प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में द्वादश अक्षर मंत्र का जाप होगा

श्री वामन द्वादशी महोत्सव टिब्बी रोड स्थित श्री राम भवन में शुक्रवार को मनाया जाएगा

By JagranEdited By: Publish:Thu, 16 Sep 2021 03:13 PM (IST) Updated:Thu, 16 Sep 2021 03:13 PM (IST)
प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में द्वादश अक्षर मंत्र का जाप होगा
प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में द्वादश अक्षर मंत्र का जाप होगा

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : श्री वामन द्वादशी महोत्सव टिब्बी रोड स्थित श्री राम भवन में शुक्रवार को शाम पांच से सवा छह बजे तक महामंडलेश्वर 1008 स्वामी श्री कमलानंद गिरि जी की सद्प्रेरणा से हर्षोल्लास व श्रद्धा पूर्वक मनाई जाएगी।

इस बारे में श्री राम भवन के प्रवक्ता नरेंद्र गुप्ता ने बताया श्री वामन प्रकटोत्सव के उपलक्ष्य में द्वादश अक्षर मंत्र का जाप होगा व वामन भगवान की महिमा का गुणगान किया जाएगा। वामन द्वादशी का महत्व बताते हुए भाई रमन जैन ने बताया भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी वामन वामनजयंती के रूप में मनाई जाती है। श्रीमद् भागवत महापुराण के अनुसार जिस समय भगवान वामन ने जन्म ग्रहण लिया उस समय चंद्रमा श्रवण नक्षत्र में थे। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की श्रवण नक्षत्र वाली द्वादशी थी। अभिजीत मुहूर्त में भगवान का जन्म हुआ था और सभी ग्रह नक्षत्र एवं तारे भगवान के मंगलमय जन्म को सूचित कर रहे थे। उस समय विजया द्वादशी तिथि थी और सूर्य आकाश के मध्य भाग में स्थित थे। सतयुग में प्रह्लाद के पुत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया। समस्त देवता स्वर्गभ्रष्ट हो इंद्र को आगे कर कर भगवान विष्णु के पास गए और उन्हें अपनी विपत्ति बतायी, भगवान ने कहा कि मैं स्वयं देव माता दी के गर्भ से उत्पन्न हो स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। भगवान की अमोघवाणी को सुनकर सभी देवगण हर्षित होकर देव माता अदिति के पास जाकर भगवान के अवतार की प्रतीक्षा करने लगे।

उधर, राजा बलि ने भृगुवंशी ब्राह्मणों को लेकर नर्मदा के किनारे अश्वमेध यज्ञ करना प्रारंभ किया। इधर, भगवान के अवतार का समय जानकर सभी ग्रह नक्षत्र अपनी शुभ स्थितियों में आ गए। आकाश में शंख ढोल मृदंग बजने लगे और इस प्रकार अजन्मा भगवान श्रीहरि का भाद्र मास के शुक्ल पक्ष में द्वादशी को वामन अवतार हुआ। भगवान ने जब सुना कि बलि यज्ञ कर रहे हैं तो वे बालब्रह्मचारी के भेष में बली कह यज्ञशाला में पहुंचे। उसके बाद उनकी वंदना कर बलि बोले ब्राहमण कुमार आप गौ स्वर्ण भूमि रथ अश्व गए आदि जो कुछ भी चाहे, मांग लें। वामन भगवान ने कहा- हे दैत्येंद्र आप प्रह्लाद-वंश के हैं और मुंहमांगी वस्तु देने वालों में श्रेष्ठ हैं। इसलिए मैं आपसे थोड़ी सी पृथ्वी केवल अपने पैरों से तीन पग मांगता हूं मैं आप से अधिक नहीं चाहता क्योंकि आवश्यकता से अधिक प्रतिग्रह पाप है। भगवान की बात सुनकर बलि ने हंसते हुए कहा-अच्छी बात है जितना तुम्हारी इच्छा ले लो। यह कहकर वे जैसे संकल्प करने चले, वैसे ही दैत्य गुरु शुक्राचार्य उन्हें यह कहते हुए रोक दिया कि ये स्वयं भगवान श्रीहरि हैं, तीन पग में तो यह सारा ब्रह्मांड नाप लेंगे और तुम्हें ररज्यश्री से हीन कर देंगे।

इस पर बली ने कहा जिनके लिए यज्ञ-यागादि किये जाते हैं, वे भगवान विष्णु यदि स्वयं उपस्थित होकर दान प्राप्त कर रहे हैं तो मैं अवश्य दूंगा। इस पर शुक्राचार्य ने बली को शाप दे दिया कि मेरी आज्ञा का उल्लंघन करने पर तुम श्रीहीन हो जाओगे। इस पर जब बली दान के लिए भगवान के चरण धोने लगे तो देवता गंधर्व सिद्ध चारण उनकी प्रशंसा करने लगे इसके बाद वामन भगवान ने अपने एकपग से पृथ्वी दूसरे पग से ऊपर के सभी लोक नाप लिया और तीसरे पग के लिए बली के सिर पर अपना चरण कमल रख उसे सुतललोक का स्वामी बना दिया। यही नहीं अपना सुदर्शनचक्र उसकी रक्षा के लिए नियुक्त कर दिया। राजा बली ने सदैव दर्शन का वरदान प्राप्त कर लिया। वामन भगवान के इस अद्भुत अवतार-चरित्र को श्रवण करने वाले को परमगति प्राप्त करता है।

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