सद्कर्मों का अनंत गुणा फल देने वाला माघ का महीना : स्वामी दिव्यानंद जी

स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने माघ महात्म्य कथा दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि माघ का महीना सर्वश्रेष्ठ है।

By JagranEdited By: Publish:Tue, 23 Feb 2021 11:42 PM (IST) Updated:Tue, 23 Feb 2021 11:42 PM (IST)
सद्कर्मों का अनंत गुणा फल देने वाला माघ का महीना : स्वामी दिव्यानंद जी
सद्कर्मों का अनंत गुणा फल देने वाला माघ का महीना : स्वामी दिव्यानंद जी

संवाद सूत्र, श्री मुक्तसर साहिब

स्वामी दिव्यानंद गिरि जी ने माघ महात्म्य कथा दौरान प्रवचनों की अमृतवर्षा करते हुए कहा कि माघ का महीना सर्वश्रेष्ठ है। इस माह जितने सद्कर्म किए जाएं, उतना कम हैं। इस माह किए गए सद्कर्मों का अनंत गुणा फल मिलता है। इसलिए माघ महीने में बढ़-चढ़कर सद्कर्म करो और पुण्य-लाभ कमाओ। दीन-दुखियों व असहायों की मदद करो। किसी का दिल न दुखाओ। महामंडलेश्वर स्वामी अबोहर रोड स्थित श्री मोहन जगदीश्वर दिव्य आश्रम में प्रवचन कर रहे थे।

स्वामी दिव्यानंद ने निदा-चुगली न करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि मनुष्य को जिदगी में कभी भी किसी की निदा-चुगली या अपमान नहीं करना चाहिए। यदि आप किसी की निदा करते है तो निदित किए जाने वाले व्यक्ति का तो कुछ बिगड़ेगा नहीं बल्कि उसके किए हुए पाप भी निदा करने वाले के हिस्से आ जाते हैं। इसलिए किसी का अपमान और निदा करने से बचना चाहिए। इस मौके बड़ी गिनती में श्रद्धालुओं ने पहुंचकर स्वामी दिव्यानंद गिरि जी एवं विवेकानंद जी से आशीर्वाद प्राप्त किया। मंदिर प्रांगण सद्गुरु देव महाराज के जयकारों से गूंज उठा। कथा उपरांत श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरण भी हुआ। -- इनसेट -

श्रीमद्भागवत कथा सुनने का मौका कभी न गंवाएं: स्वामी विवेकानंद श्रीमद् भागवत कथा दौरान स्वामी विवेकानंद ने कहा कि जीवन में अगर कभी भी श्रीमद्भागवत कथा श्रवण करने का मौका मिले तो इसे कभी न गंवाएं। ऐसा मौका बड़े ही सौभाग्य से प्राप्त होता है। इसलिए ऐसे मौके को हाथ से न जाने दें। श्रीमद्भागवत कथा जीवन के सभी पापों का नाश करती है व भवसागर से पार लगाती है। विवेकानंद जी महाराज ने श्रद्धालुओं को अज्ञान का नाश करने की प्रेरणा देते हुए कहा कि अज्ञान का नाश करने के लिए शरीर को अत:करण सहित पवित्र और शुद्ध रखना होता है, जो साधक साधना करके सुख-दु:ख के स्तर से ऊपर उठ चुके हैं, उनका जीवन धन्य है। बल्कि उन्होंने मनुष्य शरीर मिलने का उदेश्य पूरा कर लिया। अन्यथा अधिकांश व्यक्ति सुख भोग के प्रलोभन में आकर सांसारिक वस्तुओं में घिरकर दु:ख भोग रहे हैं। जो साधक विषय भोगों के जाल में फंसा होगा वह अपने मन को पवित्र रखने में असमर्थ होगा। जब तक मनुष्य विवेक द्वारा अपने आचरण को ठीक नहीं रखेगा तब तक मन का पवित्र व शुद्ध रहना असंभव है। श्रीमद् भागवत कथा दौरान स्वामी विवेकानंद जी ने जहां श्रद्धालुओं को जहां श्रीमद्भागवत कथा रसपान करवाया, वहीं भजनों की गंगा में डुबकियां भी लगवाईं। इस दौरान महिलाओं ने भजन-कीर्तन भी किया।

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