रावण दहन नहीं करने को लेकर एसडीएम को सौंपा मांगपत्र
भारत के मूल निवासी कौम द्राविड़ जाति से संबंधित ग्रंथों के ज्ञाता महान विद्वान और नैतिक कद्रों कीमतों के मालिक श्रीलंका के उस समय के शासक महात्मा रावण का पुतला फूंके जाने की प्रथा सैंकड़ों वर्षों के चली आ रही है।
संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब : भारत के मूल निवासी कौम द्राविड़ जाति से संबंधित ग्रंथों के ज्ञाता महान विद्वान और नैतिक कद्रों कीमतों के मालिक श्रीलंका के उस समय के शासक महात्मा रावण का पुतला फूंके जाने की प्रथा सैंकड़ों वर्षों के चली आ रही है। बुराई पर अच्छाई की कथित जीत को दर्शाने के लिए हर वर्ष दशहरे वाले दिन महात्मा रावण, कुंभकरण और मेघनाद के पुतले फूंके जाने का रिवाज है। ऐसा करने से देश के करोड़ों मूल निवासी लोगों समेत पड़ोसी मुल्क श्रीलंका समेत कई अन्य मुल्कों में भारी रोष पाया जाता है। जहां उक्त पुतले को फूंके जाने को सरासर गलत माना जाता है। उल्लेखनीय है कि श्री लंका समेत देश के दक्षिणी राज्यों में रावण को गुरु के रूप में पूजा जाता है। इन स्थानों पर उनके अनेकों मंदिर बने हुए हैं। यहां लोग अपनी मन्नतें पूरी करवाने के लिए उनकी पूजा अर्चना करते है। लार्ड बुद्धा चैरीटेबल ट्रस्ट के चेयरमैन और आल इंडिया एससी-बीसी-एसटी एकता भलाई मंच ने उक्त महापुरूष रावण का पुतला फूंके जाने की प्रवृति को बेहद निदनीय और अमानवी करार दिया है। ऐसा करने से बहुत सारे लोगों की भावना को भारी ठेस पहुंचती है। मंच ने राष्ट्रीय प्रधान जगदीश राय ढोसीवाल की अगुआई में पंजाब सरकार को दशहरे वाले दिन यह प्रवृति रोकने के लिए एसडीएम स्वर्णजीत कौर द्वारा पंजाब सरकार को मांग पत्र दिया। प्रतिनिधिमंडल में निरंजन रखरा, चौ. बलबीर सिंह, इंज. अशोक कुमार भारती, रणजीत सिंह, मनोहर लाल, रजिदर खुराणा और नरिदर काका आदि शामिल थे। एसडीएम ने मंच को यह मांग पत्र सरकार को भेजने का विश्वास दिलाया।