कार्तिक महोत्सव में स्वामी कमलानंद ने कहा, चीजों के नहीं, प्रेम के भूखे हैं प्रभु

स्वामी कमलानंद गिरि ने कार्तिक महात्म्य कथा सुनाते हुए कहा कि परमात्मा पदार्थो के नहीं प्रेम के भूखे हैं।

By JagranEdited By: Publish:Thu, 26 Nov 2020 09:52 PM (IST) Updated:Thu, 26 Nov 2020 09:52 PM (IST)
कार्तिक महोत्सव में स्वामी कमलानंद ने कहा, चीजों के नहीं, प्रेम के भूखे हैं प्रभु
कार्तिक महोत्सव में स्वामी कमलानंद ने कहा, चीजों के नहीं, प्रेम के भूखे हैं प्रभु

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : स्वामी कमलानंद गिरि ने कार्तिक महात्म्य कथा सुनाते हुए कहा कि परमात्मा पदार्थो के नहीं, प्रेम के भूखे हैं। सजावट के नहीं, बल्कि श्रद्धा के भूखे हैं। उन्होंने ये विचार श्री राम भवन में चल रहे वार्षिक कार्तिक महोत्सव में व्यक्त किए। स्वामी ने कहा कि कार्तिक के महीने में गंगा स्नान का बहुत महत्व है। जो व्यक्ति गंगा स्नान करने नहीं जा सकता, वह अगर घर पर ही जल में आंवला व तुलसी मिलाकर स्नान कर ले तो उसको गंगा स्नान का ही फल मिल जाता है। जो सभी तीर्थो में दर्शन करने के लिए नहीं जा सकते वह सिर्फ कार्तिक का व्रत रख लें।

स्वामी ने बताया कि भगवान विष्णु, कृष्ण, राम व शालिग्राम के मंत्र तुलसी की माला में फेरने चाहिए। भगवान शिव के मंत्र का जाप हमेशा रुद्राक्ष की माला के साथ ही करना चाहिए। भगवान की भक्ति नौ प्रकार की होती है। श्रवण, कीर्तन, स्मरण, चरण सेवन, निरंतर स्मरण, अर्चन, वंदन, मैत्री व दास्य। इनमें से किसी भी एक का आश्रय लेकर स्वयं को परमात्मा से जोड़े रखना चाहिए। जिन्होंने भी अपने कर्तव्य का पालन करते हुए भगवान से जुड़कर जीवनयापन किया है, उनको मोक्ष प्राप्त हुआ है। उदाहरण देते हुए बताया कि कथा श्रवण में परीक्षित राजा, कीर्तन में सुकदेव, स्मरण में प्रहलाद, चरण सेवा में लक्ष्मी, अर्चन भक्ति में राजा पृथु, वंदन भक्ति में अक्रूर, दास्य भक्ति में हनुमान, मैत्री भक्ति में अर्जुन और आत्म निवेदन में राजा बलि का विशेष स्थान है। परोक्ष धर्म पूजा, आरती व वंदना से होता है और अपरोक्ष धर्म मानसिक चितन द्वारा परमात्मा को रिझाना होता है।

उपहार में मिलता है जीवन, इसका उपहास न बनाएं

स्वामी कमलानंद ने कहा कि मानव देह का मिलना बेहद दुर्लभ है। मानव देह पाकर भी अगर प्रभु का भजन-सिमरन न किया तो इसका कोई लाभ नहीं। मनुष्य को यह जीवन उपहार स्वरूप मिलता है। ऐसा जीवन जीना चाहिए कि उसका उपहास न हो। चौरासी लाख योनियां भोगने के उपरांत तब कहीं जाकर जीवन मिलता है। इसलिए इसका सदुपयोग करना चाहिए। सदा प्रभु सिमरन करते रहना चाहिए। सच्चे दिल से दीन-दुखियों की सेवा करनी चाहिए। सत्संग के लिए भी समय निकालना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो सबका भला करता है भगवान उसका भी भला करते हैं।

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