ज्ञान की जानकारी चाहते हैं तो अंदर-बाहर से अहिसक बने। अहिसा निर्बल और डरपोक का नहीं, वीरों का धर्म है। स्वामी जी ने ये विचार अबोहर रोड स्थित श्री मोहन जगदीश्वर दिव्य आश्रम में माघ महात्म्य कथा के दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष व्यक्त किए। स्वामी ने कहा कि जो व्यक्ति अच्छे कर्म नहीं करता उसे कोई भी सगा-संबंधी उसके किए गए कर्मों के फल से बचा नहीं सकते। मनुष्य अंत समय में खाली हाथ ही इस दुनिया से चला जाता है। इसलिए धन-दौलत बटोरने की बजाए अच्छे कर्म कमाओ। अच्छे कर्म ही मनुष्य के साथ जाएंगे। मृत्यु को हमेशा याद रखना चाहिए क्योंकि जिस व्यक्ति को मृत्यु याद रहेगी उसे भगवान भी याद रहेंगे। अगर मृत्यु का भय समाप्त हो जाएगा तो व्यक्ति को भगवान याद नहीं रहते। इसलिए सदैव मृत्यु को याद रखो। दिन रात रुपये-पैसे कमाने की होड़ में नहीं लगे रहना चाहिए। अंत समय में तो सिकंदर भी खाली हाथ ही गया था। आज संसार में हर प्राणी सुख की तलाश में है परंतु उसे फिर भी सुख नसीब नहीं होता। इसका एक ही कारण है मनुष्य की कपटवृति। मनुष्य की आत्मा जब तक पवित्र नहीं होगी तब तक उसके जीवन का कल्याण नहीं होगा और न ही उसे सुख की अनुभूति होगी। इसलिए मन व आत्मा को पवित्र बनाओ। हमेशा दूसरों का भला करते रहो तो खुद का भला अपने आप होगा, क्योंकि भगवान दूसरों की मदद करने वाले को कभी दु:खी नहीं करते। मनुष्य को सद्कर्म करने चाहिए और दुष्कर्मों से बचना चाहिए। इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालु मौजूद थे। आवश्यकता व इच्छा में फर्क समझे मानव
भागवत कथा दौरान स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि आवश्यकता व इच्छा में फर्क होता है। मानव के लिए आवश्यकता व इच्छा का फर्क समझना बहुत जरुरी है। संसार में जितने भी प्राणी या जीव-जंतु हैं, प्रभु उन सब की आवश्यकताओं की पूर्ति अवश्य करते हैं लेकिन इच्छा की पूर्ति न आज तक किसी की हुई है और न होने वाली है। व्यर्थ की इच्छाएं पालने से कोई लाभ नहीं। मनुष्य की इच्छाएं जितनी बढ़ती जाती हैं, जीवन में उतना ही तनाव बढ़ता जाता है। इस संसार में जो भी व्यक्ति इच्छा रखेगा वह कभी स्वाधीन नहीं रह सकता। हमेशा पराधीन ही रहेगा। सुख प्राप्ति की आशा में ही व्यक्ति पूरी उम्र व्यर्थ गंवा देता है। यहां तक कि मरते-मरते भी सुख की सूक्ष्म वासना साथ ले जाता है। जिस कारण दोबारा जन्म लेकर फिर सुख की खोज में लग जाता है तथा यूं ही जन्म व मरण के चक्कर में पड़ा रहता है। इसलिए मनुष्य को आवश्यकता व इच्छा में फर्क समझना चाहिए।
इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी एवं विवेकानंद जी महाराज से आशीर्वाद प्राप्त किया। मंदिर प्रांगण सद्गुरु देव महाराज के जयकारों से गूंज उठा।