कार्तिक व्रत समस्त तीर्थ स्नान के बराबर

श्रीराम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव के दौरान स्वामी जी ने प्रवचन किए।

By JagranEdited By: Publish:Mon, 25 Oct 2021 02:58 PM (IST) Updated:Mon, 25 Oct 2021 05:25 PM (IST)
कार्तिक व्रत समस्त तीर्थ स्नान के बराबर
कार्तिक व्रत समस्त तीर्थ स्नान के बराबर

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब

श्रीराम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव के दौरान सोमवार को प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए स्वामी कमलानंद गिरि जी ने कहा कि कार्तिक के महीने में गंगा स्नान का बहुत महत्व है। मगर जो व्यक्ति गंगा स्नान करने नहीं जा सकता, वह अगर घर पर ही जल में आंवला व तुलसी मिलाकर स्नान कर ले तो उसको गंगा स्नान का ही फल मिल जाता है। उन्होंने बताया कि जो सभी तीर्थों में दर्शन करने के लिए नहीं जा सकते वह सिर्फ कार्तिक का व्रत रख लें और नित्य प्रति आंवला और तुलसी का सेवन कर लें।

उन्होंने बताया कि भगवान श्री विष्णु, श्रीकृष्ण, श्रीराम एवं शालिग्राम जी के मंत्रयुक्त तुलसी की माला में फेरने चाहिए। भगवान शिव का मंत्र जप हमेशा रुद्राक्ष की माला के साथ ही करना चाहिए। भगवान की भक्ति नौ प्रकार की होती है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, चरण सेवन, निरंतर स्मरण, अर्चन, वंदन, मैत्री व दास्य भक्ति होती है। उनमें से किसी भी एक का आश्रय लेकर स्वयं को परमात्मा से जोड़े रखना चाहिए। जिन्होंने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भगवान से जुड़कर जीवन यापन किया है, उनको मोक्ष प्राप्त हुआ है।

स्वामी ने उदाहरण देते हुए बताया कि कथा श्रवण में परीक्षित राजा, कीर्तन में सुकदेव जी, स्मरण में प्रहलाद जी, चरण सेवा में लक्ष्मी जी , अर्चन भक्ति में राजा पृथु, वंदन भक्ति में अक्रूर जी, दास्य भक्ति में हनुमान जी, मैत्री भक्ति में अर्जुन और आत्म निवेदन में राजा बलि का विशेष स्थान है। परोक्ष धर्म पूजा, आरती व वंदना से होता है और अपरोक्ष धर्म मानसिक चितन के द्वारा परमात्मा को रिझाना होता है।

स्वामी जी ने कहा कि मानव देह का मिलना बेहद दुर्लभ है। मानव देह पाकर भी अगर प्रभु का भजन-सिमरन न किया तो इस मानव देह का कोई लाभ नहीं। मनुष्य को मानव जीवन उपहार स्वरूप मिलता है। मनुष्य को ऐसा जीवन जीना चाहिए कि उसका उपहास न हो। चौरासी लाख योनियां भोगने के उपरांत तब कहीं जाकर मानव जीवन मिलता है। इसलिए इसका सदुपयोग करना चाहिए। प्रभु सिमरन करते रहना चाहिए। सच्चे दिल से दीन-दुखियों की सेवा करनी चाहिए। सत्संग के लिए भी समय निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो सबका भला करता है भगवान उसका भी भला करते हैं। सभी का भला करो तो खुद का भला होगा। महाराज जी ने आगे बताया कि कार्तिक के महीने में किया गया कोई भी पुण्य अनंत गुणा फलदाई हुआ करता है। इसलिए सभी को कार्तिक का व्रत करना चाहिए। साधना के लिए कार्तिक का महीना अनुकूल रहता है। इस महीने में शरद पूर्णिमा के बाद से ही चंद्र नारायण कलश में अमृत लेकर भ्रमण कर रहे हैं। भजन साधना, तीर्थ यात्रा एवं भगवान और गुरु की सेवा करने वालों के ऊपर चंद्रदेव अमृत के छीटे बरसाते रहते हैं। अत: कार्तिक विशेष तौर से पुण्य दाई है। इस मौके बड़ी तादात में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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