कार्तिक मास में पंचगव्य का सेवन करने वाला रहता है निरोग
स्वामी कमलानंद गिरि ने चंद्रायण व्रत पर चर्चा करते हुए कहा कि यह मनोकामना पूर्ण करने वाला व्रत है।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब
स्वामी कमलानंद गिरि ने चंद्रायण व्रत पर चर्चा करते हुए कहा कि कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से रखे जाने वाले तथा शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को संपन्न होने वाले व्रत को चंद्रायण व्रत कहते हैं। चंद्रायण व्रत करोड़ों में एक व्यक्ति ही नियम से रख सकता है। स्वामी कमलानंद ने ये विचार श्री राम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव के दौरान शनिवार को श्रद्धालुओं के विशाल जनसमूह के समक्ष प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि कृष्ण पक्ष की एकम को 14 ग्रास भोजन करना होता है। उसके बाद एक-एक ग्रास घटाते हुए कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को केवल एक ग्रास भोजन करना होता है। अमावस्या के दिन निराहार रहकर व्रत रखना है। उन्होंने कहा कि शुक्ल पक्ष प्रतिपदा से एक-एक ग्रास बढ़ाते हुए शुक्ल चतुर्दशी को पूरा 14 ग्रास भोजन करना है।
पूर्णिमा को 30 ब्राह्मणों को भोजन करा कर दक्षिणा में चांदी के दीपक में सोने की बाती बना कर भेंट करने का विधान है। स्वामी जी ने कहा कि कार्तिक मास में पंचगव्य का सेवन करने का भी महत्व बताया गया है। वह व्यक्ति निरोग रहता है जो पूरे कार्तिक माह पंचगव्य का सेवन करता है। पंचगव्य में गाय का दूध, गाय का घी, गोबर, गोमूत्र और गाय को दूध का दहा का समिश्रण करना होता है। महाराज जी ने ब्रह्मा जी का व्रत करने की भी प्रेरणा दी। विधि व्रत में भगवान ब्रह्मा जी का स्मरण करते हुए अपने सास-ससुर, फूफी-सास, फूफा-ससुर एवं घर के बुजुर्गों का सम्मान करना होता है। इनको कुलवृद्ध कहते हैं। इनका सम्मान विधि पूर्वक हो जाए तो ब्रह्मा जी हमेशा प्रसन्न रहते हैं। ब्रह्मा जी प्रसन्न हो जाएं तो भाग्य के लेख भी बदल देते हैं।
स्वामी कमलानंद जी ने करवाचौथ की पूर्व संध्या प्रवचनों की अमृतवर्षा दौरान कहा कि मान्यता अनुसार यह व्रत पतियों की लंबी आयु के लिए होता है। अगर इस व्रत को आठ से 80 वर्ष तक का कोई भी महिला रख सकती है। यह व्रत सभी के लिए घर में धन्य-धान्य की वृद्धि व सुख-शांति प्रदान करने वाला होता है। प्राचीन काल में चक्रवर्ती सार्वभौमिक सम्राट भी सुना करते थे। कमलानंद गिरि ने कहा कि प्राचीन काल में कार्तिक महात्म्य, श्रावण महात्म्य, वैशाख महात्म्य एवं माघ महात्म्य केवल आमजन ही नहीं सुना करते थे बल्कि बड़े-बड़े चक्रवर्ती सार्वभौमिक सम्राट भी इन महीनों के महात्म्य को श्रवण करते थे। तुलसी, पीपल, आंवला लगाकर सभी लोग पुण्य अर्जित करते थे। इस माह तुलसी, पीपल व आंवला पूजन करने का विधान है। स्वामी जी ने अतिथि सेवा का महत्व बताते हुए कहा कि अतिथि वह है जो अपरिचित हो एवं आकस्मिक घर पर आए। प्राचीन काल में अतिथि को भगवान का स्वरूप मानकर पूजा जाता था। यदि हम आए अतिथि को कुछ दे नहीं सकते तो उसका अनादर भी नहीं करना चाहिए। स्वामी जी ने कहा कि परमात्मा पदार्थों के नहीं प्रेम के भूखे हैं।